Nationalआध्यात्मिक

श्रावण मास के सोमवार में भगवान शिवजी का व्रत एवं पूजन होता है विशेष फलदायी:- डाॅ.रवि नंदन मिश्र

सावन माह में शिवभक्त श्रद्धा तथा भक्ति के अनुसार शिव की उपासना करते हैं। सावन माह में शिव की भक्ति के महत्व का वर्णन ऋग्वेद में किया गया है। चारों ओर का वातावरण शिव भक्ति से ओत-प्रोत रहता है। शिव मंदिरों में शिवभक्तों का तांता लगा रहता है। भक्तजन दूर स्थानों से जल भरकर लाते हैं और उस जल से भगवान का जलाभिषेक करते हैं।
      कांवड़ियों द्वारा जल लाने की यात्रा के आरंभ की कुछ तिथियाँ होती हैं।इन्ही तिथियों पर कांवड़ियों को यात्रा करना शुभ रहता है। श्रावण मास में आने वाले सोमवार के दिनों में भगवान शिवजी का व्रत एवं पूजन विशेष फलदायी होता है।
*सावन सोमवार महत्व*
श्रावण माह में भी सोमवार का विशेष महत्व है। वार प्रवृत्ति के अनुसार सोमवार भी हिमांषु अर्थात चन्द्रमा का ही दिन है। स्थूल रूप में अभिलक्षणा विधि से भी यदि देखा जाए तो चन्द्रमा की पूजा भी स्वयं भगवान शिव को स्वतः ही प्राप्त हो जाती है क्योंकि चन्द्रमा का निवास भी भुजंग भूषण भगवान शिव का सिर ही है।
रौद्र रूप धारी देवाधिदेव महादेव भस्माच्छादित देह वाले भूतभावन भगवान शिव जो तप-जप तथा पूजा आदि से प्रसन्न होकर भस्मासुर को ऐसा वरदान दे सकते हैं कि वह उन्हीं के लिए प्राणघातक बन गया, वह प्रसन्न होकर किसको क्या नहीं दे सकते हैं?
असुर कुलोत्पन्न कुछ यवनाचारी कहते हुए नजर आते हैं कि जो स्वयं भिखमंगा है वह दूसरों को क्या दे सकता है? किन्तु संभवतः उसे या उन्हें यह नहीं मालूम कि किसी भी देहधारी का जीवन यदि है तो वह उन्हीं दयालु शिव की दया के कारण है। अन्यथा समुद्र से निकला हलाहल पता नहीं कब का शरीरधारियों को जलाकर भस्म कर देता किन्तु दया निधान शिव ने उस अति उग्र विष को अपने कण्ठ में धारण कर समस्त जीव समुदाय की रक्षा की। उग्र आतप वाले अत्यंत भयंकर विष को अपने कण्ठ में धारण करके समस्त जगत की रक्षा के लिए उस विष को लेकर हिमाच्छादित हिमालय की पर्वत श्रृंखला में अपने निवास स्थान कैलाश को चले गए।
      हलाहल विष से संयुक्त साक्षात मृत्यु स्वरूप भगवान शिव यदि समस्त जगत को जीवन प्रदान कर सकते हैं। यहाँ तक कि अपने जीवन तक को दाँव पर लगा सकते हैं तो उनके लिए और क्या अदेय ही रह जाता है? सांसारिक प्राणियों को इस विष का जरा भी आतप न पहुँचे इसको ध्यान में रखते हुए वे स्वयं बर्फीली चोटियों पर निवास करते हैं। विष की उग्रता को कम करने के लिए साथ में अन्य उपकारार्थ अपने सिर पर शीतल अमृतमयी जल किन्तु उग्रधारा वाली नदी गंगा को धारण कर रखा है।
       उस विष की उग्रता को कम करने के लिए अत्यंत ठंडी तासीर वाले हिमांशु अर्थात चन्द्रमा को धारण कर रखा है। और श्रावण मास आते-आते प्रचण्ड रश्मि-पुंज युक्त सूर्य ( वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़ में किरणें उग्र आतपयुक्त होती हैं।) को भी अपने आगोश में शीतलता प्रदान करने लगते हैं। भगवान सूर्य और शिव की एकात्मकता का बहुत ही अच्छा निरूपण शिव पुराण की वायवीय संहिता में किया गया है। यथा-
*दिवाकरो महेशस्यमूर्तिर्दीप्त सुमण्डलः।*
*निर्गुणो गुणसंकीर्णस्तथैव गुणकेवलः।*
*अविकारात्मकष्चाद्य एकः सामान्यविक्रियः।*
*असाधारणकर्मा च सृष्टिस्थितिलयक्रमात्‌। एवं त्रिधा चतुर्द्धा च विभक्तः पंचधा पुनः।*
*चतुर्थावरणे षम्भोः पूजिताष्चनुगैः सह। शिवप्रियः शिवासक्तः शिवपादार्चने रतः।*
*सत्कृत्य शिवयोराज्ञां स मे दिषतु मंगलम्‌।’*
अर्थात् भगवान सूर्य महेश्वर की मूर्ति हैं, उनका सुन्दर मण्डल दीप्तिमान है, वे निर्गुण होते हुए भी कल्याण मय गुणों से युक्त हैं, केवल सुणरूप हैं, निर्विकार, सबके आदि कारण और एकमात्र (अद्वितीय) हैं।
       यह सामान्य जगत उन्हीं की सृष्टि है, सृष्टि, पालन और संहार के क्रम से उनके कर्म असाधारण हैं, इस तरह वे तीन, चार और पाँच रूपों में विभक्त हैं, भगवान शिव के चौथे आवरण में अनुचरों सहित उनकी पूजा हुई है, वे शिव के प्रिय, शिव में ही आशक्त तथा शिव के चरणारविन्दों की अर्चना में तत्पर हैं, ऐसे सूर्यदेव शिवा और शिव की आज्ञा का सत्कार करके मुझे मंगल प्रदान करें। तो ऐसे महान पावन सूर्य-शिव समागम वाले श्रावण माह में *भगवान शिव की अल्प पूजा भी अमोघ पुण्य प्रदान करने वाली है तो इसमें आश्चर्य कैसा?*
जैसा कि स्पष्ट है कि भगवान शिव पत्र-पुष्पादि से ही प्रसन्न हो जाते हैं। तो यदि थोड़ी सी विशेष पूजा का सहारा लिया जाए तो अवश्य ही भोलेनाथ की अमोघ कृपा प्राप्त की जा सकती है। शनि की दशान्तर्दशा अथवा साढ़ेसाती से छुटकारा प्राप्त करने के लिए श्रावण मास में शिव पूजन से बढ़कर और कोई श्रेष्ठ उपाय हो ही नहीं सकता है।
      श्रावण मास भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है। इस माह में प्रत्येक सोमवार के दिन भगवान श्री शिव की पूजा करने से व्यक्ति को समस्त सुखों की प्राप्ति होती है। श्रावण मास के विषय में प्रसिद्ध एक पौराणिक मान्यता के अनुसार श्रावण मास के सोमवार व्रत, जो व्यक्ति करता है उसकी सभी इछाएं पूर्ण होती है। इन दिनों किया गया दान पूण्य एवं पूजन समस्त ज्योतिर्लिंगों के दर्शन के समान फल देने वाला होता है। इस व्रत का पालन कई उद्देश्यों से किया जा सकता है।
      वैवाहिक जीवन की लम्बी आयु और संतान की सुख-समृ्द्धि के लिये या मनोवांछित वर की प्राप्ति करती है। सावन सोमवार व्रत कुल वृद्धि, लक्ष्मी प्राप्ति और सुख -सम्मान देने वाले होते हैं। इन दिनों में भगवान शिव की पूजा जब बेलपत्र से की जाती है, तो भगवान अपने भक्त की कामना जल्द से पूरी करते है। बिल्व पत्थर की जड में भगवान शिव का वास माना गया है इस कारण यह पूजन व्यक्ति को सभी तीर्थों में स्नान करने का फल प्राप्त होता है।
*श्रावण सोमवार पूजा*
      इस व्रत का आरंभ सोमवार के दिन प्रात:काल से हो जाता है। प्रात:काल में उठने के पश्चात स्नान और नित्यक्रियाओं से निवृत होकर घर की सफाई कर, पूरे घर में गंगा जल या शुद्ध जल छिडकर, घर को शुद्ध करना चाहिए। इसके बाद घर के ईशान कोण दिशा में भगवान शिव की मूर्ति या चित्र स्थापित करना चाहिए। मूर्ति स्थापना के बाद सावन मास व्रत संकल्प लेना चाहिए। श्रावण मास में केवल भगवान श्री शंकर की ही पूजा नहीं की जाती है, बल्कि भगवान शिव की परिवार सहित पूजा करनी चाहिए।
सोमवार के व्रत में भगवान भगवान शिवजी समेत श्री गणेश जी, देवी पार्वती व नन्दी देव एवं नागदेव मूषक राज सभी की पूजा करनी चाहिए। पूजन सामग्री में जल, दुध, दही, चीनी, घी, शहद, पंचामृ्त,मोली, वस्त्र, जनेऊ, चन्दन, रोली, चावल, फूल, बेल-पत्र, भांग, आक-धतूरा, कमल,गट्ठा, प्रसाद, पान-सुपारी, लौंग, इलायची, मेवा, दक्षिणा चढाया जाता है। इस दिन धूप दीया जलाकर कपूर से आरती करनी चाहिए।
पूजा करने के बाद एक बार भोजन करना चाहिए.सावन के व्रत करने से व्यक्ति को दुखों से मुक्ति मिलती है और सुख की प्राप्ति होती है। सावन सोमवार व्रत सूर्योदय से शुरु होकर सूर्यास्त तक किया जाता है। व्रत के दिन सोमवार व्रत कथा सुननी चाहिए। व्रत करने वाले व्यक्ति को दिन में सूर्यास्त के बाद एक बार भोजन करना चाहिए।
*डाॅ.रवि नंदन मिश्र*
*असी.प्रोफेसर(वाणिज्य विभाग) एवं कार्यक्रम अधिकारी*
*राष्ट्रीय सेवा योजना*
( *पं.रा.प्र.चौ.पी.जी.काॅलेज,वाराणसी*) *सदस्य- 1.अखिल भारतीय ब्राम्हण एकता परिषद, वाराणसी,*
*2. भास्कर समिति,भोजपुर ,आरा*
*3.अखंड शाकद्वीपीय*
*4.चाणक्य राजनीति मंच ,वाराणसी*
*5.शाकद्वीपीय परिवार ,सासाराम*
*6. शाकद्वीपीय  ब्राह्मण समाज,जोधपुर*
*7.अखंड शाकद्वीपीय एवं*
*8. उत्तरप्रदेशअध्यक्ष – वीर ब्राह्मण महासंगठन,हरियाणा*

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button