Uttarakhandजन संवाद
कहीं यह एक प्रयोग तो नहीं
हाल ही में पता चला कि कुछ मुसलमानों द्वारा बद्रीनाथ में नमाज अदा की गई। कहने को तो इसे स्वतंत्रता का नाम दे दिया जाएगा। बड़े बड़े वक्ता इसे सही साबित करने में कोई कसर नही छोड़ेंगे।
लेकिन साथ ही एक मौलाना का वीडियो वायरल होता है जिसमे बद्रीनाथ का स्वामित्व किसी बदरुदीन के नाम बताया जाता है और हिंदुओं को उक्त स्थान खाली करने के साथ साथ सरकार के लिये भी चेतावनी दी जाती है। आखिर यह क्या है? क्या हिंदुओ के इस या कोई और पवित्र स्थान पर इस तरह की कार्यवाही को अनुमति दी जा सकती है। पहली बात तो उद्देस्य बिल्कुल स्पष्ट है फिर भी यदि कोई इसे साधारण गतिविधि या कोई अन्य स्वरूप देकर न्याययोचित ठहराना चाहे तो इसके परिणाम आनेवाले किसी भी समय भयंकर होकर देवभूमि की शांति और पवित्रता को भंग कर सकते है।आश्चर्य होता है हमे हमारी सरकार पर। क्या यह भी कोई राजनीतिक मजबूरी हो सकती है या केवल निर्बलता और उदासीनता ,? आज इसे गंभीरता से नही लिया गया तो कल दूसरे धर्म के लोग कलियर शरीफ को कालिका का स्थान बताकर गंगाजल चढ़ाने का भी प्रयास कर सकते है या भोले का शंखनाद कर सकते हैं। तो क्या फिर भी सरकार खड़े खड़े तमाशा देखती रहेगी? क्या इस देश की अदालतों को सिर्फ यही मामले निपटाने का काम रह जाएगा?
मैं किसी व्यक्ति की धार्मिक आस्था पर प्रश्न नही उठाना चाहता लेकिन यदि किसी व्यक्ति को दूसरे धर्म के पूजा स्थल में जाना है तो जाइये लेकिन उसे उसी पूजा स्थल के नियम का पालन करना चाहिए जो कम से कम हिंदुओ और मुसलमानों के बीच तो संभव प्रतीत नही लगता। जिस प्रकार किसी मस्जिद में रामायण और गीता का संकीर्तन नही हो सकता उसी प्रकार किसी मंदिर प्रांगण में नमाज भी अदा नहीं की जा सकती। हिन्दू तो एक बार मजार पर सजदा कर लेता है लेकिन क्या किसी मुसलमान से मंदिर में हाथ जोड़कर नमन करने की आशा की जा सकती है?अतः सभी को शांति और राष्ट्रीय एकता के लिए एक दूसरे की पूजा पद्धति औऱ आस्था का सम्मान करना चाहिए। विषय गंभीर है अतः सरकारों को समय रहते ऐसी घटनाओं को गंभीरता से लेते हुए कठोर कार्यवाही करनी चाहिये वरना आनेवाले समय मे साम्प्रदयिकता का ऐसा ज्वालामुखी फटेगा कि खड़े खड़े गुबार देखते रह जाएंगे।
लेखकः-ललित मोहन शर्मा
चेयरमैन
बिल्ड इंडिया फोरम