पीएम और सीजेआइ ने कहा-भविष्य में सांप्रदायिक धार्मिक स्थलों के विवाद के लिए तैयार नहीं है देश
नई दिल्ली। अयोध्या फैसले में एक तरफ जहां कोर्ट के अंदर सर्वसम्मति थी वहीं सरकार, न्यायपालिका और आरएसएस की सोच भी एक ही लाइन पर दिखी। अलग-अलग शब्दों में मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और और सरसंघचालक मोहन भागवत ने साफ-साफ जताया कि विवादों को पीछे छोड़कर अब आगे बढ़ने का वक्त है। जाहिर तौर पर यह संकेत सीधे-सीधे मथुरा और काशी से जुड़ता दिखता है। यह मानकर चला जा सकता है कि भविष्य में सांप्रदायिक धार्मिक स्थलों के विवाद की गुंजाइश बहुत कम है।
धार्मिक बदलाव की इजाजत नहीं शनिवार को फैसला पढ़ते वक्त जस्टिस गोगोई ने 1991 के पूजा स्थल कानून का भी उल्लेख किया और यह बताया कि संसद का यह कानून स्पष्ट करता है कि 15 अगस्त 1947 के दिन जिस भी पूजा स्थल की जो स्थिति है उसमें कोई धार्मिक बदलाव की इजाजत नहीं देता है। इतना ही नहीं बल्कि इससे जुड़े कानूनी मुकदमे भी खत्म माने जाएंगे। केवल राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद को इससे छूट थी। यानी उनकी ओर से सचेत कर दिया गया है कि कोर्ट अब ऐसे किसी मुद्दे को सुनने के लिए तैयार नहीं है।
संघ आंदोलन नहीं करता है, राम मंदिर आंदोलन में जुड़ना एक अपवाद था सरसंघचालक मोहन भागवत ने अपने बयान में साफ किया कि ‘संघ आंदोलन नहीं करता है, राम मंदिर आंदोलन में जुड़ना एक अपवाद था।’ जाहिर है कि संघ किसी और आंदोलन की नहीं सोच रहा है।
पीएम मोदी- अब नए भारत के निर्माण में सबको जुटना है देश के नाम अपने संबोधन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बहुत बारीकी से यह संदेश दे दिया कि अब देश में कटुता के लिए स्थान नहीं है। इतना ही नहीं, उन्होंने यह भी कहा कि अब नए भारत के निर्माण में सबको जुटना है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले और करतारपुर कारीडोर का उल्लेख करते हुए कहा ‘आज के दिन का संदेश जोड़ने का है, जुड़ने का है और मिलकर जीने का है, सभी कटुता को तिलांजलि देने का वक्त है. नए भारत में भय, कटुता, नकारात्मकता का कोई स्थान नहीं होगा।’
देश का मुसलमान फैसले को अपना चुका है संकेत साफ है कि राम मंदिर के साथ ही सबसे बड़े धार्मिक विवाद के निपटने के बाद कोई भी अब पीछे मुड़कर नहीं देखना चाहता है। पूरे देश का मुस्लिम वर्ग भी राम मंदिर निर्माण के फैसले को अपना चुका है।
मथुरा और काशी जैसे मुद्दे पर भाजपा या संघ संतों को शायद ही समर्थन दे साधु संत समाज की ओर से भले ही मथुरा और काशी जैसे मुद्दे उठाए जा सकते हैं, लेकिन उसे भाजपा या संघ से खुला समर्थन मिले इसकी गुंजाइश नहीं है। भाजपा के राजनीतिक घोषणापत्र में राम मंदिर 1991 से शामिल है, लेकिन कभी भी मथुरा और काशी का जिक्र नहीं हुआ है। संघ परिवार में वीएचपी में भी इस मुद्दे पर चुप्पी है। वह अपना पूरा ध्यान राम मंदिर निर्माण पर लगाना चाहता है।