भारत की तरफ से परमाणु हथियारों की नीति में बदलाव की आहट भर से ही पाकिस्तान दहशत में
नई दिल्ली । परमाणु हथियारों के पहले इस्तेमाल न करने की पॉलिसी में बदलाव की आहट भर से ही पाकिस्तान न सिर्फ दहशत में है, बल्कि वह इसका अंतरराष्ट्रीयकरण करने की भी कोशिश कर रहा है। उसका यह डर और मंशा प्रधानमंत्री इमरान खान के ट्वीट से भी जाहिर हो रही है। अपने ताजा बयान में उन्होंने कहा है कि भारतीय नेताओं के परमाणु हथियारों के पहले इस्तेमाल करने को लेकर दिए गए बयान से पूरा विश्व डरा हुआ है। वो यहीं पर नहीं रुके और आगे कहा कि पूरा विश्व भारत के पास मौजूद परमाणु हथियारों के खतरे और उनकी सुरक्षा को लेकर संजीदा है। उनके मुताबिक, यह खतरा इसलिए भी बड़ा है, क्योंकि भारत में इस वक्त फासीवादी, जातिवादी और एक ऐसी सरकार है जो हिंदुओं को सबसे ऊपर मानती है। उन्होंने यह भी कहा है कि भारत की नो फर्स्ट यूज की पॉलिसी (No First Use Policy) में बदलाव से किसी एक क्षेत्र या एक देश को ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व को खतरा है। आपको बता दें कि पाकिस्तान इसको लेकर एक खतरनाक चाल चल रहा है। इसके तहत वह भारत के एक वर्ग को भड़काने की भी कोशिश कर रहा है।
जम्मू-कश्मीर पर मुंह की खाने के बाद बौखलाहट आपको बता दें कि जम्मू-कश्मीर पर लिए गए फैसले के बाद से पाकिस्तान लगातार इस मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण करने में लगा था, लेकिन उसको इसमें सफलता हासिल नहीं हुई। इतना ही नहीं, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में भी उसको और चीन को मुंह की खानी पड़ी। यही वजह है कि अब वह परमाणु हथियारों के इस्तेमाल को लेकर दिए गए भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के बयान को वैश्विक मुद्दा बनाने की कोशिश कर रहा है। इतना ही नहीं अपनी इस मंशा को पूरा करने के लिए वह किसी भी खतरनाक स्तर तक जा सकता है। यही वजह है कि इमरान ने कहा है कि भारत की तरफ से परमाणु हथियारों की नीति में बदलाव से वहां के अल्पसंख्यकों को भी खतरा है।
पाकिस्तान की खतरनाक सोच उनके मुताबिक, राजनाथ का ताजा बयान भाजपा और आरएसएस की सोच को दर्शाने के लिए काफी है। इमरान की खतरनाक मंशा के किसी भी हद तक जाने का यह एक प्रमाण है कि वह इसके लिए धार्मिक भावनाएं भड़काने से भी परहेज नहीं कर रहे हैं। इसके लिए वह लगातार गलत बयानबाजी भी कर रहे हैं। इसमें उनके अलावा दूसरे नेता और अधिकारी भी शामिल हैं। पूर्व में इस तरह के कई मामले दुनिया के सामने आए हैं। इमरान खान का यहां तक कहना है कि भारत में करीब 40 लाख मुस्लिम डिटेंशन कैंप में रह रहे हैं, इनमें कई ऐसे हैं जिनकी नागरिकता खत्म कर दी गई है।
भारत की पॉलिसी में कोई आधिकारिक बदलाव नहीं हालांकि, जानकार इमरान खान के ताजा बयानों को ज्यादा तवज्जो देने के हक में तो दिखाई नहीं दे रहे हैं, वो इस बात को जरूर मान रहे हैं कि पाकिस्तान को कुछ समय के लिए एक मुद्दा जरूर मिल गया है। ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के प्रोफेसर हर्ष वी पंत ने इस बाबत दैनिक जागरण से बात करते हुए कहा कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के बयान को फिलहाल एक बयान तक ही सीमित रखना सही होगा। इसकी वजह है कि भारत ने परमाणु हथियारों के पहले इस्तेमाल करने की नीति में कोई आधिकारिक बदलाव नहीं किया है। उनके मुताबिक, जब तक इस तरह का कोई आधिकारिक बदलाव नहीं होता है तब तक इमरान खान के बयान का कोई मतलब नहीं रह जाता है।
इमरान देते रहे हैं खतरनाक बयान राजनाथ के बयान के बारे में पूछे गए सवाल के जवाब में प्रोफेसर पंत का कहना था कि उनका यह बयान महज इसलिए था, क्योंकि इमरान खान लगातार बीते कुछ दिनों से यह बात कहते नजर आए हैं कि भारत से किसी भी खतरे की सूरत में वह चुप नहीं बैठेंगे। आपको बता दें कि जम्मू-कश्मीर पर केंद्र सरकार के फैसले के बाद पाकिस्तान की संसद के संयुक्त सत्र को संबोधित करते हुए उन्होंने यहां तक कहा था कि यदि भारत-पाकिस्तान में युद्ध होता है तो यह कहां तक जाएगा इसका अंदाजा लगा पाना किसी के लिए संभव नहीं होगा। प्रोफेसर पंत के मुताबिक, उनका यह बयान इस बात का सुबूत है कि यदि दोनों देशों में युद्ध हुआ तो वह परमाणु हमला करने से परहेज नहीं करेगा। यह बयान इस लिहाज से भी खास है, क्योंकि न सिर्फ पाकिस्तान पीएम, बल्कि पाकिस्तान के नेता, मंत्री और अधिकारी भी इस तरह के बयान देते रहे हैं।
यदि बदलाव हुआ तो होगी चर्चा जहां तक परमाणु हथियारों के पहले इस्तेमाल को लेकर भारत की नीति की बात है तो प्रोफेसर पंत मानते हैं कि यदि भारत इसमें बदलाव करता है तो मुमकिन है कि वैश्विक मंच पर इसकी चर्चा हो। यदि ऐसा होता है तो चीन जो कि पहले से ही कई मुद्दों पर पाकिस्तान के साथ खड़ा है, इसको भुनाने में पीछे नहीं रहेगा। हालांकि, फिलहाल इस तरह की कोई बात नजर नहीं आती है। जहां तक पाकिस्तान की बात है तो वो जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय को अपने पक्ष में नहीं कर सका है, लिहाजा वह उन मुद्दों की तलाश कर रहा है जिन्हें वह भुना सके।
चीन ने 1964 में एनएफयू का जिक्र आपको यहां पर ये भी बता देना जरूरी होगा कि जिस नो फर्स्ट यूज पॉलिसी का जिक्र यहां पर बार-बार किया जा रहा है उसका सबसे पहला प्रयोग ही चीन ने वर्ष 1964 में किया था। तब से लेकर आज तक चीन अपनी इस नीति पर पूरी तरह से कायम है। वहीं, नाटो सेनाएं इस पॉलिसी को नहीं मानती हैं। इसके अलावा पाकिस्तान की तरफ से हुई बयानबाजी भी इस पॉलिसी को नजरअंदाज करती हुई प्रतीत होती है। भारत की बात करें तो जिस तरह की मंशा राजनाथ सिंह ने अपने बयान में जताई है उसी मंशा को पूर्व रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर भी जता चुके हैं। भारत ये भी काफी हद तक साफ कर चुका है कि परमाणु हथियारों का इस्तेमाल उस वक्त के हालातों पर तय होगा। इसका सीधा-सा अर्थ है कि जब तक पाकिस्तान अपनी नीयत साफ रखेगा तब तक भारत भी एनएफयू पर अमल करता रहेगा।