Ayodhya Case: मुस्लिम पक्ष की सुप्रीम कोर्ट में दलील,पांच सौ साल पहले बाबर ने जो किया उसे अब अदालत नहीं जांच परख सकती
नई दिल्ली। अयोध्या राम जन्मभूमि पर मस्जिद होने का दावा कर मालिकाना हक मांग रहे मुस्लिम पक्ष ने सोमवार को कहा कि पांच सौ साल पहले संप्रभु शासक बाबर ने जो किया उसे अब अदालत नहीं जांच परख सकती। बाबर संप्रभु शासक था और संप्रभु शासक जमीन का मालिक होता है। ऐसे में उसके किसी काम को गैर-कानूनी नहीं कहा जा सकता। उसके काम को उस समय लागू कानून की निगाह से देखा जाएगा। भले ही उसने जबरदस्ती जमीन पर कब्जा करके पाप किया हो, लेकिन वह मामला कोर्ट के तय करने के क्षेत्राधिकार में नहीं आता। मुस्लिम पक्षकार मिबाहुद्दीन और हाजी महमूद की ओर से ये दलीलें हिन्दू पक्ष के उस दावे का विरोध करते हुए दी गईं जिसमें हिन्दू पक्ष ने कहा था कि बाबर ने अयोध्या में राम जन्मस्थान पर मंदिर तोड़ कर मस्जिद बनाई थी। वह मस्जिद इस्लामिक मानकों के मुताबिक नहीं थी इसलिए इस्लाम की निगाह में उसे वैध वक्फ और मस्जिद नहीं कहा जा सकता।
एतिहासिक घटना को आध्यात्मिक आधार पर नहीं परखना चाहिए इस्लामिक कानून और मान्यताओं के मुद्दे पर मुस्लिम पक्ष की ओर से वकील निजामुद्दीन पाशा ने दलीलें रखीं। पाशा ने कहा कि कोर्ट को इस मामले में एतिहासिक घटना को आध्यात्मिक आधार पर नहीं परखना चाहिए नहीं तो नतीजे बड़े बेतुके निकलेंगे।
मुगल काल में सारी जमीन संप्रभु शासक में निहित थी मुगल काल में सारी जमीन संप्रभु शासक में निहित होती थी। यहां तक कि आज के लिहाज से देखा जाए तो इस्माइल फारुखी मामले में कोर्ट कह चुका है (यह मामला अयोध्या में भूमि अधिग्रहण से संबंधित था) पूजा स्थल चाहें वह मस्जिद हो या मंदिर उसे राज्य संप्रभु शक्तियों का इस्तेमाल करके अधिग्रहित कर सकती है, पाशा ने कहा तो फिर पूर्व शासक के जमीन अधिग्रहित करने के अधिकार को कैसे इन्कार किया जा सकता है। पाशा ने हिन्दू पक्ष की दलील कि बाबर खलीफा था और वह शरीयत के खिलाफ नहीं जा सकता, का जवाब देते हुए कहा कि संप्रभु शासक इस्लामिक कानून के आधीन नहीं होता। अगर मान भी लिया जाए कि बाबर का जमीन पर कब्जा करना पाप था तो भी कोर्ट के सामने बाबर ने पाप किया था कि नहीं यह विचार का मुद्दा नहीं है। जमीन पर मालिकाना हक का मुकदमा कानून के मुताबिक तय होना चाहिए ना कि आध्यात्मिक आधार पर। इस पर जस्टिस अशोक भूषण ने कहा कि क्या संप्रभु शासक कुरान के कानून शरीयत से बंधा नहीं है। पाशा ने कहा कि बाबर उससे ऊंची किसी अथारिटी के प्रति जवाबदेह नहीं था।
ऐसे तो दावों की बाढ़ आ जाएगी और देश सामाजिक तानाबाना खतरे में पड़ जाएगा पाशा ने कहा कि अगर हिन्दू पक्ष की दलीलें स्वीकार कर ली जाएगी तो दावों की बाढ़ आ जाएगी और भारत का सामाजिक तानाबाना व सांस्कृतिक तथा ऐतिहासिक धरोहरें खतरे में पड़ जाएंगी।
शरीयत के मुताबिक तो बाबर का मुस्लिम शासक पर हमला करना भी गलत था पाशा ने कहा कि अगर शरीयत के हिसाब से देखा जाए तो मध्यकाल के कई मुगल शासक गलत थे क्योंकि इस्लाम किसी मुसलमान को दूसरे मुसलमान को मारने की मनाही करता है और बाबर ने इब्राहिम लोधी पर हमला किया था जबकि लोधी भी मुसलमान था। इस संबंध में उन्होंने जलालुद्दीन खिलजी, शाहजहां, औरंगजेब आदि का उदाहरण दिया। इस पर जस्टिस बोबडे ने कहा कि वहां मारने से मतलब हत्या से है युद्ध से नहीं।
जरूरी नहीं मस्जिद में वजू का स्थान पाशा ने कहा कि मस्जिद में सजावट के लिए फूल पत्ती हो सकती है। इस पर जस्टिस बोबडे ने कहा, लेकिन जीवित व्यक्ति या जानवर के चित्र तो नहीं हो सकते? पाशा ने कहा कि चित्र की मनाही सिर्फ इसलिए है क्योकि उससे नमाज के दौरान ध्यान बंटता है। मंदिर और घंटो की आवाज के बीच मस्जिद होने के बारे मे उन्होंने कहा कि भारत की परिस्थितियों को मुताबिक ऐसा था। भारत मे बहुत जगह मंदिर आदि के मस्जिद होती है और वहां की घंटो की आवाज आती है। इस बारे में उन्होंने विदेशी यात्री के वर्णन का हवाला दिया। कहा जरूरी नहीं कि मस्जिद मे वजू का स्थान हो। इस्लाम में शुक्रवार को लोगों से स्नान करके नमाज के लिए जाने की बात कही गई है।
हिन्दू वहां दोबारा मंदिर बनाने की मांग नहीं कर सकते\ मुस्लिम पक्ष की ओर से पेश वकील शेखर नाफड़े ने कानून के सिद्धांत रेस जुडीकेटा और एस्टापल का हवाला देते हुए कहा कि 1885 में महंत रघुवर दास ने मुकदमा दाखिल कर राम जन्मस्थान पर मंदिर बनाने की इजाजत मांगी थी और कोर्ट ने उनका मुकदमा खारिज कर दिया था अब वह दोबारा वहीं पर मंदिर बनाने की मांग नहीं कर सकते। इस पर जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि उस मुकदमे मे सेवादारी का सवाल नहीं उठा था और न ही उस मुकदमें मे रामलला की ओर से कोई प्रतिनिधि था ऐसे मे उस मुकदमे के फैसले की बाध्यता निर्मोही अखाड़ा और रामलला के मुकदमें पर लागू नहीं होगी।
ईश्वर एक है, लेकिन उसकी पूजा करने के तरीके भिन्न हैं मुस्लिम पक्षी की दलीलों का जवाब देते हुए रामलला के वकील के. परासरन ने कहा कि ईश्वर एक है लेकिन उसकी पूजा करने तरीके भिन्न हैं। हिन्दुओं में दिव्य शक्ति के प्रति ध्यान लगाने के लिए उन्हें एक आकार चाहिए होता है वह कोई मूर्ति हो सकती है या कोई और दिव्य चीज हो सकती है। यह हर मामले मे अलग अलग तय होता है। परासरन ने हिन्दू धर्म में ईश्वर की मान्यता के बारे में कई फैसलों का उदाहरण दिया।
राजीव धवन ने रामलला के वकील परासरन की दलीलों को कहा बेमतलब जब परासरन हिन्दू मान्यता में भगवान के बारे मे कोर्ट में अपना पक्ष रख रहे थे तभी मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन खड़े हो गए और उन्होंने कहा कि परासरन बहुत वरिष्ठ है हम इनका सम्मान करते हैं लेकिन ये जो भी उदाहरण दे रहे है उसका इस केस से कोई लेना देना नहीं है। उन्हें हमारी दलीलों के जवाब देने चाहिए जबकि वह बेमतलब की बहस कर रहे है। धवन के टोकने पर परासरन ने ऐतराज जताया और कहा कि अभी उन्होंने दलीलें पूरी नहीं की है। इस तरह टोकना सही नहीं है अगर कोर्ट कहेगी तो वह आगे बहस नहीं करेंगे। इस पर मुख्य न्यायाधीश ने परासरन से बहस जारी रखने को कहा और फिर उन्होंने आगे बहस की। उनकी बहस मंगलवार को भी जारी रहेगी।