इन सीमावर्ती जिलों में तेजी से बढ़ रही आतंकी गतिविधियां, देश की आंतरिक सुरक्षा को बड़ा खतरा
रांची। पूरे देश का ध्यान जहां पाक-चीन से जुड़ी अंतरराष्ट्रीय सीमा पर है। वहीं, संताल परगना के जिलों में कश्मीर जैसे हालात उत्पन्न हो गए हैं, जबकि संताल के क्षेत्र में धार्मिक स्थल से एलान होता है और एक साथ पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगने लगते हैं। पाकिस्तानी झंडे फहरने लगते हैं। बंगाल-बिहार-झारखंड सीमा के कुछ जिलों में हालात दिन-प्रतिदिन बेकाबू होते जा रहे हैं। इन इलाकों में हिंदू अल्पसंख्यक हो गए हैं। यहां आंतरिक सुरक्षा खतरे में है। इसका खुलासा खुफिया की रिपोर्ट और संबंधित जिलों के डीसी-एसपी का गृह विभाग से आए दिन किए जा रहे पत्राचार से हो रहा है। इंटेलिजेंस की मानें तो अगर समय रहते इस पर काबू नहीं पाया गया तो भविष्य में राष्ट्र विरोधी ताकतों को रोक पाना टेढ़ी खीर हो जाएगी। इन इलाकों में बांग्लादेशी घुसपैठियों की बढ़ती संख्या भी सुरक्षा तंत्र के लिए कड़ी चेतावनी है।
ढाई लाख से ज्यादा बांग्लादेशी संताल क्षेत्र में मौजूद 90 के दशक में पाकुड़-साहेबगंज के इलाके में बांग्लादेशी घुसपैठियों की नागरिकता व मतदाता पहचान पत्र बनाए जाने का मामला सामने आया था। तब बिहार सरकार के निर्देश पर संबंधित जिलों के उपायुक्तों ने जांच के बाद मतदाता सूची से 17054 बांग्लादेशियों का नाम काटा था। इन बांग्लादेशियों का सिर्फ नाम काटा गया था, उन्हें वापस बांग्लादेश नहीं भेजा गया था। सूचना है कि आज उक्त क्षेत्र में ढाई लाख से ज्यादा बांग्लादेशी उक्त संथाल क्षेत्र में मौजूद हैं। यहां 10 हजार एकड़ जमीन पर बांग्लादेशियों का कब्जा है, जहां दस साल के भीतर 15 हजार से ज्यादा आदिवासी महिलाओं से बांग्लादेशियों ने शादी कर उनका धार्मिक परिवर्तन करवा दिया है।
सीमावर्ती जिलों में बन रहे हैं जिहादी कॉरिडोर भाजपा के पश्चिम बंगाल किसान मोर्चा के प्रभारी सह राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य विनय कुमार सिंह लगातार सीमावर्ती जिलों में कार्य कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि पाकिस्तान के तत्कालीन सैन्य प्रमुख जिया उल हक के समय आतंकी संगठन आइएसआइ ने 3के नीति की योजना बनाई थी। 3के में कश्मीर, खालिस्तान व किशनगंज हैं। कश्मीर व खालिस्तान में हालात बेकाबू तो हैं ही, धीरे-धीरे किशनगंज कॉरिडोर के हालात बेकाबू होते जा रहे हैं। इसके लिए आइएसआइ ने पोपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया को सहयोग करना शुरू कर दिया। किशनगंज कॉरिडोर में बिहार-बंगाल व झारखंड के जिले शामिल हैं। यह कॉरिडोर नक्सलियों के रेड कॉरिडोर की तरह ही हैं।
सर्वाधिक संवेदनशील पाकुड़ जिले में सिर्फ एक डायरेक्ट दारोगा झारखंड के लिए आतंकी गतिविधियों से सर्वाधिक त्रस्त व संवेदनशील जिला पाकुड़ है, जहा की पुलिस संसाधनों का घोर अभाव झेल रही है। इस जिले में सिर्फ एक डायरेक्ट दारोगा संतोष कुमार (2012 बैच) है। अन्य दारोगा सिपाही से प्रोन्नत होकर दारोगा बने हैं। वाटर कैनन, दंगा निरोधक वाहन व दस्ता, अश्रु गैस, अग्निशमन यंत्र आदि पर्याप्त नहीं हैं। इन इलाकों में पुलिस ऐसे आतंकी गतिविधियों में संलिप्त अपराधियों से सिर्फ इच्छा शक्ति से लड़ रही है। वहां की विधि-व्यवस्था पूरी तरह खतरे में है।
प्रेजेंटेशन में भी बताया भविष्य के लिए खतरा झारखंड के सभी जिलों में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन (एनआरसी) लागू करने की वकालत की गई है। यह वकालत पुलिस मुख्यालय के स्तर पर सरकार से हुई है और इसके लिए मुख्यालय के अधिकारी सरकार को जो प्रेजेंटेशन दिया है, उसके अनुसार बांग्लादेशी नागरिक भविष्य के लिए खतरा हैं। उनकी आबादी लगातार बढ़ रही है। उनके चलते आतंकी गतिविधियां राज्य में बढ़ रही है। ये भले ही संथाल के जिले में दिख रहे हैं, लेकिन उनकी पहुंच दूसरे जिलों में भी बढ़ रही है। वे झारखंड में शादी-विवाह कर दूसरे जिलों तक अपनी पकड़ मजबूत करने में लगे हैं। एक ऐसा समय आएगा कि उन्हें देश से बाहर करना सरकार व पुलिस के लिए चुनौती होगी और विधि-व्यवस्था के लिए खतरे की घंटी भी। कई जिलों में उनके विरुद्ध मामले भी दर्ज हो चुके हैं। आधार कार्ड, पहचान पत्र तक बनवाने में उन्हें सफलता हाथ लग चुकी है।
वोट देने से वंचित करेंगे, हटाना होगा मुश्किल एक अधिकारी की मानें तो एनआरसी लागू होने के बाद जब बांग्लादेशियों को चिह्नित किया जाएगा तो उन्हें वापस बांग्लादेश भेजना बेहद मुश्किल काम होगा। सरकार फिलहाल यही कर सकती है कि उन्हें मतदान से वंचित कर सकती है। उन्हें हटाने में बहुत पापड़ बेलने पड़ेंगे।