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देश के सर्वोच्‍च नागरिक सम्‍मान भारत रत्‍न को लेकर उठाए जा रहे सवाल

नई दिल्‍ली। देश के सर्वोच्‍च नागरिक सम्‍मान भारत रत्‍न को लेकर जिस तरह की राजनीति इन दिनों दिखाई दे रही है वह इससे पहले कभी नहीं दिखाई दी। अफसोस की बात ये है कि इसको लेकर उठाए जा रहे सवालों को करने वालों में धर्मगुरू या योगगुरू से लेकर राजनीतिज्ञ तक हैं। बहरहाल, इस सम्‍मान को लेकर कुछ सवाल तो हमेशा से ही विपक्षी पार्टियां केंद्र सरकार पर पक्ष लेने का आरोप लगाती रही हैं। फिर बात चाहे पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हो या मदर टेरेसा की या फिर अटल बिहारी वाजपेयी की सभी पर सवाल उठाए गए। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि यह सम्‍मान पाने वालों में कांग्रेस के नेता ज्‍यादा हैं। एक या दो मौकों को यदि छोड़ दें तो ऐसा बेहद कम बार देखने को मिला है कि इस सम्‍मान को लेकर विपक्ष ने सरकार को बधाई का पात्र बनाया हो। बहरहाल, भारत सम्‍मान को लेकर फिलहाल जो बयानबाजी देखने को ि‍मिली है उनमें सबसे आगे योगगुरू बाबा रामदेव और आप नेता ने उठाए हैं। आपको बता दें कि प्रणब मुखर्जी देश के छठे ऐसे राष्ट्रपति हैं जिन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न के लिए चुना गया है। इसको लेकर आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह ने सबसे पहले सवाल उठाया था। उन्‍होंने ट्वीट कर कहा था कि ‘नेता जी सुभाष चन्द्र बोस, शहीदे आजम भगत सिंह, डॉ. राम मनोहर लोहिया, स्व. ध्यानचंद को आज तक भारत रत्न नही, नानाजी देशमुख, भूपेन हजारिका और AAP के बीस विधायकों की सदस्यता रद करने का मामला आगे बढ़ाने वाले और संघ के प्रशंसक प्रणव दा को भारत रत्न।’ संजय सिंह यहीं पर नहीं रुके। उन्‍होंंने एक और ट्वीट कर यहां तक कहा कि  ‘भाजपा की भारत रत्न योजना-‘एक बार संघ की शाखा में जाओ भारत का रत्न बन जाओ’ मजाक बना दिया भारत रत्‍न का। उन्‍हीं के नक्‍शेकदम पर अब योगगुरू बाबा रामदेव भी चलते दिखाई दे रहे हैं। भारत रत्न सम्मान पर बात करते हुए रामदेव ने कहा, ‘यह दुर्भाग्य है कि 70 वर्षों में एक भी संन्यासी को भारत रत्न नहीं मिला। महार्षि दयानंद सरस्वती, स्वामी विवेकानंद जी या शिवकुमार स्वामी जी। मदर टेरेसा को दे सकते हैं क्योंकि वह ईसाई हैं, लेकिन सन्यासियों को नहीं क्योंकि वे हिंदू हैं, इस देश में हिंदू होना गुनाह है क्या?’ मैं भारत सरकार से आग्रह करता हूं कि अगली बार कम से कम किसी एक संन्यासी को भारत रत्न दिया जाए।’ इससे पहले शनिवार को भी देहरादून में एक कार्यक्रम के दौरान कहा था कि ‘पिछले 70 सालों में किसी भी संन्यासी को भारत रत्न नहीं मिला है। कई संन्यासी ऐसे हैं, जिन्होंने भारत रत्न पाने के लिए अभूतपूर्व कार्य किए हैं। यह दुर्भाग्य है कि किसी भी संन्यासी को आज तक भारत रत्न से गौरवान्वित नहीं किया गया है।’ आपको बता दें 70वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर केंद्र की तरफ से भारत रत्‍न के लिए प्रणब मुखर्जी, भारतीय जनसंघ के नेता रहे नानाजी देशमुख और गायक भूपेन हजारिका के नाम की भी घोषणा की गई थी। इस घोषणा के तुरंत बाद ही इसको लेकर सियासी बयानबाजी भी शुरू हो गई। आपको यहां पर ये भी बताना जरूरी होगा कि वरिष्‍ठ वकील एचएस फुल्‍का और भाजपा सचिव आरपी सिंह ने 1984 दंगों के चलते पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी से भारत रत्‍न वापस लेने तक की मांग कर डाली है। इतना ही नहीं दिल्‍ली सरकार ने इस संबंध में एक प्रस्‍ताव पास कर इसको केंद्र को भेजने की भी बात कह डाली है। इसके अलावा जब पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और पंडित मदन मोहन मालवीय को देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न देने का एलान किया गया था तब प्रख्यात इतिहाकार रामचंद्र गुहा ने इस पर सवाल खड़ा किया था। अपनी नाराजगी को जताने के लिए गुहा ने भी ट्विटर का ही सहारा लिया था। उनके मुताबिक वाजपेयी को भारत रत्न मिलना ठीक है लेकिन जिस शख्स की बहुत पहले मृत्यु हो चुकी है उसे भारत रत्न देना एक गलती है। गुहा यही नहीं रूके उनके मुताबिक अगर मालवीय को भारत रत्न दिया जा सकता है तो रवींद्र नाथ टैगोर, महात्मा फुले, तिलक, गोखले, विवेकानंद, अकबर, शिवाजी, गुरु नानक, कबीर और सम्राट अशोक को भी मिलना चाहिए।

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