नए कश्मीर में केवल राजनीतिक दल ही नहीं वरन अलगाववादी नेता भी अपने लिए नए सियासी विकल्प तलाश रहे
श्रीनगर। जम्मू-कश्मीर में इस समय राजनीतिक गतिविधियां प्रत्यक्ष तौर पर थमी नजर आ रही हैं, लेकिन पर्दे के पीछे नेशनल कॉन्फ्रेंस (नेकां), पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) सरीखे राजनीतिक दलों में ही नहीं अलगाववादी खेमे में भी जबरदस्त हलचल का दौर जारी है। बदले हालात में इन दलों से जुड़े कई नेता और उनके समर्थक अब ऑटोनामी, सेल्फ रूल और इस्लामाबाद के बजाय प्रो-दिल्ली सियासत की तैयारी में लगे हैं। यह लाेग सिर्फ उचित वक्त का इंतजार करते हुए अपने लिए नए सियासी विकल्प तलाश रहे हैं। नेकां और पीडीपी में विभाजन की भी संभावना पैदा हो चुकी है। डाउन-टाउन से संबध रखने वाले नेशनल कॉन्फ्रेंस के एक वरिष्ठ नेता जो गत रोज ही दिल्ली से श्रीनगर पहुंचे हैं, ने कहा कि संगठन में बीते 50 साल में बहुत बदलाव आया है। पार्टी के कई मामलों पर नई पीढ़ी के नेताओं व कार्यकर्त्ताओं की सोच घोषित स्टैंड से अलग रही है। ऑटोनामी का नारा क्या अब चलेगा, क्या नेकां अब राज्य के एकीकरण के लिए लड़ेगी या 1953 से पहले की संवैधानिक स्थिति के लिए। यह तय नहीं है, क्योंकि हमारे सभी शीर्ष नेता जेल में बंद हैं। संगठन में कुछ लोग और कार्यकर्ता अब बदली परिस्थितियों के मुताबिक, नया सियासी एजेंडा अपनाने और ऑटोनामी का नारा छोड़ने पर जोर दे रहे हैं। ऐसे में टकराव की राह संगठन में विभाजन की संभवना को नहीं टाल सकते। मेरी बीते 24 घंटों के दौरान जिन लोगों से बात हुई है, वह कह रहे हैं कि ऑटोनामी अब नहीं मिलेगी। इसलिए जरूरी है कि नेकां अपना सियासी एजेंडा पूरी तरह मुख्यधारा की तरफ मोड़ ले, अन्यथा उन्हें अपना रास्ता अलग चुनना पड़ेगा। उक्त नेता ने कहा कि सांसद अकबर लोन और हसनैन मसूदी से भी मेरी बात हुई है। उन्होंने भी माना कि संगठन में कई कार्यकर्ता इस समय भविष्य की सियासत को लेकर दुविधा में हैं। पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के मीडिया प्रकोष्ठ से जुड़े एक युवा नेता ने कहा अब तो पूरी राजनीति का रूप ही बदल गया है। बीते कुछ साल से संगठन में जारी अंतर्कलह अब और जोर पकड़ेगी। कई नेता जो इस समय हिरासत में हैं या नजरबंदी से बचे हैं, अगर जल्द ही किसी अन्य संगठन का हिस्सा बनने का एलान कर दें तो हमें हैरान नहीं होना चाहिए।
जब केंद्र ने राज्य को विभाजित कर दिया है, ऐसे में सेल्फ रूल का राजनीतिक एजेंडा किस आधार पर आगे बढ़ेगा। महबूबा मुफ्ती समेत सभी प्रमुख नेता बंद हैं। पीडीपी में बहुत से ऐसे नेता हैं, जो कांग्रेस, नेकां व अन्य दलों से आए हैं, वह घर वापसी करेंगे या कोई नया ठिकाना तलाशेंगे। हालांकि, अगर रियासत की सियासत में रहना है तो हमें बदलाव के साथ बदलना होगा।
राजबाग स्थित हुर्रियत कॉन्फ्रेंस मुख्यालय से कुछ ही दूरी पर रहने वाले हुर्रियत की दूसरी पंक्ति के एक नेता ने कहा बीते 15 दिनों में कश्मीर की स्थिति ने साफ कर दिया है कि आम लोग इस बदलाव का प्रत्यक्ष-परोक्ष समर्थन कर रहे हैं। यह हम जैसे सियासतदानों के लिए सबक है। मेरी कई लड़कों से बातचीत हुई है, जो हमें मौजूदा हालात के लिए जिम्मेदार ठहरा रहे हैं और अब मुख्यधारा की सियासत की बात करते हैं। हर आदमी की अपनी राय है, मुझे लग रहा है कि हुर्रियत के समर्थकों का भी एक बड़ा धड़ा दिल्ली की सियासत करना चाहता है। ऐसे हालात में हमें अगर यहां टिकना है तो हमें भी अपना एजेंडा बदलना होगा। आजादी और ऑटोनामी की बात छोड़नी होगी। नई शुरुआत विकास के नारे के साथ करनी होगी। हां, हम अपने लिए जम्मू-कश्मीर को एक राज्य के रूप में स्थापित करने का नारा अपना सकते हैं। यही विकल्प नजर आता है।
कश्मीर मामलों के विशेषज्ञ और वरिष्ठ पत्रकार रशीद ने कहा इस समय यहां सभी राजनीतिक दलों व हुर्रियत से जुड़े सभी वरिष्ठ नेता बंद हैं। एक बात तय है कि अब यहां ऑटोनामी, सेल्फ रूल के साथ-साथ आजादी के नारे की सियासत भी किसी हद तक खत्म ह हो गई है। अब यहां नई सियासत जो मेरी राय के मुताबिक प्रो दिल्ली होगी, विकास के लिए होगी, शुरू होगी। पीडीपी, नेकां यहां तक कि हुर्रियत को भी अपना सियासी एजेंडा नए सिरे से तय करना होगा। नेकां और पीडीपी में विभाजन भी हो सकता है। हुर्रियत से जुड़े कई नेताओं की सियासत भी पूरी तरह बदली होगी और वह किसी नए सियासी मंच पर होंगे या प्रो-दिल्ली सियासत करने वाले किसी पुराने दल के दफ्तर में बैठे होंगे। एक वरिष्ठ अलगाववादी नेता के पत्रकार भाई ने अपना नाम न छापे जाने की शर्त पर कहा कि यहां लोग अक्सर अलगाववादी नेताओं की भूमिका और विश्वसनीयता पर सवाल उठाते आए हैं। वह आरोप लगाते रहे हैं कि हुर्रियत नेताओं ने अपने घरों को भरा और आम नौजवानों को मरवाया है।
केंद्र ने जो फैसला किया है, उससे हुर्रियत की सियासत कहीं की नहीं रही है। रही-सही कसर पाकिस्तान के रवैये ने पूरी कर दी है। जहां तक मेरी जानकारी और समझ है, हुर्रियत खेमे से जुड़ा कैडर ही नहीं, कश्मीर के युवाओं का एक बड़ा कैडर अब प्रत्यक्ष परोक्ष रूप से विकास, लोकतंत्र, सामाजिक न्याय जैसे मुद्दों पर मुख्यधारा की सियासत के लिए तैयार बैठा है। नेकां और पीडीपी की खानदानी सियासत खत्म हो गई है, हुर्रियत की सियासत भी समाप्त है। इसलिए नए चेहरे या फिर परंपगरात राजनीतिक दलों से जुड़े लोग चाहे वह किसी भी धारा से हों, अब मुख्यधारा की सियासत ही करेंगे।