बदरीनाथ। केदारनाथ स्थित ध्यान गुफा में करीब 18 घंटे से ज्यादा समय व्यतीत करने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शनिवार की सुबह गुफा से बाहर निकले। इसके बाद उन्होंने केदारनाथ में पूजा अर्चना की। वहीं, पत्रकारों से कहा कि मैं भगवान से मांगता नहीं हूं। मांगना मेरी प्रवृति नहीं है। केदारनाथ में पूजा अर्चना के बाद वह बदरीनाथ के लिए रवाना होंगे। जहां वह भगवान बदरी विशाल की आराधना करेंगे। इसके लिए श्री बदरीनाथ मंदिर समिति ने भी पूरी तैयारी कर ली है। चुनावी आपाधापी के बीच सातवें एवं अंतिम चरण के मतदान से ठीक एक दिन पहले शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र सिंह मोदी उत्तराखंड पहुंचे। यहां केदारनाथ धाम में वह पूरी तरह से आध्यात्मिक रंग में रंगे नजर आए। इस दौरान उन्होंने गर्भगृह में रुद्राभिषेक किया तो मंदिर की परिक्रमा भी की। दोपहर बाद करीब दो बजे वह साधना के लिए एकांत स्थल की तरफ गए। मंदिर से 1.5 किलोमीटर दूर ध्यान गुफा में उन्होंने रात बिताई। इससे पहले उन्होंने अपने ड्रीम प्रोजेक्ट केदारनाथ पुनर्निर्माण कार्यों का निरीक्षण किया था।
लिया प्रकृति का आनंद प्रधानमंत्री मोदी शनिवार की सुबह ध्यान गुफा से बाहर आए और उन्होंने गुनगुनी धूप का आनंद लिया। इस दौरान उन्होंने योग भी किया। इसके बाद वह केदारनाथ मंदिर के लिए पूजा अर्चना केे लिए पैदल चल दिए। इस दौरान प्रधानमंत्री ने प्रकृति के सौंदर्य का भी भरपूर आनंद लिया। ध्यान गुफा से मंदिर तक के करीब डेढ़ किलोमीटर के रास्ते पर वह कई स्थान पर रुके। उन्होंने आसपास की पहाड़ियों को निहारा। एक स्थान पर प्राकृतिक स्रोत से उन्होंने पानी भी पिया। साथ ही वह रास्ते में एक बैंच पर भी बैठे। केदारनाथ में पीएम की सुबह की पूजा की तैयारी के लिए मंदिर में यात्रियों के प्रवेश पर रोक लगा दी गई। केदारनाथ धाम पहुंचकर पीएम ने मंदिर में पूजा के लिए प्रवेश किया। यहां उन्होंने भगवान भोले की पूजा अर्चना की। गृभगृह में पूजा के बाद वह बाहर आए और भगवान नंदी की पूजा के साथ ही मंदिर परिसर की परिक्रमा की। इसके बाद वह बदरीनाथ के लिए रवाना होंगे। पीएम मोदी की बदरीनाथ यात्रा को लेकर श्री बदरी-केदार मंदिर समिति के अध्यक्ष मोहन प्रसाद थपलियाल ने बताया कि पीएम हेलीपैड से सीधे समिति के वीवीआइपी गेस्ट हाउस में पहुंचेंगे। जहां से वे मंदिर में पूजा-अर्चना के लिए जाएंगे। इसके बाद प्रधानमंत्री सिंह द्वार से बाहर आएंगे, जहां पर माणा के जनजाति के लोगों के जरिए बनाई गई ऊन की शॉल भेंट की जाएगी।