NationalUttarakhandजन संवाद
उत्तर प्रदेश में क्या लगता है आपको शगूफे या हकीकत
आजकल मीडिया में केवल एक चर्चा जोरों पर है। उत्तरप्रदेश में मुख्य मंत्री और प्रधान मंत्री में खटास की खबरे चलाई जा रही है। खूब नमक मिर्च घोली जा रही है। अनावश्यक कयास लगाए जा रहे हैं। कयासों के कोई सिर पैर नही है। प्रधान मंत्री पूरे देश के मुखिया है। उंन्हे पूरे देश की चिंता करनी होती है। प्रदेश में पंचायत चुनाव में अपेक्षित सफलता न मिलने पर चिंता स्वाभाविक है। उधर कोरोना की बिगड़ी स्थिति से उभरने के लिये योगी जी अकेले जी जान से जुटे हैं। ऐसे में कुछ समस्याओं के बढ़ने की संभावना के चलते मुख्य मंत्री पर काम का बोझ भी स्वाभाविक है। इसी की चिंता करते हुए मोदी जी ने अपने काबिल और विश्वास पात्र अधिकारी को स्थिति को संभालने के लिये मुख्य मंत्री की सहायता करने के उद्देश्य से उत्तर प्रदेश भेज दिया। इसमें योगी जी को बदलने या कद छोटा करने जैसी कोई बात नही थी। लेकिन अवसरवादियों ने मीडिया से मिलकर अफवाहों का ऐसा जाल फैलाया कि झूठ भी सच लगने लगा। यह पार्टी और मीडिया के अंदर कुछ मंथरा गुनी लोगो के कारण ऐसा हुआ। वास्तव में कटुता जैसी कोई बात है ही नही।
जब भी कोई प्रशासनिक, राजनीतिक या अन्य गंभीर समस्या होती है तो प्रबंधकों को आवश्यक बेठके कर विचार विमर्श करना ही होता है। अब क्योंकि कोरोना के कारण और आनेवाले चुनावो के कारण सरकार को बदनाम करने के प्रयास चरम पर है तो विचार करना स्वाभाविक है।
अब आज ही मीडिया पर अफवाह फैलाई गई कि योगी जी त्यागपत्र दे रहे है और प्रदेश को चार हिस्सो में बांटा जा रहा है। ये तो वही बात हुई कि सूत न कपास और जुलाहे लठम लठ। साधारण ज्ञान की बात है कि इस समय क्या ऐसा करना संभव है?
यदि कहीं ऐसा विचार भविष्य के लिये हो भी तो प्रशासनिक दृष्टि से तो उचित हो सकता है लेकिन इस संकट के समय और तीन राज्यो के गठन और उसके लिये आवश्यक ढांचे, प्रशासनिक अमले पर अतिरिक्त खर्च देश पर डालना औचित्यपूर्ण नही लगता। किन्ही कारणों से यदि उत्तर प्रदेश में समस्याए गंभीर भी हो रही हो तो इसे कम खर्च में भी नियंत्रित किया जा सकता है। प्रदेश के चार हिस्सो में केंद्रीय हिस्से को छोड़कर बाकी तीन हिस्सों के लिये प्रभारी उप मुख्यमंत्री बनाये जा सकते है जो मुख्य मंत्री के नेतृत्व में अपने क्षेत्र में सरकार के सम्पूर्ण कामकाज की देख रेख करें। सभी उपमुख्य मंत्री अपने क्षेत्र के मंत्रियों के साथ विधायको के साथ सामंजस्य स्थापित करे , और सभी विभागों की रिपोर्ट मुख्यमंत्री को दे। इससे प्रदेश के खजाने पर भी कोई विपरीत प्रभाव नही पड़ेगा। मुख्य मुख्य विभागों का नियंत्रण मुख्यमंत्री के साथ ही रहना तर्क संगत है। ठीक इसी प्रकार संगठन स्तर पर भी प्रदेश उपाध्यक्ष और मंडल स्तर पर कैबिनेट मंत्री और संगठन मंत्रियों को दायितव देकर पूरे प्रदेश को भली भांति संभाला जा सकता है। आवश्यकता सिर्फ इस बात की है कि दायित्व राजनीतिक अनुकंपा या विवशता से नही बल्कि अनुभव और क्षमता के आधार पर होने चाहिए। वर्तमान में ऐसा अनुभव कर भविष्य में उचित निर्णय लिया जा सकता है। वर्तमान परिस्थितियों में विभाजन करना अत्यंत घातक भी हो सकता है। उत्तरप्रदेश में कई बंगाल पैदा हो सकते है और जातिवादी क्षेत्रीय दलों को बढ़ावा मिल सकता है।
लेखकः-ललित मोहन शर्मा