पत्थरबाजों को महबूबा मुफ्ती की माफी अब पड़ रही सबको भारी
नई दिल्ली । कश्मीर में पत्थरबाजी केवल एक धंधा ही नहीं, आतंकियों के बचाव का जरिया भी बन चुकी है- इस तथ्य से अच्छी तरह परिचित होने के बाद भी मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती हर वक्त उनके पक्ष में खड़ी नजर आईं और यहां तक कि उनके खिलाफ नरमी बरतने की खुली पैरवी भी करती रहीं। इसी साल जनवरी में उनकी पहल पर हजारों ऐसे पत्थरबाजों से मुकदमे वापस लेकर उन्हें माफी दी गई थी जिन्होंने कथित तौर पर पहली बार पत्थरबाजी की थी, लेकिन बुधवार को खुद उन्हें पत्थरबाजों की निंदा करने के लिए मजबूर होना पड़ा।
इस मजबूरी ने यही साबित किया कि उन्होंने पत्थरबाजों के रूप में भस्मासुरों की पैरवी की। महबूबा मुफ्ती की इस मजबूरी का कारण बनी शोपियां की वह घटना जिसमें पत्थरबाजों ने एक स्कूली बस को घेरकर उसमें पत्थर बरसाए। इस पत्थरबाजी के चलते तीन बच्चे घायल हो गए, जिसमें एक की हालत गंभीर है। इस बस में करीब 50 छात्र और कुछ शिक्षक भी थे। पत्थरबाजी के कारण उसके शीशे चकनाचूर हो गए। इस घटना के बाद महबूबा मुफ्ती सबके निशाने पर आईं, लेकिन वह पत्थरबाजों की निंदा करने तक ही सीमित रहीं, जबकि लोग चाह रहे हैं कि पत्थरबाजों को माफी देने की नीति पर नए सिरे से विचार किया जाए। पत्थरबाज किस तरह महबूबा मुफ्ती सरकार के लिए भस्मासुर साबित हो रहे हैं, इसकी पुष्टि बुधवार को ही शोपियां में पीडीपी के विधायक युसुफ बट के मकान में आगजनी की घटना से हुई। इस आगजनी के पीछे पत्थरबाजों का ही हाथ माना जा रहा है। यह वही युसुफ बट हैं जो उमर अब्दुल्ला सरकार के वक्त और खासकर 2009-10 के दौरान पत्थरबाजों के संरक्षक के तौर पर सक्रिय थे। कश्मीर में पत्थरबाजों को नेताओं का संरक्षण नई बात नहीं। पत्थरबाजों को संरक्षण देने के काम को वोटर और कार्यकर्ता तैयार करने के तौर पर देखा जाता है। उनकी गिरफ्तारी होने पर राजनीतिक दलों के नेता ही उन्हें गुमराह युवक बताकर उनकी पैरवी करते हैं। कश्मीर में पत्थरबाजों का इस्तेमाल उगाही करने में भी किया जाता है। पत्थरबाजी के चलते सबसे ज्यादा नुकसान व्यापारियों का होता है। वे जब पत्थरबाजी रोकने की अपील करते हैं तो इसके एवज में उनसे चंदे के तौर पर पैसे की मांग की जाती है। व्यापार चलाने की मजबूरी में वे पैसे देने को मजबूर होते हैं। शोपियां में पत्थरबाज जब तक आतंकियों समीर और आकिब के मारे जाने को लेकर सुरक्षाबलों और पुलिस की गाड़ियों को निशाना बनाते रहे तब तक किसी ने उनके उत्पात की चिंता नहीं की, लेकिन जैसे ही उन्होंने स्कूल बस को निशाना बनाया, सबकी आंखे खुल सी गईं। पत्थरबाजों की हरकत पर कश्मीर के ही रहने वाले लेखक और मानवाधिकार कार्यकर्ता जुनैद कुरैशी ने कहा है कि स्कूली बस को निशाना बनाने की घटना से इसकी कल्पना की जा सकती है कि अगर सचमुच “आजादी” मिल गई तो क्या होगा? उनके मुताबिक आजादी की मांग के पीछे हिंसा और भय के अलावा और कुछ नहीं। स्कूली बस पर पत्थर बरसाकर बच्चों को निशाना बनाने की घटना ने कश्मीर में कितना गहरा असर डाला है, यह इससे साबित हुआ कि पत्थरबाजों को उकसाने और बरगलाने में माहिर हुर्रियत नेता सैयद अली शाह गिलानी को सोशल मीडिया पर एक वीडियो जारी कर उन्हें हिदायत देनी पड़ी। सोशल मीडिया पर महबूबा मुफ्ती को यह याद दिलाया जा रहा है कि जब पत्थरबाजों को आतंकियों का समर्थक बताते हुए सेनाध्यक्ष ने उन पर सख्ती करने की चेतावनी दी थी तो किस तरह उलटे उन्हें यह उलाहना दिया गया था। यह पत्थरबाजों की खुली तरफदारी का ही नतीजा रहा कि हाल में जब उन्होंने पर्यटकों को निशाना बनाना शुरू किया तो उन पर कार्रवाई के बजाय इस तरह की घटनाओं से ही इन्कार किया गया। स्कूली बस के पत्थरबाजों के निशाना बनने के बाद से महबूबा मुफ्ती के साथ उमर अब्दुल्ला की भी आंखें खुलती दिख रही हैं। जहां महबूबा ने कहा कि शोपियां में स्कूल बस पर हमला कायरतापूर्ण है वहीं उमर अब्दुल्ला ने उन्हें गुंडा करार दिया। जब जनवरी में पत्थरबाजों को माफी दी गई थी तो उमर अब्दुल्ला समेत कश्मीर के अन्य नेताओं ने इस कदम को गुमराह युवकों को सुधरने का अवसर देने वाला फैसला बताया था। पत्थरबाज किस तरह कश्मीर के लिए नासूर बन गए हैं, इसका पता इससे भी चलता है कि हर साल सैकड़ों सुरक्षाकर्मी पत्थरबाजी से गंभीर घायल होते हैं। अभी हाल में इन पत्थरबाजों ने सुरक्षा बलों की एक बस को निशाना बनाया तो ड्राइवर ने नियंत्रण खो दिया और सीआरपीएफ के दो जवान बस से कुचल कर मारे गए।