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आदिकेशव मन्दिर और घाट

आदिकेशव घाट वरुणा व गंगा के संगम पर स्थित है। यहाँ संगमेश्वर व ब्रह्मेश्वर मंदिर दर्शनीय हैं। भगवान विष्णु के काशी में स्थित मंदिरों की बात की जाये तो आदि केशव का मंदिर काफी प्राचीन एवं धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। आदिकेशव घाट काशी का प्रमुख व प्राचीन विष्णु तीर्थ माना जाता है। मंदिर समूह में संगमेश्वर 18 वीं शती के उत्तरार्द्ध व अन्य 19 वीं शती के प्रारंभ के हैं। मूलत: आदिकेशव मंदिर का निर्माण गहड़वाल काल में हुआ था। जिसे 1194 में कुतुबुद्दीन ऐबक ने नष्ट कर दिया था। गहड़वाल काल में आदिकेशव बहुत विख्यात था। गहड़वाल शासकों द्वारा मंदिर के नीचे गंगा में स्नान व महादान का उल्लेख भी मिलता है। वर्तमान मंदिर का निर्माण मराठा काल में ग्वालियर महाराजा सिंधिया के दीवान माणो जी ने 1806 ई. में कराया था।  कथा के अनुसार राजा दिवोदास से काशी प्राप्ति की इच्छा से गणेश जी सहित सभी देवताओं को भगवान भोलेनाथ ने काशी भेजा था, लेकिन काशी को प्राप्त करने की उनकी इच्छा पूरी न हो सकी। क्योंकि जो भी देवता काशी को दिवोदास से मुक्त कराने आये वे यहां की सुन्दरता देखकर वापस भगवान शिव के पास नहीं गये। अन्ततोगत्वा शिव जी ने इस कार्य के लिए भगवान विष्णु को काशी भेजा। भगवान शिव के निर्देश पर विष्णु जी लक्ष्मी सहित गरूड़ पर सवार होकर शिव जी की प्रदक्षिण कर उन्हें प्रणाम किया और मंदराचल पर्वत से काशी के लिए चल पड़े। काशी में उन्हें वरूणा गंगा संगम स्थल पर श्वेत द्वीप दिखाई दिया। वे अपने वाहन के साथ इसी स्थान पर उतर गये। संगम पर उन्होंने स्नान किया। जिससे यह तीर्थ विष्णु पादोदक के नाम से प्रसिद्ध हुआ। स्नान के बाद भगवान विष्णु ने भोलेनाथ का स्मरण कर काले रंग के पत्थर की अपनी त्रैलोक्य व्यापिनी मूर्ति आदि केशव की स्वयं स्थापना की। साथ ही कहा कि जो लोग अमृत स्वरूप अविमुक्त क्षेत्र (काशी ) में मेरे आदि केशव रूप का दर्शन-पूजन करते हैं, वे सब दुःखों से रहित होकर अंत में अमृत पद को प्राप्त करेंगे। तभी से इस स्थान का महत्व धार्मिक रूप से बढ़ गया। गंगा जी के किनारे आदि केशव के मंदिर का निर्माण गहड़वाल नरेश ने कराया था। जिसे 1194 में तोड़ दिया गया। मुस्लिम शासन के दौरान उपेक्षित इस मंदिर का पुनर्निर्माण 1807 में ग्वालियर के महाराजा सिन्धिया के दीवान मालो ने कराया। बाद में 1857 के विद्रोह के बाद अंग्रेजी फौज ने इस मंदिर का अधिग्रहण कर लिया और पुजारी को बाहर कर दर्शन-पूजन पर प्रतिबंध लगा दिया।
करीब 2 वर्ष बाद 1859 में पुजारी केशव भट्ट ने अंग्रेज कमिश्नर को प्रार्थना पत्र देकर मंदिर में पूजा पाठ शुरू करने की आज्ञा मांगी। तब जाकर मंदिर में पूजा शुरू हुई हालांकि आम दर्शनार्थियों के लिए प्रतिबंध यथावत था। इस मंदिर में निर्बाध रूप से दर्शन-पूजन 19वीं सदी से शुरू हुआ। पत्थरों से निर्मित इस मंदिर के मध्य गर्भगृह में आदि केशव की अलौकिक मूर्ति स्थापित है उन्हीं के बगल में केशवादित्य की मूर्ति भी है। बड़े से मंदिर परिसर में ही ज्ञानकेशव एवं हरिहरेश्वर महादेव का मंदिर है। साथ ही संगमेश्वर महादेव का भी छोटा सा मंदिर है। आदि केशव मंदिर में समय-समय पर भजन-कीर्तन एवं श्रृंगार के कार्यक्रम तो होते रहते हैं लेकिन बड़ा आयोजन वर्ष भर में 3 बार होता है। चैत्र महीने की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को बारूनी पर्व मनाया जाता है।
इस दौरान मंदिर के आस-पास मेले का आयोजन होता है। काफी संख्या में भक्त वरूणा-गंगा संगम में स्नान कर आदि केशव का दर्शन करते हैं। इसके बाद भाद्र महीने के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को बामन द्वादशी मेला लगता है। जबकि पूष माह के कृष्ण पक्ष की प्रथमा तिथि को नगर परिक्रमा होती है। इस दौरान श्रद्धालु नगर भ्रमण करते हुए वरूणा-गंगा तीर्थ पर स्नान करने के बाद आदि केशव का दर्शन-पूजन कर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। पंचक्रोशी यात्रा के दौरान भी यात्री आदि केशव पहुंचकर दर्शन-पूजन करते हैं। आदि केशव मंदिर दर्शनार्थियों के लिए प्रातःकाल 5 से दोपहर 12 तक एवं शाम को 3 रात साढ़े 9 बजे तक खुला रहता है। सुबह की आरती सूर्योदय के समय होती है एवं शाम की आरती रात साढ़े आठ बजे मन्त्रोच्चारण के बीच सम्पन्न होती है। इस मंदिर की खासियत यह है कि गर्भगृह के पास से मां गंगा की अविरल धारा बहती हुई दिखाई देती है। मंदिर बेहद शांत एवं रमणीय लगता है। कैंट स्टेशन से करीब आठ किलोमीटर दूर राजघाट के पास बसंता कालेज से होते हुए वरूणा-गंगा संगम पर यह बेहद सुन्दर मंदिर स्थित है।
काशी खंड के 61 वें अध्याय के अनुसार, जब भगवान विष्णु ने राजा दिवोदास का अपने राज्य से उच्चाटन कर दिया तो उन्होंने स्वयं को पादोदक तीर्थ में आदि केशव के रूप में स्थापित किया।
आदि का अर्थ है “सूत्रपात” तथा केशव शब्द विष्णु का परिचायक है। यह वाराणसी में स्थित सबसे पुराने मंदिर में से एक माना जाता है और संभवतः काशी में भगवान विष्णु का प्रथम मंदिर माना जाता है। इस मंदिर की वास्तुकला सबसे आकर्षक है और भारतीय शैली में निर्मित मंदिरों से अलग है। इस मंदिर में आदि केशव-संगमेश्वर लिंग भी स्थापित है, जो चार मुख वाले लिंग के रूप में स्थापित है, जिसे आदि केशव द्वारा स्थापित माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि जो भी भक्त भगवान विष्णु के आदि केशव रूप की आराधना करता है उसे अपने जीवन में सभी दुखों से छुटकारा मिलता है तथा उसके जीवन में सिर्फ खुशहाली ही वास करती है
*पूजा का सर्वश्रेष्ठ समय :-*
यह मंदिर पूजा के लिए प्रातः 06.00 से दोपहर 12.00 बजे तथा सायं 04.00 से रात्री 10.00 बजे तक खुला रहता है। हालांकि समय थोड़ा ऊपर-नीचे हो सकता है।
*मन्दिर का स्थान*
आदि केशव A-37/51, आदि केशव घाट पर स्थित है। मंदिर दर्शन/यात्रा हेतु स्थानीय परिवहन सुविधा उपलब्ध है ।
*डाॅ.रवि नंदन मिश्र*
*असी.प्रोफेसर एवं कार्यक्रम अधिकारी*
*राष्ट्रीय सेवा योजना*
( *पं.रा.प्र.चौ.पी.जी.काॅलेज,वाराणसी*) *सदस्य- 1.अखिल भारतीय ब्राम्हण एकता परिषद, वाराणसी,*

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