‘शी’ को आजीवन सत्ता सौंपने से पहले ही चीन को लेकर भारत ले चुका है बड़े फैसले
चीन में राष्ट्रपति शी चिनफिंग को आजीवन सत्ता सौंपे जाने का रास्ता साफ होने के बाद भारत के अंदर बेचैनी महसूस की जा रही है। यह बेचैनी कहीं न कहीं चीन की बढ़ती ताकत को और उसके द्वारा लगातार भारत को घेरने की कवायद को लेकर भी है। कहीं ना कहीं यह बेचैनी सही भी है। लेकिन अब जबकि चीन में शी चिनफिंग ही आजीवन सत्ता में रहने वाले हैं तो यह भी जरूरी है कि दोनों देशों के बीच संबंधों में भी सुधार हो। चीन में शी को लेकर लिए गए ताजा फैसले और इसकी सुगबुगाहट के दौरान ही भारत ने अपनी तरफ से इस ओर पहले ही शुरुआत कर दी थी। यही वजह थी कि पिछले दिनों चीन के विदेश मंत्री की तरफ से भी यह बयान दिया गया था कि दोनों देशों को साथ आकर एक और एक ग्यारह की भूमिका निभानी चाहिए।
बातचीत का पक्षधर रहा है भारत
जहां तक इस संबंध में भारत की पहल की बात है तो भारत शुरु से ही चीन की आक्रामकता को दरकिनार कर बातचीत का पक्षधर रहा है। भले ही पिछले वर्ष उठा डोकलाम मुद्दा ही क्यों न हो, जिसको सुलझाने के लिए भारत ने एक कदम आगे बढ़ाया था। इसका नतीजा था कि उस वक्त डोकलाम विवाद थम गया था। हालांकि यह भी सही है कि यह विवाद एक बार फिर से सिर उठा रहा है।
एक बड़ा सवाल
इस बीच एक बड़ा सवाल यह भी है कि आने वाले दिनों में भारत और चीन संबंधों में कितनी गरमाहट आएगी और इसके लिए भारत को किस तरह पहल करनी होगी। इस बाबत ऑब्जरवर रिसर्च फाउंडेशन के प्रोफेसर हर्ष वी पंत का कहना था कि इस दिशा में भारत ने काम करना पहले ही शुरु कर दिया है। उनके मुताबिक चीन के साथ संबंधों को मधुर बनाना भारत की प्राथमिकता में शुरू से ही शामिल है। यही वजह है कि भारत ने तिब्बत और चीन के विवाद में न पड़ने का फैसला लिया है। इस फैसले के तहत 1 अप्रेल 2018 को होने वाले एक कार्यक्रम को लेकर विदेश सचिव ने केबिनेट सचिव को एक पत्र भी लिखा है। यह कार्यक्रम दिल्ली में तिब्बतियों द्वारा किया जा रहा है। इसको थैंक्स यू इंडिया का नाम दिया गया है। पंत के मुताबिक विदेश सचिव विजय गोखले ने अपने पत्र में यह साफतौर पर लिखा है कि यह वक्त भारत चीन के बीच संबंधों को लेकर काफी अहम है। उन्होंने इसमें यह भी कहा है कि इस तरह के कार्यक्रमों में सरकारी अधिकारियों की उपस्थिति और कार्यक्रम को ज्यादा तवज्जो न दी जाए।
चीन का तिब्बत से एक भावनात्मक जुड़ाव
यहां इस बात को समझना बेहद जरूरी इसलिए भी है क्योंकि चीन का तिब्बत से एक भावनात्मक जुड़ाव है। इसके साथ ही चीन की भारत से नाराजगी इस बात को लेकर भी है कि उसने दलाई लामा को भारत में शरण दे रखी है। दोनों देशों के बीच यह विवाद काफी पुराना है। भारत ने तिब्बतियों के कार्यक्रम में सरकारी अधिकारियों की शिरकत को लेकर जो पहल की है वह इस बात का साफ संकेत देती है कि भारत अब इस विवाद को यहीं पर खत्म कर देने का इच्छुक है। साथ ही भारत नहीं चाहता है कि तिब्बत के मसले पर दोनों देशों में नफरत पैदा हो। लिहाजा इस मुद्दे को चीन को दलाई लामा या दूसरों के साथ बैठकर सुलझाना होगा।
भारत ने परिपक्वता का परिचय दिया
इसके अलावा मालद्वीप के मुद्दे पर भी भारत ने आगे बढ़ते हुए परिपक्वता का परिचय दिया है। मालद्वीप में चीन से बढ़ते खतरे को भांपते हुए भारत ने यहां भी मनमुटाव को बढ़ावा न देने का फैसला लिया है। प्रोफेसर पंत का कहना है कि इस विवाद के तहत सरकार के थिंक टैंक की तरफ से सलाह दी गई थी कि फिलहाल सालाना प्रेस कांफ्रेंस को टाल दिया जाए। उनके मुताबिक इसके बाद चीन की तरफ से वहां के विदेश मंत्री द्वारा दिए गए बयान की पहले से ही अपेक्षा की जा रही थी। इसके अलावा पिछले माह विदेश सचिव गोखले ने बीजिंग की यात्रा की थी। यह यात्रा दोनों देशों के बीच संबंधों में सुधार को लेकर काफी अहम थी। हालांकि इस यात्रा की पटकथा पिछले वर्ष ही लिखी जा चुकी थी।
चीन की यात्रा पर जाएंगे प्रधानमंत्री मोदी
प्रोफेसर हर्ष वी पंत का यह भी कहना है कि भारत चीन के साथ संबंधों को मजबूत बनाने की तरफ पहल कर रहा है। यही वजह है कि जून में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी चीन की यात्रा पर जाएंगे। वह यहां के किंगदाओ में होने शंघाई कॉरपोरेशन ऑर्गेनाइजेशन समिट में हिस्सा लेने जाएंगे। उनके मुताबिक इस दौरान होने वाली बातचीत में दोनों देशों के संबंधों में सुधार के साथ-साथ पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में डालने और इसमें चीन द्वारा गतिरोध उत्पनन करने का भी मुद्दा जरूर उठेगा। पंत मानते हैं कि चीन के साथ संबंधों को सुधारने की कवायद केवल इस बार ही नहीं हो रही है बल्कि वर्ष 2007 में भी केबिनेट सचिव ने एक पत्र लिखकर सभी मंत्रियों को चीन के खिलाफ होने वाले किसी भी कार्यक्रम में शिरकत न करने की गुहार लगाई थी। उस वक्त दलाई लामा द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम के बाबत केबिनेट सचिव ने पत्र लिखा था। माना यह भी जाता है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह नहीं चाहते थे कि कोई मंत्री या बड़ा अधिकारी इस कार्यक्रम में शिरकत करे जो दोनों देशों के बीच तनाव का कारण बने।
सूझबूझ के साथ उठाए विवादित मुद्दे
पंत का यह भी कहना है कि डोकलाम विवाद के बाद यह भी जरूरी है कि भारत हर विवादित मुद्दे को संभलकर और सूझबूझ के साथ चीन के समक्ष उठाए। इसकी वजह यह है कि भारत और चीन आपस में पड़ोसी हैं और चीन की एशिया में भूमिका को दरकिनार नहीं किया जा सकता है। गौरतलब है कि इस वर्ष के गणतंत्र दिवस समारोह में आसियान के राष्ट्राध्यक्षों ने हिस्सा लिया था। पंत का मानना है कि यह देश एशिया में शक्ति का संतुलन बनाए रखने में कारगर भूमिका निभा सकते हैं। इसके अलावा भारत, जापान, आस्ट्रेलिया और अमेरिका द्वारा बनाई रणनीति भी आगे चलकर रंग ला सकती है।