तमिलनाडु के ऐतिहासिक शहर महाबलीपुरम में होगी PM नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति की ऐतिहासिक मुलाकात
नई दिल्ली। चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के भारत दौरे का कार्यक्रम तय हो गया है। चिनफिंग 11-12 अक्टूबर को भारत दौरे पर रहेंगे। 11 अक्टूबर को वह चेन्नई पहुंचेंगे। चेन्नई में वह भारत और चीन के बीच दूसरे अनौपचारिक शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेंगे। अपने भारत दौरे के सबसे अहम चरण में वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात करेंगे। उनकी यह मुलाकात तमिलनाडु के ऐतिहासिक शहर महाबलीपुरम में होगी। महाबलीपुरम शहर का इतिहास इसकी चीन से करीबी को बताता है। यही वजह रही कि इसे दोनों नेताओं की मुलाकात के लिए चुना गया। भारत और चीन के लिए कई लिहाज से ये मुलाकात अहम होने वाली है, चाहे वो राजनैतिक, कूटनीतिक संबंध हों या व्यापारिक। इस मुलाकात के लिए विशेष तौर पर महाबलीपुरम का चुना जाना एक खास मकसद की ओर इशारा करता है। आइए जानते हैं महाबलीपुरम के ऐतिहासिक महत्व और उसके चीन से संबंधों के बारे में..
कहां है महाबलीपुरम ? महाबलीपुरम तमिलनाडु जिले में बसा एक ऐतिहासिक नगर है। यह कांचीपुरन शहर में बसा है। चेन्नई से करीब 55 किमी दूर स्थित महाबलीपुरम अपने विशालकाय मदिरों और समुदी तटों के लिए मशहूर है। यहां के स्मारक और वास्तुकला ऐतिहासिक होने के साथ ही बेहत खूबसूरत भी है। यहां मंदिरों की वास्तुकला से मन मोहित हुए बिना नहीं रह सकता।
क्यों ऐतिहासिक है ? महाबलीपुरम बंगाल की खाड़ी के किनारे बसा चेन्नई से करीब 60 किलोमीटर दूर बसा एक शहर है। इसके इतिहास की बात की करेंगे तो इसकी स्थापना 7वीं सदी में पल्लव वंश के राजा नरसिंह देव बर्मन ने की थी। राजा नरसिंह को मामल्ल के नाम से भी जाना जाता था। इन्हीं के नाम पर इस शहर का नाम महाबलीपुरम रखा गया। महाबलीपुरम को एक और नाम मामल्लपुरम से भी जाना जाता है।
चीन से कैसे है नाता ? महाबलीपुरम शहर का चीन के साथ एक ऐतिहासिक रिश्ता रहा है। इसकी जानकारी भारतीय पुरातत्व विभाग ने दी है। भारतीय पुरातत्व विभाग के के एक शोध में इसके चीन से गहरे लगाव सामने आए। इस शोध में चीन, फारस और रोम के प्राचीन सिक्के काफी संख्या में मिले। इन सिक्कों से अंदाजा लगाया गया कि महाबलीपुरन शहर प्राचीन समय में एक व्यापारिक बंदरगाह रहा होगा। इतना ही नहीं इस शोध से यह भी पता चला कि भारत इसी बंदरगाह के जरिए चीन के साथ अपने व्यापारिक रिश्ते चलाता होगा। चीन के अलावा भारत इस बंदरगाह का इस्तेमाल पश्चिम और दक्षिण पूर्व एशिया के कई देशों में व्यापार करने के लिए भी करता रहा होगा। इस तरह इस ऐतिहासिक जगह से चीन के खास रिश्ते की पहचान होती है।
महाभारत पर आधारित शिल्पकला महाबलीपुरम के पास एक पहाड़ी है, जिसके ऊपर एक दीपस्तम्भ बना हुआ है। कहा जाता है कि ये दीपस्तम्भ समुद्री यात्राओं को सुरक्षित बनाने के लिए बनवाया गया था। यहां पांच रथ और एकाश्म मंदिर हैं। कहा जाता है कि इससे पहले यहां सात मंदिर थे, पांच रथ और एकाश्म मंदिर को इन्हीं सात मंदिरों का अवशेष बताया जाता है। इन सात मंदिरों की वजह से महाबलीपुरम को सप्तगोडा भी कहा जाता है।महाबलीपुरम के अंदर महाभारत काल से जुड़े कई प्रसंगों का जिक्र किया गया है। यहां इससे जुड़ी कलाकृतियों का भी निर्माण किया गया है।