अब मिड-डे मील में नहीं होगा कोई घपला, स्कूलों से जुड़ी मिड-डे मील योजना को सरकार अब ज्यादा पारदर्शी बनाएगी
नई दिल्ली। स्कूलों से जुड़ी मिड-डे मील योजना को सरकार अब ज्यादा पारदर्शी बनाएगी। सरकार ने इसे लेकर बड़े स्तर पर कोशिश शुरू की है। इसके तहत राज्यों को हर महीने मिड-डे मील के लाभार्थियों की सही संख्या बतानी होगी। ऐसा ना करने पर राज्यों की वित्तीय मदद रोकी जा सकती है। योजना के तहत अब तक राज्यों की ओर से लाभार्थियों की सही संख्या देने के बजाय औसत संख्या ही बताई जाती थी। जो उनकी ओर से तीन से छह महीने में भेजी जाती है।
लाभार्थियों की औसत संख्या बताकर राज्य लेते है वित्तीय मदद केंद्र सरकार की इस योजना से जुड़े अधिकारियों के मुताबिक औसत संख्या की आड़ में अब तक राज्यों में मिड-डे मील के नाम पर भारी घालमेल किया जा रहा था, लेकिन इसे अब वह डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (डीबीटी) स्कीम की तरह पारदर्शी बनाने की कोशिश कर रहे है। इसके लिए राज्यों को हर महीने योजना के लाभार्थियों की सही संख्या बतानी होगी, जो आधार से लिंक होंगे। सरकार की कोशिश है कि इससे कोई भी जरूरतमंद वंचित ना हो। साथ ही ज्यादा संख्या बताकर राज्यों की ओर से जो ज्यादा फंड लिया जा रहा है, उस पर तत्काल रोक लगाई जा सके। जो राज्य इनमें असफल रहेंगे, उनकी वित्तीय मदद रोकी जा सकती है। हाल ही में सरकार ने मिड-डे मील की गुणवत्ता को बेहतर बनाने के लिए सोशल ऑडिट कराने की दिशा में काम शुरु किया है। इसके तहत खाने की गुणवत्ता की जांच में स्थानीय लोगों को ही शामिल किया जाएगा।