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गायकवाड़ की FIR पर आया SC/ST एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला, फिर कर रहे तैयारी

नई दिल्‍ली। एससी-एसटी ऐक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ सोमवार को देशव्यापी भारत बंद के दौरान कई राज्‍यों में हिंसक प्रदर्शन हुए। कई जगह आगजनी हुई और इस दौरान अलग-अलग जगहों पर 12 लोगों की मौत हो गई, जबकि सैकड़ों घायल हुए। एससी एसटी मामले में मूल शिकायत भास्कर गायकवाड़ ने कभी नहीं सोचा था कि उनकी कानूनी लड़ाई इतनी बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन जाएगा। देश में एससी-एसटी ऐक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर जमकर राजनीति हो रही है। इधर केंद्र सरकार ने कोर्ट के फैसले पर पुनर्विचार याचिका दायर की। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र की 20 मार्च के फ़ैसले पर अंतरिम रोक लगाने की गुहार ठुकरा दी है। हालांकि कोर्ट ने साफ़ किया कि शिकायत करने वाले पीड़ित एससी एसटी को एफआइआर दर्ज हुए बग़ैर भी अंतरिम मुआवज़ा आदि की तत्काल राहत दी जा सकती है।

पुणे में एक सरकारी कॉलेज के 53 वर्षीय कर्मचारी भास्कर गायकवाड़ ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा उठाए गए कदम के बावजूद, वह 19 अप्रैल तक सुप्रीम कोर्ट में मार्च 20 के आदेश के खिलाफ एक याचिका दायर करने की योजना बना रहे हैं। देशभर में एससी-एसटी ऐक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ हिंसक आंदोलन के बीच केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में एक पुनर्विचार याचिका दायर की। लेकिन खुद को केंद्र सरकार की पुनर्विचार याचिका से दूर रखते हुए गायकवाड़ ने बताया कि वह एक महीने के निर्धारित समय के भीतर एक पुनर्विचार याचिका दायर करने की योजना बना रहे थे। हालांकि उन्होंने इस सवाल पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया कि इस मुद्दे को अधिग्रहण कर लिया गया है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर विपक्षी दल नरेंद्र मोदी सरकार पर हमला कर रहे हैं। गायकवाड़ ने कहा, ‘देखिए, मैं एक सरकारी कर्मचारी हूं, इसलिए राजनीतिक पहलू पर कुछ नहीं कह सकता हूं। इतना ही कह सकता हूं कि मैं राजनीतिक रूप से इन घटनाओं को नहीं देखता हूं।’

पुणे के कॉलेज ऑफ इंजिनियरिग में बतौर स्टोर इंचार्ज काम करने वाले गायकवाड़ के अनुसार, जो मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा, वो 2007 में दायर उनकी शिकायत से शुरू हुआ था। उस वक्त वे पुणे से सटे कराड के गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ फार्मेसी के ऑफिस में तैनात थे। गायकवाड़ का आरोप है कि कॉलेज के तत्कालीन प्रिंसिपल और दो अन्य ऑफिसर ने मिलकर कॉलेज में एक बड़ा आर्थिक घोटाला किया था और उसके रिकॉर्ड नष्ट करने और उसकी जगह नकली रिकॉर्ड बनाने का दबाव उनपर बना रहे थे। भास्कर गायकवाड़ ने जब मना किया तो उन्हें परेशान किया जाने लगा और उनके एसीआर (सालाना गोपनीय रिपोर्ट) में भी उनके खिलाफ लिखा गया। यही नहीं उनके खिलाफ कारण बताओ नोटिस भी जारी किया गया। इसके बाद साल 2009 में गायकवाड़ ने पुणे के कराड पुलिस स्टेशन में कॉलेज के प्रिंसिपल सतीश भिशे और एक प्रोफेसर किशोर बुराड़े के खिलाफ एससी एक्ट के तहत एफआईआर दर्ज करवाई।

गायकवाड़ का आरोप है कि दोनों उच्‍च अधिकारी थे और बेहद प्रभावशाली भी, इसलिए मामले की जांच कर रहे डिप्टी एसपी ने इनके खिलाफ कार्रवाई के लिए तकनीकी शिक्षा निदेशक (डीटीई) डॉ. सुभाष महाजन से इजाजत मांगी। लेकिन उन्हें इजाजत नहीं दी गई। इसके बाद पुलिस ने साल 2011 में क्लोजर रिपोर्ट फाइल कर दी। इसके बाद गायकवाड़ ने साल 2016 में डीटीई डॉ. सुभाष महाजन पर भी एससी-एसटी एक्ट के तहत एफआईआर दर्ज करवाई। इसके बाद मामला न्यायिक मैजिस्ट्रेट के पास पहुंचा तो डॉ महाजन और अन्य दो आरोपी बॉम्बे हाईकोर्ट पहुंचे। कोर्ट ने एफआईआर रद करने की याचिका खारिज कर दी। इसके बाद आरोपियों की ओर से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई। सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए एससी/एसटी (अत्याचार से सुरक्षा) ऐक्ट में फेरबदल के आदेश दे दिए, जिसके विरोध में सोमवार को ‘भारत बंद’ रहा।

गायकवाड़ ने बताया कि महाराष्ट्र सरकार की पूरी मशीनरी ने महाजन का समर्थन किया, इसलिए फैसला उनके समर्थन में आया। इसलिए वह इस मामले में पुनर्विचार याचिका दर्ज करने जा रहे हैं। उन्‍होंने कहा कि न तो महाराष्ट्र सरकार ने महाजन के खिलाफ एक साल से अधिक चार्जशीट दर्ज करने का फैसला किया और न ही मुझे मेरे मामले से लड़ने के लिए कानूनी समर्थन दिया। संपर्क करने पर महाजन ने इस मुद्दे पर बात करने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा, ‘आप जो कुछ भी चाहते हैं वह लिखते हैं। जब आवश्यकता पड़ेगी, तो मैं अपना पक्ष रखूंगा।’

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