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परम्परा से बगावत, नहीं बनेंगी बालिका वधू

गया । मुझे नहीं करनी शादी..। बेटी का जवाब सुन माता-पिता के चेहरे तमतमा गए। बढ़िया लड़का मिल गया है..खुश रहेगी.., पांच साल बाद कहां से लाएंगे इतने पैसे? लेकिन दुनियादारी की ऐसी ही नसीहतों के साथ मान-मनुहार की भी तमाम कोशिशें फेल हो गईं तो सामाजिक ‘व्यवस्था’ के सर्वोपरि होने की दुहाई देते हुए ‘शादी पक्की’ का अंतिम निर्णय सुना दिया गया। ..और निर्णय के खिलाफ बगावत।

इसके पात्रों में कहीं पिंकी, कहीं रेशमा, कहीं कोई और खड़ी मिलती है। ये काल्पनिक नहीं, इसी समाज की असली पात्र हैं। बिहार के गया जिले के विभिन्न इलाकों की, पर देश की हमउम्र लड़कियों का प्रतिनिधित्व करती हुईं, जिन्होंने उम्र से पहले शादी से इन्कार कर दिया।

चौंका देते हैं आंकड़े..

इंटरनेट, वीडियो कॉलिंग और हर दिन सैकड़ों एप्स के दौर में भी बिहार में बाल विवाह के 39.1 फीसद के आंकड़े चौंका देते हैं, पर उम्मीद हैं ये लड़कियां, जिन्होंने बाल विवाह को न कहा। यह बताना जरूरी है कि इनकी आर्थिक पृष्ठभूमि बहुत अच्छी नहीं, पर हौसले बुलंद हैं।
इसी साल की बात है। बाराचट्टी के बारा गांव की पिंकी की शादी का कार्ड छप गया। परिवार के लोगों ने उसकी एक न सुनी। आठवीं में पढ़ने वाली बच्ची ने यह बात स्कूल में अपनी सहेलियों को बताई। इसके बाद जो हुआ, उसे न्यू जेनरेशन के भारत की एक तस्वीर कह सकते हैं। लड़कियां एक साथ थाने पहुंच गईं।                                                                                                                                                            जब शादी रुकवाने पहुंच गई थाने..    थानाध्यक्ष किसी अनहोनी की आशंका से कांप गए। जब मामला सामने आया तो उनके चौंकने की बारी थी। पिंकी कार्ड लेकर खड़ी थी, अपनी शादी रुकवाने को। कानूनी मसला तो था ही, पर इससे ज्यादा सामाजिक। सो, पंचायत बैठी। परिवार वालों को समझाया गया, पर उनकी समस्या थी कि इस महंगाई में पांच साल बाद और ज्यादा पैसा कहां से लाएंगे? पिंकी ने कहा, इसकी चिंता छोड़ दें। हम पढ़ेंगे। मां-बाप को मानना पड़ा।
बाल विवाह पर छिड़ी बहस..   ऐसा ही एक और मामला आया कोंच के अहियापुर में। आठवीं की छात्र काजल ने शादी से इन्कार कर दिया। एक सुदूर ग्रामीण क्षेत्र में किसी लड़की की बगावत बड़ी बात थी, पर बहस तो छिड़ गई कि बाल विवाह कितना सही? समाज के लिए यही संदेश ज्यादा मायने रखने वाला हुआ। उसे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सम्मानित भी किया।                                                              जिलाधिकारी को लिख दी चिट्ठी  गुरारु! यहां भी रेशमा की शादी कुछ दिनों पहले ही होने वाली थी। स्कूल में पढ़ रही है। उसने स्थानीय प्रशासन को सूचना दी, जांच-पड़ताल भी हुई, लेकिन सामाजिक ‘परंपरा’ की फिर वही कहानी। एक सुदूर इलाके में रहने वाली पंद्रह साल की लड़की के साहस की दाद देनी होगी कि उसने चुपके से जिलाधिकारी को पत्र भेज दिया। पत्र मिलते ही जिलाधिकारी अभिषेक सिंह वहां पहुंचे तो शादी रुकी। परिजनों को समझाया गया।                                                                                                                                             गया की एसएसपी गरिमा मलिक ने कही ये बात   गया की एसएसपी गरिमा मलिक ने कहा कि लड़कियों ने जिस तरह बाल विवाह का विरोध किया है, इसे सामाजिक स्तर पर बड़े के रूप में देखा जाना चाहिए। कानून बने हुए हैं, पर कुछ मामलों में सामाजिक परंपरा के नाम पर चलता है कहते हुए नजरअंदाज भी कर दिया जाता है।                                                                                                                            कारण क्या हैं…  बिहार के गया इलाके की जिन बच्चियों ने ऐसी शादी का विरोध किया, उनके परिजन से बातचीत के दौरान यह निकलकर आया कि आर्थिक विपन्नता बड़ा कारण है। अगर पांच साल बाद शादी करेंगे तो ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ेंगे, इसलिए पंद्रह-सोलह साल में शादी कर दे रहे। शिक्षा का अभाव और सामाजिक परंपरा भी कारण है। जिन लड़कियों ने विरोध किया, उन्होंने बताया कि वे पढ़ना चाहती हैं।

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