गुरू द्रोणाचार्य के नाम पर ही पड़ा था यहां का नाम द्रोणनगरी
देहरादून। क्या आप जानते हैं कि देहरादून को द्रोण नगरी भी कहा जाता है, हजारों साल पहले महाभारत काल में द्रोणाचार्य यहां उत्तराखण्ड के जिस नालापानी गांव में तप किया करते थे वो जगह आज भी तपोवन के नाम से प्रसिद्व है, मान्यता है कि यहीं पर गुरू द्रोणाचार्य तप किया करते थे और अपने विघार्थियों को धनुर विघा भी यहीं दिया करते थे।ऐसी मान्यता है कि कौरवो पांडवो को धनुर्रविघा भी उन्होंने यहीं पर दी थी। यहां पर आज भी वह शिवलिंग स्थापित है जिस पर गुरू द्रोणाचार्य प्रतिदिन जल चढ़ाया करते थे। जैसे जैसे समय बीतता गया यहां की भौगोलिक स्थिति में भी परिवर्तन होता गया और मंदिर परिसर में भी निर्माण और रिनोवेशन का कार्य होता गया लेकिन तमाम बदलाव के बावजूद भी यहां के गांव वासियों का कहना है कि वह, यह मंदिर अपनी पुस्तों दर पुश्तों से देखते आ रहे हैं हालांकि इसमें परिवर्तन होते रहे लेकिन उनकी तप स्थली आज भी वहीं स्थित है। आज जो देहरादून एजुकेशन का हब बना हुआ उसकी शुरूआत द्रोणाचार्य काल में ही हो चुकी थी, यहां पर प्राचीन रूद्राक्ष एवं ढेऊ के फल के वृक्ष लगे हुए हैं। गांव वालों ने बताया कि शिवरात्रि के समय यहां भक्तों की काफी भीड जमा होती है और लोगों की आस्था के चलते सावन में यहां काफी भीड़ लगी रहती है।
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