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अग्रामीण क्षेत्र में लिव इन रिलेशन का पहला मामला आया सामने,एक विधवा ने कराया रजिस्ट्रेशन

हल्द्वानी। उत्तराखण्ड में यूसीसी लागू होने के बाद ग्रामीण इलाकों से लिव इन रिलेशनशिप के रजिस्ट्रेशन का पहला मामला आया है। जिसमें उपजिला अधिकारी ने रजिस्ट्रेशन किया है। बताया जा रहा कि कुमाऊं मंडल का यह पहला मामला है, जहां नए कानून के तहत रिलेशनशिप रजिस्ट्रेशन करने का पहला मामला सामने आया है। एसडीएम परितोष वर्मा ने बताया कि ग्रामीण क्षेत्र में लिव इन रजिस्ट्रेशन का पहला मामला पंजीकृत कर लिया गया है। उन्होंने बताया कि महिला विधवा है और उसका एक बच्चा भी है। उसने रजिस्टेशन के लिए आवेदन किया है। लिव-इन-रिलेशनशिप को रजिस्टर करने के लिए ऑनलाइन आवेदन करना होता है. आवेदन को स्वीकार या अस्वीकार करने की प्रक्रिया 30 दिनों में पूरी करनी होती है। यूसीसी के तहत लिव-इन रिलेशनशिप को कानूनी मान्यता देने का काम शहरी इलाके में नगर आयुक्त (रजिस्ट्रार) को दिया गया है, जबकि ग्रामीण क्षेत्र में एसडीएम को जिम्मेदारी दी गई है। बता दें कि उत्तराखंड में 27 जनवरी को यूसीसी लागू किया गया था। तभी से ये नियम है कि उत्तराखंड में लिव इन में रहने के लिए आपको रजिस्ट्रेशन कराना होगा।
यदि कोई जोड़ा लिव इन रिलेशनशिप का रजिस्ट्रेशन नहीं कराता है, तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी, जिसमें 6 माह की सजा से लेकर 25 हजार रुपए दंड अथवा दोनों का प्रावधान है। लिव इन में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति को साथ में रहने के लिए अनिवार्य रूप से पंजीकरण न्ब्ब् के वेब पोर्टल पर कराना होगा। पंजीकरण करने के पश्चात उसे रजिस्ट्रार द्वारा एक रसीद दी जाएगी। इसी रसीद के आधार पर वह युगल किराये पर घर, हॉस्टल अथवा पीजी में महिला मित्र के साथ रह सकेगा। पंजीकरण करने वाले युगल की सूचना रजिस्ट्रार को उनके माता-पिता या अभिभावक को देनी होगी। लिव इन के दौरान पैदा हुए बच्चों को उसी युगल की जायज संतान माना जाएगा। इस बच्चे को जैविक संतान के समस्त अधिकार प्राप्त होंगे।

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