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राम जन्मभूमि केस में पक्षकारों की दलीलें जितनी महत्वपूर्ण हैं, उतना ही महत्व राम जन्मभूमि की खुदाई के रिकॉर्ड का भी है

नई दिल्ली । अयोध्या स्थित राम जन्मभूमि मामले में सुप्रीम कोर्ट प्रतिदिन सुनवाई कर रहा है। केस का जल्द फैसला सुनाने के लिए कोर्ट सप्ताह में पांच दिन सुनवाई कर रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने महज तीन सप्ताह में हिंदू पक्षकारों की दलीलें पूरी कर ली हैं। इस केस में पक्षकारों की दलीलें जितनी महत्वपूर्ण हैं, उतना ही महत्व राम जन्मभूमि की खुदाई के रिकॉर्ड का है। आइये जानते हैं राम जन्मभूमि की पूर्व में हुई खुदाई में क्या-क्या मिला था? करीब 15 साल पहले भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने अयोध्या में मौजूद राम जन्मभूमि स्थल की खुदाई की थी। कई दिनों तक चली खुदाई के दौरान जमीन के नीचे से मिली चीजों का एएसआई की टीम ने वैज्ञानिक परीक्षण किया था। खुदाई और वैज्ञानिक परीक्षण पर आधारित रिपोर्ट में विवादित ढांचे के नीचे पुरातन मंदिर के अवशेष होने का दावा किया गया है।

सुप्रीम कोर्ट को 2018 में सौंपी गई थी रिपोर्ट  मंदिर के पक्ष में मिले साक्ष्यों को बाकायदा फोटो के साथ एएसआई ने नवंबर 2018 में सुप्रीम कोर्ट को सौंपा था। एएसआई ने ये रिपोर्ट इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर तैयार की थी। माना जाता है कि अयोध्या केस में हाइकोर्ट ने जो फैसला सुनाया था, उसके पीछे पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की रिपोर्ट अहम थी। जाहिर है कि वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित इस रिपोर्ट को सुप्रीम कोर्ट भी सिरे से खारिज नहीं कर सकता।

एएसआई की खुदाई में मिली थीं ये चीजें  एएसआई की रिपोर्ट में स्पष्ट कहा गया है कि विवादित ढांचे के ठीक नीचे एक बड़ी संरचना मिली है। यहां 10वीं शताब्दी से लेकर ढांचा बनाए जाने तक लगातार निमार्ण हुआ है। खुदाई में यहां जो अवशेष मिले हैं, वह ढांचे के नीचे उत्तर भारत के मंदिर होने का संकेत देते हैं। यही नहीं 10वीं शताब्दी के पहले उत्तर वैदिक काल तक की मूतिर्यों और अन्य वस्तुओं के खंडित अवशेष भी यहां खुदाई के दौरान मिले थे। इनमें शुंग काल की चूना पत्थर की दीवार और कुषाण काल की बड़ी संरचना भी शामिल है।

जियो रेडियोलॉजिकल सर्वे भी हुआ था  इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पक्षकारों के विरोध के बावजूद स्वत: संज्ञान लेकर एक अगस्त 2002 और 23 अक्टूबर 2002 को विवादित स्थल का जियो रेडियोलॉजिकल सर्वे का आदेश दिया था। तोजो विकास इंटरनेशनल प्राइवेट लिमिटेड ने ये सर्वे किया था। संस्था ने 17 फरवरी 2003 को हाईकोर्ट में अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। इस सर्वे रिपोर्ट में जमीन के अंदर कुछ विसंगतियां पायी गईं थी, जिसे देखते हुए हाईकोर्ट ने 5 मार्च 2003 को एएसआई को विवादित स्थल की खुदाई करने का आदेश दिया था। इसके बाद 12 मार्च से 07 अगस्त तक विवादित स्थल पर खुदाई जारी रही।

हाईकोर्ट ने पूछा था क्या मंदिर तोड़ मस्जिद बनाई गई एएसआई ने खुदाई करने के बाद 25 अगस्त 2003 को हाईकोर्ट में रिपोर्ट दाखिल की थी। एएसआई की रिपोर्ट के निष्कर्ष में हाईकोर्ट ने पूछा था कि क्या विवादित स्थल पर कोई मंदिर या ढांचा था, जिसे तोड़ कर मस्जिद का निर्माण कराया गया था। हाईकोर्ट ने एएसआई से विवादित स्थल पर उस जगह खुदाई करने के लिए कहा था, जहां जियो रेडियोलोजिकल सर्वे में विसंगतियां पायी गई थी। जियो रेडियोलॉजिकल सर्वे के आधार पर बताया गया था कि जमीन के अंदर मौजूद चीजें ढांचा, खंभा, नींव की दीवारें, स्लैब, फर्श आदि हो सकती हैं।

एएसआई रिपोर्ट में कहा गया  एएसआई रिपोर्ट में कहा गया है कि विवादित ढांचे के नीचे मिली विशाल संरचना में नक्काशीदार ईंटें, देवताओं की युगल खंडित मूर्तियां और नक्काशीदार वास्तुशिल्प, पत्तों के गुच्छे, अमालका, कपोतपाली, दरवाजों के हिस्से, कमल की आकृति, गोलाकार (श्राइन) पूजा स्थल जैसी चीजें मिली हैं। इसमें उत्तर की ओर निकला एक परनाला भी है, जिसे भगवान शिव के मंदिर से जोड़ कर देखा जा रहा है। उस बड़े ढांचे में 50 खंभों का आधार मिला है। ये अवशेष उत्तर भारत के मंदिरों की खासियत से मेल खाते हैं’।

गोलाकार पूजा स्थल  रिपोर्ट के इसी चैप्टर चार में एक खंड, सर्कुलर श्राइन यानी गोलाकार पूजा स्थल का दिया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक, खुदाई में थोड़ा-बहुत क्षतिग्रस्त, पूर्व की ओर मुख वाला ईटों का बना गोलाकार पूजा स्थल का ढांचा मिला है। इस गोलाकार ढांचे का पूर्वी सिरा वर्गाकार है। इसका एक हिस्सा अंग्रेजी के अक्षर वी के आकार का है जो कि टूटा हुआ था और जिसमें जल बाहर निकालने के लिए उत्तर की ओर एक परनाला जैसी संरचना थी, जो कि स्वाभाविक तौर पर डेटी (मूर्ति) के अभिषेक के लिए बनाई गई थी, लेकिन मूर्ति वहां मौजूद नहीं थी।

गुप्त और कुषाण काल के भी अवशेष मिले अयोध्या राम जन्मभूमि की खुदाई में गुप्त और उत्तर गुप्त काल और कुषाण काल के अवशेष भी मिले थे। यहां पर गुप्त कालीन और कुषाण कालीन दीवारें मिली थीं। कुषाण कालीन निर्माण कोई साधारण इमारत नहीं थी, बल्कि एक विशाल संरचना थी। यही नहीं यहां चूना पत्थर की दीवार मिली जो शुंगकाल की मानी जाती है। ट्रेंच 8 की लेयर सात से लिए गए चारकोल के नमूनों का कालखंड वर्ष 90 से 340 के बीच का पाया गया है।

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