नई दिल्ली। किसी भारतीय एजेंसी ने पहली बार आधिकारिक रूप से भले ही अगस्तावेस्टलैंड हेलीकाप्टर खरीद घोटाले की जांच में सोनिया गांधी का नाम लिया हो, लेकिन इसे साबित करने के लिए सबूत जुटाना टेढ़ी खीर साबित हो सकता है। अभी तक जांच में एजेंसियां गांधी परिवार तो क्या उनके किसी करीबी तक पहुंचने में भी विफल रही है। भारत में तीन कंपनियों तक दलाली रकम पहुंचने के सबूत मिले हैं, लेकिन जांच उसके आगे नहीं बढ़ पा रही है। ईडी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने स्वीकार किया कि सिर्फ मिशेल के बयान के आधार पर किसी को आरोपी बनाना संभव नहीं है। उसके लिए ठोस सबूत जुटाना होगा।
दरअसल, अगस्तावेस्टलैंड घोटाले में ईडी की जांच तीन भारतीय कंपनियों तक पहुंच चुकी है, जिनमें 86 करोड़ रुपये दुबई, सिंगापुर और मारिशस की कंपनियों के मार्फत आए थे। ईडी का मानना है कि यह रकम हेलीकाप्टर खरीद में दलाली की रकम थी, जो ‘फेमली’ के लिए दी गई थी। ईडी ने 2016 में इन कंपनियों के मुंबई, दिल्ली और हैदराबाद में 10 ठिकानों पर छापा मारा था। छापे में इन कंपनियों के कंप्यूटर की हार्डडिस्क समेत अहम दस्तावेज बरामद किये गए थे। ईडी ने इन कंपनियों के सारे दस्तावेजों को खंगाल लिया। यहां तक कि इन कंपनियों और उनके निदेशकों की फारेंसिक ऑडिट भी कराई गई। लेकिन कुछ खास हासिल नहीं हुआ। ढाई साल की मेहनत के बाद भी एजेंसियों को इन कंपनियों से गांधी परिवार और उनके किसी करीबी तक रकम पहुंचने का कोई सबूत नहीं मिला है। शायद यही कारण है कि इसके बारे में ईडी बिल्कुल चुप है। यहां तक कि अभी तक इन कंपनियों के नाम भी खुलासा नहीं किया गया है। ईडी की चुप्पी से इन कंपनियों से जुड़ी जांच की संवेदनशीलता का अंदाजा लगाया जा सकता है। दरअसल घोटाले के मुख्य दलाल क्रिश्चियन मिशेल ने दलाली की रकम के बंटवारे का नोट बनाया था। इस नोट के अनुसार मिशेल के मार्फत कुल 42 मीलियन यूरो की दलाली बांटी गई थी। इसमें सबसे बड़ा हिस्सा ‘फैमली’ को 16 मीलियन यूरो मिला था। जबकि मिशेल ने खुद के लिए 12 मीलियन यूरो रख लिया था। इसके अलावा तीन मीलियन यूरो ‘एपी’ को, छह मीलियन यूरो ‘ब्यूरोक्रेट्स’ को और पांच मीलियन यूरो ‘डिफेंस पर्सनल’ को दिये गए थे। जून में जिन तीन कंपनियों पर छापा मारा गया था, उनमें 86 करोड़ रुपये की रकम आठ साल पहले के यूरो के रेट के हिसाब से 16 मीलियन यूरो ही बनता है।