सियासी उठापटक के बीच एससी-एसटी कानून लोकसभा से पारित
नई दिल्ली। एससी-एसटी एक्ट और पिछड़ों को लेकर राजनीतिक शह-मात के बीच सोमवार को एससी-एसटी (अत्याचार रोकथाम) संशोधन विधेयक, 2018 लोकसभा में ध्वनिमत से पारित हो गया। दलित उत्पीड़न के मुद्दे पर विपक्ष के साथ-साथ सहयोगियों का भी दबाव झेल रही सरकार ने जहां अध्यादेश की बजाय संशोधन बिल लाकर पुख्ता इंतजाम करने का संदेश दिया। वहीं, कांग्रेस ने एक कदम और बढ़ाते हुए अब इसे संविधान की नौवीं सूची में डालने की मांग कर दी ताकि भविष्य में भी कोर्ट इसमें दखल न दे सके। भाजपा ने अब तक की स्थिति के लिए दलित नेता मायावती और कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया। जाहिर है कि दलितों के मुद्दे पर आगे दिखने की होड़ की राजनीति अभी कुछ दिनों तक गर्म रहेगी। सोमवार को जहां राज्यसभा में ओबीसी आयोग को संवैधानिक दर्जा देने का विधेयक पारित कराकर सरकार अपनी पीठ थपथपा रही है। वहीं, लोकसभा में एससी-एसटी संशोधन विधेयक पारित कराकर दावा किया कि वह दलितों के अधिकार को संरक्षित करने के लिए कृतसंकल्प है। जबकि विपक्ष की ओर से कोशिश यह जताने की है कि सरकार ने स्वेच्छा से नहीं, बल्कि दबाव में दलितों को अधिकार दिया।
कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे समेत विपक्षी नेताओं के भाषणों में बार-बार यह जताने की कोशिश हुई कि सरकार ने आखिरकार देर क्यों लगाई। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद से अब तक छह अध्यादेश लाए गए तो एससी-एसटी उत्पीड़न पर अध्यादेश क्यों नहीं आया। नौंवी सूची में इसे डालने की मांग सरकार को और भी घेरने की राजनीति के तहत हुई। यह भी जताने की कोशिश हुई कि पिछले कुछ वर्षो में दलित उत्पीड़न की घटनाओं में 45 फीसद की बढ़ोतरी हुई। भाजपा की ओर से विनोद कुमार सोनकर खड़े हुए तो सीधा हमला मायावती पर था। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में 2007 में उनके कार्यकाल में ही इस विधेयक को शिथिल कर दिया गया था। कांग्रेस इतने वर्षो तक देश पर शासन करती रही, लेकिन दलितों को केवल वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल करती रही। मोदी शासन के दौरान इसे और मजबूत किया गया। उन्होंने दलितों के उत्थान के लिए किए गए कार्यो का उल्लेख किया और दावा भी कि जिस तरह 2014 लोकसभा और 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में दलित भाजपा के साथ खड़े थे उसी तरह आगे भी डटे रहेंगे।
गिरफ्तारी के लिए जरूरी नहीं होगी किसी की अनुमति
पूरी चर्चा के दौरान सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर ही तेज रहा। आखिरकार चर्चा का जवाब देते हुए केंद्रीय सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत ने कहा कि जो संशोधन विधेयक लाया गया है वह हर मानक पर चुस्त है। यह स्पष्ट कर दिया गया है कि दलित उत्पीड़न के मामले में इस विधेयक के नियमों के अलावा कोई दूसरा नियम लागू नहीं होगा। ऐसे में भविष्य में कोर्ट के हस्तक्षेप की आशंका भी खत्म हो गई है। लेकिन इससे बड़ा मजाक क्या हो सकता है कि कांग्रेस ने जिन बाबा साहेब आंबेडकर को न्याय नहीं दिया, वह दलितों की बात कर रही है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस जो मांग आज कर रही है, जब वह 10 साल तक सरकार में थी, तब क्यों नहीं किया। वहीं, नए एक्ट में किए गए प्रावधानों पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि यह पहले से मजबूत एक्ट होगा। साथ ही कोर्ट ने जिन पहलुओं को इससे हटाया था, उसे और सख्ती से जोड़ दिया गया है। बिल के प्रावधानों के तहत अब एफआइआर दर्ज होने के बाद गिरफ्तारी के लिए किसी की अनुमति लेने की जरूरत नहीं होगी। साथ ही अग्रिम जमानत भी नहीं मिलेगी। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले दिनों इन नियमों में बदलाव किया था।