रामलला की ओर से 30 साल पहले जन्मभूमि पर मालिकाना हक का दावा करने वाला मुकदमा हाईकोर्ट के एक पूर्व न्यायाधीश ने किया था दाखिल
नई दिल्ली। अयोध्या में राम जन्मभूमि पर मालिकाना हक के मुकदमें में एक पक्षकार भगवान राम भी हैं। रामलला ने अदालत में जन्मभूमि पर अपना दावा पेश करते हुए मालिकाना हक मांगा है। सुप्रीम कोर्ट में आजकल उनकी ओर से बहस हो रही है। रामलला की ओर से 30 साल पहले जन्मभूमि पर मालिकाना हक का दावा करने वाला मुकदमा हाईकोर्ट के एक पूर्व न्यायाधीश ने भगवान राम का निकट मित्र बन कर दाखिल किया था। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2010 में अयोध्या राम जन्मभूमि मामले में दिए गए फैसले में सिर्फ रामलला का मुकदमा मंजूर किया था। बाकी के मुकदमें (निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड) खारिज कर दिए थे।
रामलला के मुकदमें में ही हाईकोर्ट ने जन्मभूमि को तीन बराबर हिस्सों में बांटने का आदेश दिया था, जिसमें एक हिस्सा भगवान रामलला विराजमान को दिया गया था। रामलला को वही हिस्सा दिया गया, जहां वे विराजमान हैं। दूसरा हिस्सा निर्मोही अखाड़ा और तीसरा हिस्सा सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को देने का फैसला हाईकोर्ट ने सुनाया था।
सुप्रीम कोर्ट में रामलला की मुख्य दलीलों में एक दलील यह भी है कि जब मुकदमा उनका मंजूर हुआ तो फिर जन्मभूमि का हिस्सा उन लोगों को कैसे बांट दिया गया जिनका मुकदमा खारिज हो गया था और जो उनके (रामलला) के मुकदमें में प्रतिवादी थे। रामलला की ओर से फैजाबाद की जिला अदालत में 1989 में जन्मभूमि पर मालिकाना हक का दावा दायर किया गया था। यह मुकदमा इलाहाबाद हाईकोर्ट के सेवानिवृत न्यायाधीश देवकी नंदन अग्रवाल ने भगवान राम का निकट मित्र बनकर दाखिल किया था। आगे चल कर यही मुकदमा लीडिंग केस बना और इलाहाबाद हाईकोर्ट का मुख्य फैसला भी इसी मुकदमें में सुनाया गया। इस केस को वाद संख्या पांच कहा गया। कानून की निगाह में मंदिर में विराजमान भगवान एक कानूनी व्यक्ति माने जाते हैं और उन्हें सारे वही अधिकार प्राप्त हैं जो किसी जीवित व्यक्ति को प्राप्त होते हैं। भगवान की कानूनी हैसियत है, लेकिन कानून की निगाह में भगवान नाबालिग माने जाते हैं और उनकी ओर से उनका निकट मित्र (नेक्स्ट फ्रैंड) मुकदमा दाखिल कर सकता है। वैसे तो राम जन्मभूमि का मुकदमा बहुत पहले से अदालत में लंबित था, लेकिन उन मुकदमों में भगवान को पक्षकार नहीं बनाया गया था।
पहला मुकदमा गोपाल सिंह विशारद ने 1950 में दाखिल किया था। जिसमें जन्मस्थान में रखी गई मूर्तियों को वहां से हटाने पर रोक लगाने और रामलला की अबाधित पूजा अर्चना की मांग की गई थी।
दूसरा मुकदमा निर्मोही अखाड़ा ने 1959 में दाखिल किया जिसमें रिसीवर को हटाकर राम जन्मभूमि पर कब्जा और प्रबंधन दिये जाने की मांग की गई।
तीसरा मुकदमा 1961 में सुन्नी सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड ने दाखिल किया जिसने वहां मस्जिद होने का दावा करते हुए वक्फ संपत्ति के आधार पर मालिकाना हक मांगा।
कोर्ट के आदेश से राम जन्मभूमि में रिसीवर नियुक्त हो चुका था, लेकिन किसी भी मुकदमें में भगवान रामलला को पक्षकार नहीं बनाया गया था। हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश देवकी नंदन अग्रवाल ने सेवानिवृत होने के बाद राम जन्मभूमि विवाद में भगवान राम की ओर से निकट मित्र बन कर मुकदमा दाखिल किया था।
जस्टिस अग्रवाल 1977 से 1983 तक इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश रहे। उन्होंने सेवानिवृत होने के बाद 1 जुलाई 1989 में रामलला की ओर से यह मुकदमा दाखिल किया। देवकी नंदन अग्रवाल की मृत्यु हो चुकी है और आजकल उनकी जगह त्रिलोकी नाथ पांडेय रामलला के मुकदमें में निकट मित्र की हैसियत से जुड़ गए हैं। सुप्रीम कोर्ट में इस वक्त रामलला की पैरवी पूर्व अटार्नी जनरल के. परासरन कर रहे हैं। वरिष्ट वकील सीएस वैद्यनाथन और हरीश साल्वे भी रामलला की ओर से कोर्ट में पक्ष रखेंगे।