अंकिता हत्याकांड के आरोपियों को बचाने का काम कर रही सरकारः जोत सिंह बिष्ट
देहरादून। आम आदमी पार्टी के संगठन समन्वयक जोत सिंह बिष्ट ने कहा कि जिसका डर था आखिर वही हो गया। अंकिता हत्याकांड के घटना स्थल वनन्तरा रिसॉर्ट को पहले बुलडोजर से तोड़कर साक्ष्य छुपाने का षड़यंत्र किया गया और आज वनन्तरा रिसॉर्ट को आग के हवाले कर दिया गया ना रहेगा बांस ना बजेगी बांसुरी। अंकिता हत्याकांड के आरोपियों को बचाने खासकर वीआईपी को बचाने का काम आज पूरा हो गया। उत्तराखंड की भाजपा सरकार अपनी गलतियों को छुपाने के लिए पिछले 6 महीने से लगातार लोगों को ध्यान भटकाने में ज्यादा समय बिता रही है। जब जब अपनी गलतियों से सरकार की फजीहत हुई तब मुख्यमंत्री ने कभी समान नागरिक संहिता की बात कर के ध्यान भटकाने का प्रयास किया तो कभी नये जिलों के गठन की बात की और आजकल एक नया शिगूफा छोड़ा कि गुलामी के प्रतीक नामों को बदला जाएगा। सरकार की इस तरह की कवायद इस बात का प्रमाण है कि सरकार जन सरोकार के कामों को करने के बजाय लोगों का ध्यान भटकाने का काम कर के अपनी शाख बचने की नाकाम कोशिश कर रहे हैं।
पार्टी के प्रदेश कार्यालय में आयोजित पत्रकार वार्ता में श्री बिष्ट ने कहा कि गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित करने के बाद गर्मियों में गैरसैंण में विधानसभा सत्र न करवाकर सर्दियों में शीतकालीन सत्र का नाटक भी किया जा रहा है। जिला न्यायालय से लेकर उच्च न्यायालय नैनीताल तथा उच्चतम न्यायालय दिल्ली में अपने पैनल पर बड़ी संख्या में अधिवक्ताओं की तैनाती के बावजूद सरकार लगातार ज़िला न्यायालय में तथा हाईकोर्ट में अधिकांश मामलों में पिछड़ती दिख रही है, यह अत्यंत चिंताजनक है। राज्य के अंदर विगत कुछ समय में जिस तरह से कुछ बड़े घोटाले निकल कर आए जिन में से कई मामलों में सरकार ने त्वरित कार्यवाही दिखा कर अपनी पीठ थपथपाई, इन मामलों में सरकार किसी भी एक मामले में कोर्ट में टिक नहीं पाई है। जिसका परिणाम हैं कि जेल में बंद आरोपी एक एक कर जमानत पर रिहा हो रहे हैं। विधानसभा भर्ती घोटाले का प्रकरण उजागर होने पर अपनी शाख बचाने के लिए आनन फानन में मुख्यमंत्री ने विधानसभा अध्यक्ष जी को पत्र लिखा। विधानसभा अध्यक्ष जी ने बिना देर किए एक कमेटी गठित कर 30 दिन में जांच करने के आदेश दिए। कमेटी ने बिना देर किए अगले दिन से जांच शुरू करके निर्धारित समय से 10 दिन पहले अपनी जांच पूरी करके रिपोर्ट विधानसभा अध्यक्ष जी को सौंप दी। विधानसभा अध्यक्ष जी ने भी रिपोर्ट के कानूनी पहलू का अध्ययन किए कराए बिना 228 कर्मचारियों के निष्कासन की संस्तुति का पत्र मुख्यमंत्री जी को भेजा और मुख्यमंत्री जी ने भी 24 घंटे से पहले उस पर स्वीकृति की मोहर लगा दी और सभी 228 लोगों को नौकरी से बर्खास्त कर दिया। लेकिन जिन लोगों ने इन 228 लोगों को नौकरी में भर्ती किया था उनके खिलाफ कुछ भी कार्यवाही करने पर सरकार ने चुप्पी साध ली। इस घटना के दो पहलू हैं जिसमें नौकरी देने वाले लोग को माफ, नौकरी पाने वाले साफ। हिंदुस्तान के इतिहास में यह एकमात्र घटना है जिसमें जांच के आदेश, जांच और कार्यवाही मात्र 25 दिन में पूरी हो गई। फौज भी इतनी तेज ड्रिल नहीं कर सकती हैं।
विधानसभा भर्ती घोटाले की इस अति त्वरित जांच और दंड के आदेश से उत्तराखंड की जनता अत्यंत उत्साहित थी। जनता का उत्साह और सरकार के काम की सराहना के बीच आम आदमी पार्टी लगातार सवाल कर रही थी की घोटालों के मुख्य आरोपियों को जांच प्रक्रिया में शामिल किया जाए। लेकिन अभी तक बड़े लोगों के खिलाफ कोई कार्यवाही ना करना सरकार की कार्यप्रणाली पर बड़ा सवाल खड़ा करता है। महत्वपूर्ण बात यह है कि क्या सरकार में बैठे लोग नहीं जानते थे कि बिना किसी नोटिस के 228 लोगों की सीधी बर्खास्तगी करने पर न्यायालय उनको पहली पेशी में ही राहत दे देगा। मुख्यमंत्री और विधानसभा अध्यक्ष जी ने इस विषय में कानूनी राय क्यों नहीं ली अगर ली तो फिर जानकर और जिम्मेदार लोगों ने क्यों सही राय नहीं दी। यही वजह है कि निकाले गए सभी 228 लोगों को हाइकोर्ट से राहत मिली और सरकार को इन्हें फिर से वापस लेना पड़ा। यह सरकार की बड़ी विफलता हैं। घोटाले के आरोपी मंत्री को अभयदान देकर मंत्री पद पर बनाये रखना इसका प्रमाण है।
भर्ती घोटाले में गिरफ्तार किए गए 42 लोगों में से लचर पैरवी व कमजोर साक्ष्यों के आधार पर 19 लोग जमानत पर छूट गए हैं। जब एसटीएफ उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के परीक्षा भर्ती घोटाले में जांच के दौरान आरोपियों को गिरफ्तार कर रही थी, तब राज्य की भाजपा सरकार इन गिरफ्तारियों को अपनी बड़ी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही थी। सरकार अपनी और एसटीएफ की पीठ थपथपा रही थी। जनता भी खुश हो रही थी। सरकार अगर आरोपियों को दंडित करने की मंशा से काम करती तो फिर इस मामले के कानूनी पक्ष को जान समझकर मामले कोर्ट में दाखिल करती। सरकार और जांच दल के द्वारा अपना काम सही तरीके से नहीं किया गया। इसका परिणाम है कि हर पेशी में आरोपी लगातार जमानत पा कर रिहा हो रहे हैं। इस प्रकार इतने बड़े घोटालों के दोषियों का जनमत पर रिहा होना सरकार की विफलता है, या फिर सरकार जान-बूझकर इन छुटमैया आरोपियों को बचा रही है, ताकि इन को संरक्षण देने वाले सफेदपोश लोगों को बचाया जा सके। उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की पहले अध्यक्ष आरबीएस रावत की गिरफ्तारी और दूसरे अध्यक्ष जिन्होंने कहा कि उन पर बड़े लोगों का दबाव था कि परीक्षा भर्ती घोटाले की जांच ना हो इतनी बड़ी बात कहने वाले व्यक्ति से अब तक एसटीएफ ने जांच करने की जरूरत नहीं समझी। यही अपने आप में एक प्रमाण है कि परीक्षा भर्ती घोटाले में भी सरकार अपनी पार्टी के किसी बड़े सफेदपोश को बचा रही है। सरकार की यह दूसरी बड़ी विफलता हैं।