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जो लड़की कभी दिल्ली तक नहीं गयी वो अब जायेगी अमेरिका

हापुड़। नारी स्वास्थ्य जागरूकता को लेकर बनी फिल्म ‘पीरियड एंड ऑफ सेंटेंस’ ऑस्कर के लिए नामांकित हुई है। यह फिल्म हापुड़ जिले के गांव काठी खेड़ा की एक लड़की पर फिल्माई गई है। यह लड़की सहेलियों संग मिलकर अपने ही गांव में सबला महिला उद्योग समिति में सेनेटरी पैड बनाती है। यह पैड गांव की महिलाओं के साथ नारी सशक्तीकरण के लिए काम कर रही संस्था एक्शन इंडिया को भी सप्लाई किया जाता है। अपनी इस उपलब्धि से सभी खुश हैं और अमेरिका जाने के लिए तैयारी कर रहे हैं। फिल्म में दिखाया गया है कि जब एक महिला से पीरियड के बारे में पूछा गया तो वह कहती है मैं जानती हूं पर बताने में मुझे शर्म आती है। जब यही बात स्कूल के लड़कों से पूछी गई तो उसने कहा कि यह पीरियड क्या है? यह तो स्कूली की घंटी बजती है, उसे पीरियड कहते हैं।

साहस नहीं जुटाती तो फिल्म में कैसे करती काम  साधारण छोटे किसान राजेंद्र की 22 साल की बेटी स्नेह ने बचपन से ही पुलिस में भर्ती होने का ख्याब संजोया था। आज तक वह हापुड़ से आगे दूसरे शहर भी नहीं गई। उसके लिए तो पिता और परिवार ही सब कुछ हैं। स्नेह कहती हैं कि उसने बीए तक पढ़ाई हापुड़ के एकेपी कॉलेज से की। मैं तो पुलिस में भर्ती होने की तैयारी में लगी थी। इसी बीच मेरी रिश्ते की भाभी सुमन जो ‘एक्शन इंडिया’ संस्था के लिए काम करती थीं, बताया कि संस्था गांव में सेनेटरी पैड बनाने की मशीन लगाने वाली है। क्या तुम इसमें काम कर पाओगी, तो मैंने सोचा कि पैसे कमाकर अपनी कोचिंग की फीस इकट्ठा कर लूंगी। मां उर्मिला से बात की तो उन्होंने हामी भर दी। पिता को बताया गया कि संस्था बच्चों के डायपर बनाने का काम करती है।

शर्माऊंगी तो फिल्म में कैसे काम करूंगी  एक दिन संस्था की ओर से हापुड़ जिले में काॅडिनेटर का काम देखने वाली शबाना के साथ कुछ विदेशी लोग आए। उन्होंने बताया कि महिलाओं के पीरियड के विषय को लेकर एक फिल्म बनानी है। मैंने साहस जुटाया और सोचा कि अगर मैं शर्माऊंगी, तो फिल्म में कैसे काम करूंगी। मैंने कुछ देर सोचने के बाद फिल्म में काम करने के लिए हामी भर दी। गांव में कुछ दिन शूटिंग हुई और फिल्म बनकर तैयार हो गई। फिल्म बनाने वाले विदेशी भी लौट गए। करीब एक साल बाद पता चला कि फिल्म को आॅस्कर के लिए चुना गया है।

अब तो अमेरिका जाना है  यह बताते हुए स्नेह की आंखें नम हो जाती हैं। कहती हैं कि मैंने सिर्फ आॅस्कर के बारे में सुना था। पता चला कि इस फिल्म के लिए मुझे अमेरिका जाना होगा, तो मेरी खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा। मैं आज बहुत उत्साहित और डरी हुई भी हूं। मुझे समझ ही नहीं आ रहा है कि मुझे करना क्या है। मेरे साथ सबला समिति की संचालिका सुमन को भी अमेरिका आॅस्कर के कार्यक्रम में बुलाया गया है। मेरा और सुमन का पासपोर्ट बन चुका है। आगे क्या करना है, मुझे यह भी नहीं मालूम। मुझे बताया गया है कि हवाई जहाज से अमेरिका जाना है। मेरा सपना तो बस दिल्ली या यूपी पुलिस में भर्ती होना है। इसके लिए मैंने परीक्षा भी दी है। मैं आज भी उसके लिए तैयारी कर रही हूं।

गांव से अमेरिका जाने वाली पहली लड़की होगी स्नेह  सेनेटरी पैड बनाने में साथ काम करने वाली स्नेह की सहेली राखी का सपना है कि वह आगे चलकर टीचर बने। उसका कहना है कि कि हम सभी समझ रहे थे कि यह फिल्म महिलाओं को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करने के लिए बन रही है। अब जब यह फिल्म आॅस्कर के लिए नॉमिनेट हुई है तो इस फिल्म में दिखाई गईं सभी सातों लड़कियां और गांव के सभी लोग खुश हैं। स्नेह ने फिल्म में मुख्य भूमिका निभाई है इसलिए उसे अमेरिका बुलाया गया है। यह हम सभी के लिए गर्व के बात है कि आज से पहले इस गांव से कोई अमेरिका नहीं गया था। साथ में काम करने वाली अर्शी बताती हैं कि दीदी को आॅस्कर के लिए बुलाया गया है। इसको लेकर पूरे गांव में चर्चा रहती है। वह कहती हैं कि हमें भी दीदी की तरह ही बड़ा काम करना है, जिससे गांव और देश का नाम रोशन हो।

गांव में प्रतिदिन तैयार हो रहे हैं छह सौ सेनेट्री पैड  सबला समिति की संचालिका और आॅस्कर के लिए नोमिनेटिड हुईं सुमन कहती हैं कि मेरा जन्म दिल्ली के लाजपत नगर में हुआ था। मैं दसवीं तक ही पढ़ पाई थी। तभी मेरी शादी गांव काठीखेड़ा में हो गई। जब मैं गांव में आई तो यहां बिजली नहीं आती थी। मेरा मन था कि गांव की महिलाओं के लिए कुछ करूं। मैंने पति बलराज से बात की तो पति ने भी इसके लिए अनुमति दे दी। वर्ष 2010 में एक्शन इंडिया से जुड़ी और गांव में महिलाओं के स्वास्थ्य, शिक्षा के लिए जागरूक किया और दो हजार महिलाओं को स्वयं सहायता समूह से जोड़ा। वर्ष 2017 में महिलाओं के रोजगार के लिए डायरेक्टर गौरी चौधरी से बात की, तो उन्होंने गांव में पैड अरुणाचलम मुरूगनंतम की बनाई हुई मशीन लगाने की व्यवस्था की। आज गांव में सात लड़कियां मिलकर प्रतिदिन छह सौ सेनेटरी पैड तैयार करती हैं। इस काम में लगीं लड़कियों को ढाई-ढाई हजार रुपये मेहनताना के रूप में दिया जाता है।

आसान नहीं था पीरियड पर फिल्म बनाना  एक्शन इंडिया के लिए हापुड़ जिले में कवॉडिनेटर का काम देखने वाली शबाना बताती हैं कि वह संस्था से 1997 में जुड़ी थीं। शुरुआती दौर में घरेलू हिंसा के लिए काम किया। इसमें घरेलू झगड़ों को सुलझाया बाद में इसको लेकर कानून भी बना। आज जिस फिल्म को आॅस्कर मिला है, फिल्म तो केवल 30 मिनट की है, लेकिन इसके पीछे लंबा संघर्ष जुड़ा है। जिस विषय पर फिल्म बनीं वह इतना गंभीर है कि उस पर दो महिलाएं यदि आपस में बात कर रही होती हैं और तीसरी महिला के आने पर बात बंद कर देती हैं। संस्था की डायरेक्टर गौरी दीदी ने बताया कि अमेरिका की फिल्म डायरेक्टर राइका और निर्देशिका गुनीत मोगा महिलाओं के स्वास्थ्य को लेकर एक डॉक्‍यूमेंट्री फिल्म बना रही हैं। कुछ दिन बाद कुछ विदेशियों के साथ गुनीत मोगा और मंदाकनी आकर मिलीं। उन्होंने विषय बताया, तो एक बार तो झटका लगा कि जिस विषय पर बात करना भी मुश्किल है, उसको दर्शाना बड़ी बात है। सुमन के पति बलराज, देवर सिंहराज सिंह, स्नेह के पिता राजेंद्र, मां उर्मिला देवी, राखी के पिता बिजेंद्र और संस्था में काम करने वाली सातों लड़कियों से बात की। कुछ दिक्कतों के बाद सभी ने सहमति जता दी। इस फिल्म को बनाते समय डर के अंदर काम किया। फिल्म में कुछ एेसे दृश्य दर्शाए गए हैं, जो नारी की व्यक्तिगत गोपनीयता से संबंध रखते हैं। फिल्म में दिखाया गया है कि किस तरह से गांव की महिलाएं पीरियड के समय इस्तेमाल करने वाले कपड़े को रात के समय खेतों में छिपाती हैं। गांव में आज भी पीरियड के समय महिलाएं स्वास्थ्य के प्रति जागरूक नहीं हैं। वह सेनेटरी पैड का इस्तेमाल नहीं करतीं। वह आज भी गंदे कपड़े को पीरियड के समय इस्तेमाल करती हैं जो बहुत ही हानिकारक होता है।

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