विश्व बाल श्रम निषेध दिवसः बच्चों को पुस्तकें दीजिये हाथ में पोंछा नहीं
ऋषिकेश। विश्व बाल श्रम निषेध दिवस के अवसर पर परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि बच्चों का बचपन स्थायी नहीं है अगर वह छिन गया तो फिर कभी वापस नहीं आयेगा। बच्चों को श्रम में लगाकर हम पीढ़ी दर पीढ़ी अशिक्षित पीढ़ियों को तैयार कर रहे हैं, जिनके लिये आजीवन खाद्य असुरक्षा और सामाजिक असुरक्षा बनी रहती है।
इस महामारी के दौर में अनेक परिवार बेरोजगार हुये हैं, ऐसे में बाल श्रम में अत्यधिक वृद्धि हुई है। लाखों बच्चे अपने माता-पिता की आजीविका के साधन समाप्त हो जाने के कारण बाल श्रम कर रहे हैं। महामारी का संकट समाप्त हो जाने के पश्चात भी पता नहीं उनमें से कितने स्कूल लौट पायेंगे। इस संकट के समय में बाल श्रम में हुई अप्रत्याशित वृद्धि को रोकने के लिये दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ साहसिक कदम बढ़ाने होंगे। स्वामी ने कहा कि महामारी शुरू होने से पहले ही, बाल श्रम में 16 मिलियन से अधिक छोटे बच्चे थे। आंकडों के अनुसार 20 साल में पहली बार बाल श्रम में इस तरह की भयावह वृद्धि देख रहे हैं इसलिये हमें मिलकर प्रयास करने की जरूरत है। बात बचपन की है तो हमें एकजुट होकर ठोस कदम उठाने होंगे। स्वामी ने कहा कि समाज में असमानतायें बढ़ती जा रही है और कुछ स्थानों पर स्थितियां ऐसी है कि बच्चों को अपना जीवन जीने के लियेय जीवित रहने के लिये मजदूरी करनी पड़ रही हैं, यह परिदृश्य विकास की अलग परिभाषा लिख रहा है। हम सभी को मिलकर यह सुनिश्चित करना होगा कि कोई भी बच्चा पीछे न छूटे जाये। सभी मिलकर ठोस रणनीति के साथ कार्य करें तो हम यह लड़ाई जीतेंगे और हमारे बच्चें सड़कों पर श्रम करने के बजाय स्कूलों में शिक्षा ग्रहण कर रहे होंगे। स्वामी ने कहा कि बाल श्रम उन्मूलन के लिये समाज के सभी वर्गों को आगे आना होगा। हमें यह भी सोचना होगा कि बच्चों का बचपन इंतजार नहीं कर सकता है इसलिये ठोस रणनीति के साथ बाल श्रम उन्मूलन करने हेतु सभी को आगे आना होगा। आज कितने ही बच्चे बाल मजदूरी करते नजर आते हैं परन्तु हम कई बार यह देखकर अनदेखा कर देते हैं और अब बाल श्रम हमारे समाज के लिये एक महामारी बन गया है। आईये मिलकर एक ऐसा वातावरण निर्मित करें कि बच्चों के हाथ में पुस्तकें हों न कि झाडू-पोंछा।