Uttarakhandजन संवाद

यह उद्घघाटन की कैसी राजनीति

पिछले कुछ दिनों से मैंने कई बार आगाह किया कि वर्तमान समय प्रचार करने का नही बल्कि शांति से देश सेवा करने का है। लेकिन प्रचार के द्वारा महत्ता पाने के लोलुप कहाँ मानते हैं और माने भी तो चाटुकार मानने नही देते। आखिर वही हुआ जो संभावित था। रोजमर्राह के कष्टों से तंग आकर जनता नेताओ की प्रचारवादी कार्यशेली पर फुट पड़ी। पहले ऋषिकेश में उद्दघाटन के कारण जनता को दो घण्टे इंतज़ार कराने के कारण विधान सभा अध्यक्ष को सरे आम खरी खोटी सुनाई गई। फिर मुख्यमंत्री के उद्घघाटन कार्यक्रम में दो घण्टे इंतज़ार करने पर कार्यक्रम से ही लाइव आलोचना वायरल हुई और अब हरियाणा के हिसार में जनाक्रोश। आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? क्या हमारे नेता वास्तव में संवेदन हीन हो गए हैं? त्रासदी के इस समय लाशों के अम्बार के बीच अपने फोटो खिंचवाकर और खुद लोकडौन का उल्लंघन कराते नेता आखिर क्या चाहते हैं?अपनी कौन सी अच्छी छवि समाज के सामने प्रस्तुत कर रहे हैं। मैंने आगाह किया था कि जनता भोली हो सकती है बेवकूफ नही। जनता सब समझती है। कैसे यह त्रासदी उत्पन्न हुई ,कैसे इससे निपटा जा रहा है , सरकार के क्या इंतजाम है , कौन सेवा कर रहा है और कौन इसमें खलल डाल रहा है। कुछ भी जनता से छिपा नही है। जिसे सुविधा नही मिल पा रही है वो नेताओ के फोटो देखकर न ठीक होगा औऱ न ही जय बोलेगा बल्कि उसकी अंतरात्मा क्या बोलेगी इसका अनुमान सहज लगाया का सकता है। नेताओ को तय करना चाहिये कि गंभीरता के साथ अपनी जिम्मेदारी निभाये या अपना प्रचार करे। जैसी मेहनत वैसा फल।
        क्या बिना उदघाटन वैक्सीन नही लग सकती या हॉस्पिटल आरम्भ नही हो सकते? यदि उदघाटन इतना ही जरूरी है तो सेना की पहली गोली, पहले संस्कार का उदघाटन भी होना चाहिये। इतनी लाशों के संस्कार और प्रचार का मौका फिर कहाँ मिलेगा। पहुंच जाइये अपनी मृत जनता के साथ फोटो खिंचवाने और शान से उसे अपनी जनता का बलिदान घोषित कर दीजिये।अफसोस होता है जब संस्कारो की बात करने वाले जनता के दुखों पर मलहम लगाने से पहले फ़ोटो खिंचवाना नही भूलते। जनता को अधिकार नही कि अपने परिवार का विधिवत संस्कार भी कर सके लेकिन नेता तो नेता ठहरे, बिना समर्थकों की भीड़ के किसी की अंतिम यात्रा में न जाए।
       अगर प्रधान मंत्री औऱ मुख्य मंत्री तक आवाज पहुचे तो जन भावनाओ की कद्र करते हुए ऐसे प्रदर्शन और प्रचार पर रोक लगाते हुए दुख की घड़ी में शांति के साथ जनसेवा और अपना दायित्व पूरा किये जाने का प्रबंध करें । सूचनाएं साधारण रूप से भी प्रसारित की जा सकती है।जितनी चाहे प्रेस विज्ञप्ति जारी की जा सकती है।वरना यह चारित्रिक खेल आनेवाले समय मे भारी पड़ सकता है।
लेखकः-ललित मोहन शर्मा

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