एफआरआई ने भीमल से रेशा निकालने की उन्नत तकनीक विकसित की, भीमल से दो घंटे में निकलेगा रेशा
देहरादून। उत्तराखण्ड राज्य में बहुउपयोगी पेड़ पौधे बहुतायत में पाए जाते हैं। भीमल (ग्रीविया ऑप्टीवा) इनमें से एक प्रमुख प्रजाति है, जिससे चारा तथा रेशा प्राप्त किया जाता है। यह प्रजाति स्थानीय लोगों की आजीविका का एक मुख्य साधन है। भीमल से रेशा प्रायः परम्परागत विधि से निकाला जाता है, जिसमें लगभग एक माह का समय लगता है। वन अनुसंधान संस्थान, देहरादून ने भीमल से रेशा निकालने की एक उन्नत तकनीक विकसित की है जिसके अंतर्गत भाप पर आधारित एक मशीन का निर्माण किया है, जो कि भीमल से दो घण्टे से रेशा निकालने में सक्षम है। इस मशीन का प्रदर्शन उत्तराखण्ड के काण्डी ग्राम में विस्तार प्रभाग, वन अनुसंधान संस्थान, देहरादून द्वारा वन विज्ञान केन्द्र, उत्तराखण्ड में विस्तार गतिविधियों के अंतर्गत 23 मार्च को आयोजित ‘‘भीमल से रेशा निकालने की उन्नत तकनीक’’ के दौरान किया गया।
प्रशिक्षण में संस्थान के विस्तार प्रभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा0 चरण सिंह द्वारा भीमल पर आधारित कृषिवानिकी पर व्याख्यान प्रस्तुत किया गया, जिसमें भीमल के उपयोग के बारे में बताया गया तथा आय वर्धन की जानकारी दी गई। विस्तार प्रभाग के ही अन्य वरिष्ठ वैज्ञानिक डा0 देवेन्द्र कुमार ने भीमल से रेशा निकालने की उन्न्त तकनीक पर व्याख्यान दिया तथा बताया कि रेशा निकालने वाली मशीन द्वारा किस तरह से दो घण्टे की अवधि में रेशा निकाला जा सकता है। प्रशिक्षण में भारतीय ग्रामोत्थान संस्थान के संचालक अनिल चंदोला द्वारा भी भीमल रेशे के मूल्य वर्धन विषय पर व्याख्यान प्रस्तुत किया गया, साथ ही उन्होंने भीमल के रेशे से बने उत्पाद, जैसे बैग, चटाई, पर्स इत्यादि उत्पाद भी दिखाए। उन्होंने बताया कि भारतीय ग्रामोत्थान संस्था लोगों की आजीविका सुधार के लिए कार्य करती है तथा लोगों से भीमल का रेशा उचित मूल्य पर खरीद कर उत्पाद बनाती है जिससे स्थानीय लोगों को रोजगार मिलता है। प्रशिक्षण में काण्डी ग्राम तथा आसपास के लोगों, ग्राम प्रधान एवं उत्तराखण्ड वन विभाग के कर्मचारियों सहित लगभग 60 ने भाग लिया। प्रशिक्षण को सफल बनाने में संस्थान के विस्तार प्रभाग के डा0 चरण सिंह, डा0 देवेन्द्र कुमार, प्रीतपाल सिंह तथा मनीष कुमार ने सराहनीय कार्य किया।