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खुले में शौच ना जाने की कसम खाई और घर में खुद के हाथों से बनाकर दिखा दिया शौचालय

गोपालगंज । सबसे ज्यादा इज्जत जरूरी है और इज्जतघर के बिना कोई इज्जत करे, यह संभव नहीं था- यह कहकर रो पड़ती हैं। गोपालगंज जिले के कोन्हवां पंचायत की दो महिलाएं जो उम्र के इस मुकाम पर हैं जिसे देखकर आप भी सोचने के लिए मजबूर हो जाएंगे कि उन्होंने खुद से अपने हाथों शौचालय बना लिया है। ये कहानी कोन्हवां पंचायत की 55 वर्षीय मेहरुना खातून और 60 वर्षीय जगरानी देवी की है जिनके जज्बे को जिलाधिकारी ने भी सलाम किया है। दोनों महिलाओं ने खुले में शौच ना जाने की कसम खाई और अपनी गरीबी के बावजूद घर में खुद के हाथों से शौचालय बनाकर दिखा दिया है। उन्होंने जता दिया है कि ठान लो तो कोई भी काम मुश्किल नहीं है। जिलाधिकारी ने इन दोनों को माला पहनाकर पुरस्कार दिया तो इन दोनों की आंखों से खुशी के आंसू बह निकले। गरीबी की आंचल में स्वच्छता के फूल खिलाने वाली कोन्हवां की 55 वर्षीय मेहरुना खातून और  60 वर्षीय जगरानी देवी ने घूम-घूमकर लोगों से भीख मांगी और अपने घर में खुद के हाथों से ईंट जोड़-जोड़कर इज्जत घर बना लिया है। बेहद गरीबी में जीवन बसर कर रही ये दोनों महिलाएं अब अपने इलाके के लोगों के लिए प्रेरणास्त्रोत बन गई हैं। इन दो महिलाओं के जज्बे के देख कर अब आसपास की पंचायतों की महिलाएं भी अपने घरों में शौचालय बनाने के लिए आगे आ गई हैं।

सम्मानित होने के बाद मेहरून खातून ने बताया कि भीख मांगकर परिवार चलाने के कारण उन्हें कभी सम्मान नहीं मिला। लोग नीची निगाह से देखा करते थे लेकिन स्वच्छ भारत अभियान के लिए इस पहल ने उनका दर्जा बढ़ा दिया है। लोग अब सम्मान की नजरों से देख रहे हैं। अपने घर में शौचालय बन जाने से मेहरुन खातून तथा जगरानी देवी दोनों खुश हैं। मेहरुन खातून ने बताया कि इज्जत सबसे बड़ी चीज है। शौचालय महिलाओं के सम्मान से जुड़ा है। इसलिए लोगों से पैसा मांग कर अपने घर में शौचालय बनवाया। वहीं जगरानी देवी कहती हैं कि अब शौच के लिए घर के दहलीज से बाहर नहीं जाना पड़ता है।दोनों ने भी निपट गरीबी के हालातों के बावजूद शौचालय बनाकर मिसाल कायम की है। ठीक से हिंदी या भोजपुरी न बोल सकने के बावजूद अपने काम से इन्होंने लोगों तक अपना संदेश पहुंचा दिया है। दोनों ही महिलाओं ने अपनी कार्यशैली से लोगों को एक सबक दिया है कि स्वच्छता के लिए बस जज्बे की जरुरत है, न कि सिर्फ पैसों की।बता दें कि जिला प्रशासन आगामी दो अक्टूबर तक पूरे जिले को खुले से शौच मुक्त बनाने के लिए व्यापक पैमाने पर अभियान चला रहा है। इस अभियान के तहत हर  पंचायत में स्वच्छताग्रही तैनात किए गए हैं। ये स्वच्छता ग्रही  गांव-गांव जाकर लोगों को अपने घरों में शौचालय बनाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। पदाधिकारियों की टीम भी गांवों में रात्रि चौपाल लगा कर वहां पूरी रात विश्राम कर रहे हैं। इस दौरान हर घर से दो रोटी मांग कर लोगों के साथ बैठ कर खाना खाने के साथ उन्हें शौचालय के महत्व के बारे में बता रहे हैं। कोन्हवां में भी बीते 27 जून को पदाधिकारियों की टीम ने रात्रि चौपाल लगाया था। जिसमें सभी घरों की महिलाएं दो रोटी लेकर इस चौपाल में आई थीं तथा अपने घर में शौचालय बनाने के लिए संकल्प दिया था। इन महिलाओं में मेहरुन खातून तथा जगरानी देवी भी शामिल थीं। लेकिन इन दोनों महिलाओं के हाथ में रोटी नहीं थी। गरीबी के कारण मुश्किल से दो जून पेट भर रहीं ये दोनों महिलाएं रोटी ला भी कैसे सकती थीं। लेकिन रात्रि  चौपाल से जाने के बाद इन दोनों महिलाओं का शौचालय बनाने के लिए लिया गया संकल्प याद रहा।इन्होंने अपने दम पर अपने घर में शौचालय बनाने के लिए प्रयास शुरू कर दिया। शुरुआत में तो इन दोनों महिलाओं की घर की हालत को देखते हुए कोई मदद के लिए आगे नहीं आया। लेकिन लगातार प्रयास के बाद लोग मदद के लिए आगे आने लगे। लोगों के मदद के लिए आगे आने के बाद मेहरुन खातून ने लोगों के घर से पैसा मांग कर अपने घर में शौचालय का निर्माण किया।जगरानी देवी की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। इन्होंने भी लोगों की मदद तथा मेहनत मजदूरी कर जमा किए गए कुछ रुपये से खुद अपने हाथों से अपने घर में शौचालय बनाया। इन दोनों महिलाओं के स्वच्छता के प्रति इस जज्बे को देखकर पंचायत में आयोजित कार्यक्रम में जिलाधिकारी ने इन्हें सम्मानित किया।इस पंचायत के मुखिया मनोज कुमार सिंह कहते हैं कि मेहरुन खातून तथा जगरानी देवी जैसी महिलाओं के जज्बे के कारण ही कोन्हवां पंचायत खुले से शौच मुक्त पंचायत बन सकी है। इन दोनों महिलाओं के इस जज्बे को पूरे पंचायत के लोग सलाम करते हैं। पंचायत के हर घर में अब शौचालय बन गया है। लोग खुले में शौच करने की जगह अब अपने घर में बने इज्जत घर को इस्तेमाल कर रहे हैं।

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