करीब 11 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित गर्तांगली में बनेगा कांच का पुल
देहरादून : रोमांच के शौकीनों के लिए अच्छी खबर। कभी तिब्बत से जुड़ने वाले व्यापारिक मार्ग पर समुद्रतल से करीब 11 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित गर्तांगली को राज्य सरकार ने ‘स्काई वॉक’ की तर्ज पर विकसित करने की ठानी है। लगभग तीन सौ मीटर के इस दुर्गम गलियारे में भी चीन के ‘काइलिंग ड्रैगन क्लिफ स्काई वॉक’ की तरह कांच का फर्श लगेगा, जो हवा में तैरने जैसा अहसास दिलाएगा। पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज के अनुसार इन प्रयासों के फलीभूत होने पर गर्तांगली सैलानियों के आकर्षण का खास केंद्र बन जाएगी। उत्तरकाशी जिले में गंगोत्री नेशनल पार्क के अंतर्गत भैरवघाटी से नेलांग को जोड़ने वाले मार्ग पर स्थित है गर्तांगली। कहते हैं कि पेशावर के पठानों ने भारत-तिब्बत के बीच के इस व्यापारिक मार्ग को करीब एक हजार फीट की ऊंचाई पर चट्टान काटकर सीढ़ीनुमा गलियारे के रूप में तैयार किया था। भारत-चीन युद्ध से पहले भारत और तिब्बत से व्यापारी इस रास्ते से ऊन, चमड़े से बने कपड़े, नमक समेत अन्य वस्तुएं लेकर बाड़ाहाट (उत्तरकाशी का पुराना नाम) आते-जाते थे। वर्ष 1965 के युद्ध के बाद यह मार्ग बंद कर दिया गया, मगर सेना की आवाजाही बनी रही। 1975 में सेना ने भी इसका इस्तेमाल बंद कर दिया। तब से यह मार्ग रखरखाव के अभाव में जर्जर हो गया। साथ ही गर्तांगली की सीढ़ियों के साथ ही किनारे सुरक्षा के मद्देनजर लगाई गई लकड़ियां सड़-गल गईं। अलबत्ता, गर्तांगली रोमांच के शौकीनों की नजर में चढ़ी रही और वे इसे खुलवाने की मांग करते रहे। इसे देखते हुए उत्तरकाशी जिला प्रशासन से आए प्रस्ताव के बाद पर्यटन विभाग ने पिछले साल इस मार्ग की मरम्मत को 26.59 लाख रुपये की राशि जारी की। गंगोत्री नेशनल पार्क इसकी मरम्मत कराएगा। अब सरकार ने गर्तांगली को पर्यटन के लिहाज से विकसित करने का निश्चय किया है। पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज के अनुसार गर्तांगली को दुरुस्त करने को धनराशि पहले दी चुकी है, लेकिन अब इसे चीन समेत अन्य देशों में स्थित स्काई वॉक की तरह विकसित किया जाएगा। इसके लिए प्रस्ताव तैयार किया जा रहा है। राज्य में ट्रैकर्स के लिए गर्तांगली एक बेहतर मुकाम साबित हो सकता है।
महापंडित सांकृत्यायन भी इसी रास्ते गए थे तिब्बत एक दौर में भारत-तिब्बत के बीच व्यापारिक गतिविधियों के मुख्य केंद्र रहे इस मार्ग से महापंडित राहुल सांकृत्यायन की यादें भी जुड़ी हैं। वह इसी मार्ग से होकर तिब्बत गए थे। यही नहीं, कई चीनी लेखकों ने अपने यात्रा वृत्तांत में नेलांग का जिक्र किया है। संभवत: वे इसी रास्ते से आए और गए होंगे।