सिद्धारमैया का बड़ा सियासी दांव, लिंगायत समुदाय को मिलेगा धार्मिक अल्पसंख्यक का दर्जा
बेंगलुरु: कर्नाटक कैबिनेट ने लिंगायत और वीरशैव लिंगायत समुदाय को धार्मिक अल्पसंख्यक दर्जा देने की केंद्र से सिफारिश करने का आज फैसला किया। प्रदेश में होने जा रहे विधानसभा चुनाव के महज कुछ महीने पहले राज्य सरकार के इस कदम ने एक बड़ा विवाद पैदा कर दिया है। कांग्रेस नीत कर्नाटक सरकार के इस फैसले का राजनीतिक प्रभाव देखने को मिल सकता है। इस समुदाय को कांग्रेस की ओर आकर्षित करने की मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की एक कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है।
दरअसल, भाजपा के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार बीएस येदियुरप्पा लिंगायत समुदाय से आते हैं। ये समुदाय राज्य में संख्या बल के हिसाब से मजबूत और राजनीतिक रूप से प्रभावशाली है। राज्य में लिंगायत/वीरशैव समुदाय की कुल आबादी में 17 प्रतिशत की हिस्सेदारी होने का अनुमान है। इन्हें कांग्रेस शासित कर्नाटक में भाजपा का पारंपरिक वोट माना जाता है।
भाजपा ने कैबिनेट के फैसले की आलोचना की है, जिसने सिद्धारमैया पर वोट बैंक की राजनीति के लिए आग से खेलने और अंग्रेजों की ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति को आगे बढ़ाने का आरोप लगाया। समुदाय को धार्मिक अल्पसंख्यक का दर्जा दिए जाने के मुद्दे पर मंत्रियों में असहमति की खबरों के बीच कैबिनेट बैठक में कर्नाटक राज्य अल्पसंख्यक आयोग की सिफारिशों पर विचार किया गया।
कानून मंत्री टीबी जयचंद्र ने कैबिनेट की एक बैठक के बाद संवाददाताओं से कहा कि इसने इस मुद्दे पर राज्य सरकार द्वारा गठित एक विशेषज्ञ समिति की सिफारिशें स्वीकार कर ली है। उन्होंने कहा कि कैबिनेट में आमराय से यह फैसला लिया गया। उन्होंने कहा कि आयोग ने विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट के आधार पर लिंगायत और वीरशैव लिंगायत समुदाय को धार्मिक अल्पसंख्यक दर्जा देने पर विचार करने की सिफारिश की थी। उन्होंने कहा कि इसे केंद्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम की धारा दो के तहत अधिसूचित कराने के लिए भी केंद्र सरकार को भेजे जाने का फैसला किया गया है।
जयचंद्र ने कहा कि कैबिनेट का फैसला मौजूदा अल्पसंख्यकों के अधिकारों और हितों को प्रभावित नहीं करेगा। समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि कर्नाटक में लिंगायतों को धार्मिक अल्पसंख्यक माना जा सकता है। दो बार इस विषय को टालने के बाद आखिरकार कैबिनेट इस मुद्दे पर सहमत हुई। उन्होंने कहा, ‘‘गहन चर्चा के बाद यह फैसला लिया गया।’’
इस बीच, भाजपा महासचिव पी मुरलीधर राव ने एक ट्वीट में कहा कि कांग्रेस भारत में अंग्रेजों की फूट डालो और राज करो की नीति को आगे बढ़ा रही है। उन्होंने कहा, ‘‘कांग्रेस चुनाव से पहले यह क्यों कर रही है? उसने चार साल पहले यह क्यों नहीं किया?’’
राज्य में विपक्षी भाजपा ने इस फैसले की आलोचना की है। विधानसभा में विपक्षी नेता जगदीश शेट्टार ने कहा कि सिद्धरमैया सरकार राजनीति की खातिर, चुनाव को ध्यान में रखते हुए समाज को बांट रही है। उन्होंने कहा कि यह फैसला कांग्रेस के लिए नुकसानदेह होगा। शेट्टार ने कहा कि सिद्धरमैया सरकार मुद्दे को केंद्र के पाले में डालने की कोशिश कर रही। उन्होंने कहा, ‘‘यह महज एक नाटक है। लोग उन्हें मुंहतोड़ जवाब देंगे।’’
वीरशैवों का नेतृत्व करने वाले एक संत एवं बलेहोनुर स्थित रम्भापुरी पीठ के श्री वीर सोमेश्वर शिवाचार्य स्वामी ने कैबिनेट फैसले की निंदा करते हुए आरोप लगाया कि कुछ लोगों की साजिश के बाद सिफारिश स्वीकार की गई। लेकिन वीरशैव मिल कर इसके खिलाफ लड़ेंगे। साथ ही, कानूनी राह अपनाने की योजना बनाई जा रही। विशेषज्ञ समिति के मुताबिक लिंगायत और वीरशैव लिंगायत समुदाय वे हैं, जो 12वीं सदी के समाज सुधारक संत बासव के दर्शन में यकीन रखते हैं।