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हरियाणा के राजनीतिक घरानों में कलह कोई नयी बात नहीं

चंडीगढ़। हरियाणा में राजनीतिक घरानों के बीच पारिवारिक कलह नई नहीं है। देश की राजनीति में भरपूर दखल रखने वाले हरियाणा के तीनों लाल परिवारों के सदस्य अपने राजनीतिक वर्चस्व के लिए एक दूसरे को पीछे धकेलते रहे हैं। देवीलाल का परिवार हो या फिर बंसीलाल और भजनलाल की राजनीतिक विरासत को संभालने की जंग, हर दौर में नई पीढ़ी के बीच टकराव सामने आता रहा है।

देवीलाल के साथ बंसी और भजनलाल परिवारों में होती रही विरासत की जंग  देवीलाल के परिवार में राजनीतिक जंग दूसरी बार हो रही है। पहली बार देवीलाल के चार बेटों प्रताप चौटाला, ओमप्रकाश चौटाला, रणजीत सिंह और जगदीश चौटाला के बीच राजनीतिक विरासत को संभालने की जिद्दोजहद छिड़ी। इसमें ओमप्रकाश चौटाला कामयाब रहे। प्रताप चौटाला एक बार विधायक बने और रणजीत सिंह कांग्रेस की राजनीति करते हुए संसद की दहलीज तक पहुंचे। जगदीश चौटाला राजनीतिक विरासत की जंग में कुछ खास नहीं कर पाए, लेकिन आगे इन चारों के पुत्र-पुत्रियों के बीच वर्चस्व की लड़ाई अब भी कायम है। देवीलाल परिवार की दूसरी जंग अब ओमप्रकाश चौटाला के बेटों और पोतों के बीच चल रही है। अजय सिंह चौटाला और अभय चौटाला हालांकि इस जंग से अछूते रहे, लेकिन अजय चौटाला के बेटे दुष्यंत चौटाला और ओमप्रकाश चौटाला के बेटे अभय चौटाला के बीच वर्चस्व की लड़ाई चल रही है। चाचा-भतीजे की इस लड़ाई में दादा ओमप्रकाश चौटाला के सामने ऐसा धर्मसंकट पैदा हो गया कि वे किसके सिर पर अपना हाथ रखें।

बंसीलाल के दोनों बेटों में खिंची रही तलवारें, भजनलाल के बेटे भी हो चुके थे अलग  हरियाणा की राजनीति के अतीत में जाएं तो पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल का परिवार भी राजनीतिक जंग का अखाड़ा रहा है। बंसीलाल के बेटे रणबीर महेंद्रा और सुरेंद्र सिंह ने अलग-अलग राजनीति की। सुरेंद्र सिंह अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनकी धर्मपत्नी किरण चौधरी कांग्रेस विधायक दल की नेता के नाते कांग्रेस की राजनीति में अच्छा खासा दखल रखती हैं। किरण चौधरी की बेटी श्रुति चौधरी भिवानी-महेंद्रगढ़ से सांसद रह चुकी हैं। बंसीलाल के दामाद सोमवीर सिंह की अलग ही राजनीति है। वह भी कांग्रेस के विधायक रह चुके हैं।

चौटाला परिवार में दूसरी बार सामने आई राजनीतिक विरासत की जंग  राजनीति के पीएचडी माने जाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल के परिवार में कई बार कलह देखी जा चुकी है। भजनलाल के निधन के बाद कुलदीप बिश्नोई ने हरियाणा जनहित कांग्रेस बना ली और चंद्रमोहन पिछली हुड्डा सरकार में उप मुख्यमंत्री रहे। अब हालांकि चंद्रमोहन व कुलदीप इकट्ठा राजनीति कर रहे हैं, लेकिन दोनों ने अपनी अगली पीढ़ी को आगे बढ़ाने के लिए काम शुरू कर दिया है। कुलदीप बिश्नोई की धर्मपत्नी रेणुका बिश्नोई भी राजनीति में अपनी अच्छी पहचान बना चुकी हैं।

भारतीय राजनीति में क्षेत्रीय दलों के बीच भी कलह  भारतीय राजनीति में क्षेत्रीय दलों की पारिवारिक कलह भी किसी से छिपी नहीं है। बिहार में लालू प्रसाद के राष्ट्रीय जनता दल में उनके दोनों बेटों तेजस्वी और तेजप्रताप के बीच मतभेद खुलकर सामने आ रहे हैं तो उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी से उनके छोटे भाई शिवपाल यादव अलग हो चुके हैं। तमिलनाडू की डीएमके में दोनों भाइयों की राह अलग हो चुकी है। पंजाब के अकाली दल में सुखबीर बादल और उनके चचेरे भाई मनप्रीत बादल भी जुदा हो गए हैं। महाराष्ट्र में राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे की लड़ाई तो अब पुरानी पड़ चुकी है।

इस तरह से समझिए चौटाला परिवार की राजनीतिक जंग  ओमप्रकाश चौटाला इनेलो के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। जेबीटी शिक्षक भर्ती मामले में जेल में बंद चौटाला जेल से ही पार्टी के सारे अहम फ़ैसले लेते हैं। पार्टी की शक्ति का दूसरा केंद्र ओपी चौटाला के छोटे बेटे अभय सिंह को माना जाता है। अजय सिंह चौटाला की पत्नी नैना सिंह चौटाला विधायक हैं। उनके दो बेटे हैं। दुष्यंत सिंह हिसार से सांसद और छोटे बेटे दिग्विजय सिंह इनसो के अध्यक्ष हैं। इन दोनों को ही आेमप्रकाश चौटाला ने पार्टी से निलंबित किया है। अजय सिंह चौटाला के भाई अभय सिंह हरियाणा विधानसभ में नेता प्रतिपक्ष हैं। अभय सिंह के भी दो बेटे हैं। करण सिरसा ज़िला परिषद के उपाध्यक्ष हैं और साथ में भारतीय ओलंपिक संघ के भी उपाध्यक्ष हैं। दूसरे बेटे अर्जुन परिवार के साथ सिरसा ज़िले में अपने खेतों को देखते हैं। अभय की पत्नी कांता चौटाला ने 2016 में ज़िला परिषद का चुनाव लड़ा था, लेकिन हार मिली थी। कांता को आदित्य देवी लाल से ही हार का सामना करना पड़ा था। आदित्य देवी लाल भी इसी परिवार से हैं। आदित्य ओपी चौटाला के भाई के बेटे हैं। आदित्य और अनिरुद्ध बीजेपी में शामिल हो गए हैं।

2019 के लिए इस जंग के क्या मायने हैं  2014 के हरियाणा विधानसभा चुनाव में इनेलो को 24 फ़ीसदी वोट मिले थे और 90 सदस्यों वाली विधानसभा में 18 सीटों पर जीत मिली थी। पार्टी उम्मीदवारों के चयन की ज़िम्मेदारी ओपी चौटाला के पास है और वे ही तय करेंगे कि हिसार से दुष्यंत को अब लोकसभा का टिकट मिलेगा या नहीं। दिग्विजय के भविष्य का फ़ैसला भी ओपी चौटाला ही करेंगे। अभय चौटाला भी चाहेंगे कि उनके भी दोनों बेटों को टिकट मिले। आेम प्रकाश चौटाला और अजय सिंह चौटाला दोनों जेल में हैं, ऐसे में मुख्यमंत्री के उम्मीदवार को लेकर भी स्थिति साफ़ नहीं है।

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