कथा-व्यथा का हरण करती है : सदानंद सरस्वती
सुदीप्तो चटर्जी : छत्तीसगढ़ के बेमेतरा जिले के थानखमारिया के पास स्थित ग्राम खैरझिटी में रविशंकर पटेल द्वारा आयोजित पांच दिवसीय रामकथा के तीसरे दिन ज्योतिष व द्वारका शारदा पीठ के पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के शिष्य प्रतिनिधि तथा द्वारका पीठ के मंत्री दंडी स्वामी सदानंद सरस्वती ने कथा की शुरुवात एक श्लोक से किया – ” मंगल करनि कलिमल हरनी, तुलसी कथा रघुनाथ की “। इसका तात्पर्य यह है कि तुलसीदास जी कहते हैं कि श्री रघुनाथ की कथा कल्याण करने वाली और कलयुग के पापों को हरने वाली है । मेरी इस पद की कविता रूपी नदी की चाल , पवित्र जल वाली नदी गंगा जी की चाल की भांति टेढ़ी है। प्रभु श्री रघुनाथ जी के सुंदर यश के संग से यह कविता सुंदर तथा सज्जनों के मन को भाने वाली हो जाएगी । शमशान की पवित्र अग्नि श्री महादेव जी के अंग के संग से सुहावनी लगती है और स्मरण करते ही पवित्र करने वाली होती है।
कथा को आगे बढ़ाते हुए पूज्य स्वामी सदानंद सरस्वती जी महाराज ने कहा की जैसे ही भगवान का मंगल विवाह हुआ, अवध में अनेक अनेक खुशियां छाई हुई थी। उसी समय महारानी कैकई ने मंथरा की मंदमति के आगे आकर महाराज दशरथ से अपने दो वरदान मांगे और कहा राजन अब उन दोनों वरदानों को मांगने का यही सही समय है । एक वरदान तो यह मांगा कि भरत का राज्याभिषेक हो और दूसरा वरदान यह मांगा कि श्री रामचंद्र 14 वर्षों तक वन में निवास करें । जब श्री रामचंद्र जी 14 वर्षों के लिए वन चले जाएंगे तब इस अवधि में भरत प्रजा के हृदय को जीत लेंगे और उनका राज्य सदा के लिए स्थिर हो जाएगा। यह कैकयी का भाव था ।
जिस प्रकार मंथरा की बातों में आकर कैकई ने अपने प्रिय श्री राम को अवध से वन में भेज दिया साथ में माता सीता भी श्रीराम के साथ वनवास के लिए चली गई उसी प्रकार इस संसार में व्यक्ति मंथरा के बुद्धि रूपी मनुष्यों की बातों में आ कर के अपने हृदय से भी भगवान श्रीराम माने आत्मा को अन्यत्र भेज देते हैं साथ ही दूषित हो जाते हैं और उनका तरण तारण इस संसार से नही हो पाता है।
इसीलिए हमको ब्रह्मनिष्ठ गुरु की शरण में जाना चाहिए जिससे कि हम प्रत्येक को धर्म के रहस्य और धर्म के लक्षण जानने का अवसर प्राप्त हो और हम फिर से श्री राम की प्राप्ति करने अपने जीवन में कर सकें और अपना जीवन कृतार्थ करे । इस अवसर पर अनेक श्रद्धालुगण उपस्थित हुए और पूज्य दंडी स्वामी सदानंद सरस्वती के श्रीमुख से रामकथा का रस पान किये तथा स्वामी जी से आशीर्वाद भी प्राप्त किये।