सपा बसपा के चुनावी गठजोड़ में शामिल होने के लिए राष्ट्रीय लोकदल बैचेन
नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश में सपा बसपा के चुनावी गठजोड़ में शामिल होने के लिए राष्ट्रीय लोकदल बैचेन है, जिसके लिए वह कुछ भी करने को तैयार है। इसी के तहत रालोद नेतृत्व अपनी पारंपरिक चुनावी लोकसभा सीट कैराना व मथुरा तक छोड़ सकता है। जबकि सपा बसपा ने अपने गठबंधन की औपचारिक घोषणा के दिन रालोद को पूछा तक नहीं। लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट मतदाताओं को छोड़ने का मोह सपा बसपा गठबंधन भी नहीं छोड़ पा रहा है। इसी के चलते पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपनी पैठ मजबूत बनाने के लिए गठबंधन भी अपनी शर्तों पर रालोद को साथ लेकर चलने में कोई हर्ज नहीं समझता है। सपा बसपा को अपने चुनावी गठजोड़ पर बहुत भरोसा है। तभी तो वो राज्य के अन्य छोटे दलों को बहुत भाव देने के मूड में नहीं रहा है। लोकसभा के बीते चुनाव में रालोद प्रमुख चौधरी अजित सिंह को अपनी पारंपरिक बागपत में बुरी तरह पराजय का मुंह देखना पड़ा था। जबकि उनके सुपुत्र जयंत चौधरी को जाट बहुल संसदीय सीट मथुरा में भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ीं फिल्म नायिका हेमा मालिनी से पराजय मिली थी। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में फली फूली रालोद के लिए वर्ष 2014 का लोकसभा चुनाव बेहद दुखद साबित हुआ था। सूत्रों के मुताबिक सपा बसपा गठबंधन किसी भी हाल में तीन से अधिक सीटें देने को तैयार नहीं है। जबकि रालोद छह सीटों की रट लगाये बैठा है। अखिलेश व जयंत चौधरी की मुलाकात के बाद रालोद को दी जाने वाली सीटों का अंतिम फैसला अजित सिंह और मायावती के बीच होने वाली बैठक में लिया जा सकता है। सूत्र बताते हैं कि रालोद नेता अजित सिंह अपनी पारंपरिक सीट बागपत से जहां जयंत चौधरी को चुनाव लड़ाना चाहते हैं, वहीं खुद मुजफ्फर नगर सीट से उतरने की तैयारी में हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश का मथुरा संसदीय क्षेत्र जाट बहुल है, जिसमें सर्वाधिक साढ़े चार लाख जाट मतदाता हैं। सपा यहां से अपना प्रत्याशी रालोद के चुनाव चिन्ह हैंडपंप पर लड़ाने की सोच रही है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव यहां से अपने नजदीकी सहयोगी को चुनाव लड़ाना चाहते हैं। बताया जा रहा है कि रालोद की जिद पर एक सुरक्षित सीट हाथरस उसे और दी जा सकती है।