उत्तराखंड सरकार अब वाइनरी नीति की एक स्पष्ट रूपरेखा करेगी तैयार
देहरादून : प्रदेश में अब वाइन बनाने के लिए शराब का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा। अभी तक वाइन में नशे की मात्रा बढ़ाने के लिए इसमें शराब मिलाए जाने का प्रावधान है। इससे स्वास्थ्य में गड़बड़ी होने के मद्देनजर इस प्रावधान को अब हटाया जा रहा है। प्रस्तावित प्रावधान में यह स्पष्ट किया गया है कि वाइन में शराब की जगह शुगर (चीनी) व स्टार्च की मात्रा बढ़ाई जा सकती है।
प्रदेश में वर्ष 2013 में फल उत्पादकों की आर्थिकी संवारने के लिए फल आधारित वाइनरी लगाने की दिशा में कदम बढ़ाया गया था। दरअसल, प्रदेश में बड़ी मात्रा में फलों का उत्पादन होता है। पर्वतीय क्षेत्रों में बाजार न मिलने के कारण तकरीबन 40 फीसद फल खेतों में ही खराब हो जाते हैं। किसानों को इससे होने वाले नुकसान से बचाने के लिए बाकायदा वाइनरी नीति बनाई गई। इस नीति के तहत पहाड़ में वाइनरी लगाने वालों को हिल डेवलपमेंट पॉलिसी के तहत कर में छूट देने का निर्णय लिया गया। इसके तहत इन्हें बिजली, पानी व परिवहन आदि में सब्सिडी मिलेगी। इतना ही नहीं, नेशनल फूड मिशन के तहत मिलने वाली सब्सिडी का लाभ भी वाइनरी प्लांट लगाने वाले को मिलेगा। यह बात अलग है कि इस नीति के बनने के बाद इस वर्ष के शुरुआत तक किसी भी निवेशक ने इस ओर रुचि नहीं दिखाई। अब धीरे-धीरे कुछ निवेशक इस ओर इच्छुक दिखाई दे रहे हैं।
अक्टूबर में सरकार एक बड़ा निवेश सम्मेलन आयोजित कर रही है। इस सम्मेलन से पहले निवेशकों के सामने वाइनरी नीति की एक स्पष्ट रूपरेखा रखी जानी है। इसे देखते हुए पुरानी नीति के दो बिंदुओं में संशोधन किया जा रहा है। पहले बिंदु में यह स्पष्ट किया जा रहा है कि वाइन पारंपरिक तरीके से ही बनाई जाएगी। इसमें केवल फलों का ही इस्तेमाल होगा। अधिक से अधिक इसमें चीनी और थोड़ा स्टार्च मिलाया जा सकता है। इसमें शराब का बिल्कुल भी इस्तेमाल नहीं किया जाएगा। दूसरा संशोधन यह कि एफएल-टू से निकासी के दौरान वर्ष 2014-15 में जो कर लगाया गया था, उसे भी कम किया जाएगा। बुधवार को हुई कैबिनेट में भी संशोधित नीति पेश की गई थी लेकिन यह पारित नहीं हो पाई। अब इसे अगली कैबिनेट की बैठक में लाने की तैयारी है।