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राहुल गांधी ने एक बार फिर राफेल डील का मुद्दा उठाया जबकि फ्रांस सरकार ने बयान जारी कर कहा कहा था कि भारत के साथ समझौता गोपनीय है

नई दिल्‍ली । कांग्रेस अध्‍यक्ष राहुल गांधी ने एक बार फिर राफेल डील का मुद्दा उठाया है। जबकि संसद में राहुल गांधी द्वारा मामला उठाए जाने के बाद फ्रांस सरकार ने बयान जारी कर कहा कहा था कि भारत के साथ 2008 में किया गया सुरक्षा समझौता गोपनीय है। फ्रांस के यूरोप एवं विदेश मामलों के मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा था कि हमने भारतीय संसद में राहुल गांधी के बयान को देखा-सुना, फ्रांस और भारत के बीच 2008 में एक सुरक्षा समझौता हुआ था, जिसके चलते दोनों देश सभी सुरक्षा उपकरणों की ऑपरेशनल तथा सुरक्षा क्षमताओं को प्रभावित कर सकने वाली पार्टनर द्वारा उपलब्ध करवाई गई गोपनीय जानकारी को छिपाने के लिए कानूनी तौर पर बाध्य हैं। यही प्रावधान स्वाभाविक रूप से 23 सितंबर, 2016 को हुए उस सौदे पर भी लागू होते हैं, जो 36 राफेल विमानों तथा उनके हथियारों की खरीद के लिए हुआ। जवाब देते हुए रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था कि राफेल विमान सौदों में कीमत को गुप्त रखने की शर्त तत्कालीन यूपीए सरकार के दौरान हुई डील में निहित है, जिसका उनकी सरकार पालन कर रही है। संसद में अविश्‍वास प्रस्‍ताव के दौरान जवाब देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि विपक्ष ने राफेल पर देश को गुमराह किया है। राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों में संसद में ऐसे बचकाने बयान दिए गए जिसे खुद दोनों देशों की सरकार को खारिज करना पड़ा। इससे देश की छवि को नुकसान होता है। इससे बचना चाहिए।’इसके बावजूद राहुल गांधी ने जयपुर में कांग्रेस प्रतिनिधि सम्मेलन में एक बार फिर राफेल डील का मुद्दा उठाया और कहा कि ‘यूपीए के शासनकाल में सरकार ने एक विमान 540 करोड़ रुपए में खरीदा था लेकिन वर्तमान बीजेपी सरकार ने उसी एक विमान की खरीद के लिए फ्रांस की कंपनी को 1600 करोड़ रुपए दिए। पीएम मोदी ने इस घोटाले पर चुप्पी साध रखी है।’ बार-बार इस मुद्दे का उठाकर 2019 के चुनावों में राहुल गांधी राजनीतिक मुद्दा बनाना चाहते हैं, जबकि यह मुद्दा परवान नहीं चढ़ रहा है।

अनर्गल आरोप लगा रही है कांग्रेस : रविशंकर प्रसाद   राहुल गांधी की आचोलना करते हुए केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि रॉफेल डील की कीमत के बारे में राहुल गांधी को ये बताना चाहिए कि सौदे की कीमत क्या था। सच तो ये है कि यूपीए सरकार ने डील की कीमत जितनी तय की थी, उसकी तुलना में एनडीए सरकार ने डील की कीमत 9 फीसद कम तय की।रविशंकर प्रसाद ने कहा कि राहुल गांधी इतने हताश हो गए है कि झूठ बोलने की पराकाष्ठा कर रहे है। राहुल गाँधी अपने झूठे प्रचार के क्रम में देश हित की कितनी अनदेखी करेंगे? रविशंकर प्रसाद ने कहा कि कांग्रेस की तो ये आदत रही है कि जब वो सत्ता में नहीं रहते हैं तो तरह तरह के झूठ बोलते रहते हैं। कांग्रेस की तरफ से जब जब आरोप लगाए गये वो गलत साबित हुए। किसी भी तरह से कांग्रेस सत्ता में आना चाहती है लिहाजा वो अनर्गल आरोप लगा रही है।

पल्‍लवी जोशी ने इशारों-इशारों में समझाया, क्‍या है राफेल डील अभिनेत्री पल्लवी जोशी ने एक वीडियो पोस्ट जारी किया है वो बड़ी ही गंभीरता के साथ समझा रहीं हैं कि आख़िर राफेल डील है क्या? फिल्ममेकर और सोशल एक्टिविस्ट विवेक अग्निहोत्री की पत्नी पल्लवी जोशी कहती हैं – “कल हमारे सोसायटी की AGM थी। वहां सभी मुझसे पूछने लगे यह राफेल डील क्या है? तो मुझे अचानक से ख्याल आया, हमारे बिल्डिंग के कई सारे ताले को अपग्रेड करने की बात पिछले कई सालों से चल रही थी। पुराने सेक्रेटरी किसी फ्रेंच कंपनी से डील की बातें कर रहे थे, जो हमें पासवर्ड सुरक्षित ताले देने वाले थे लेकिन 10 साल हो गए। उन्होंने कुछ किया ही नहीं तो जब मैं सेक्रेटरी बनी तब मुझे पता चला कि पुराने सेक्रेटरी तो सिर्फ लॉक खरीदने की बात कर रहे थे। भई उसका क्या फायदा अगर उसके साथ डोर फोन न हों।

अब इतनी उन्‍न्‍त टेक्नोलॉजी के ताले खरींदेगे तो उसके साथ उसका मरम्‍मत और रखरखाव पर भी तो खर्चा होगा। साथ ही जैसे-जैसे टेक्नोलॉजी अपग्रेड होगी, हमें उन ताले को भी अपग्रेड करना होगा। अब इन सभी चीजों की कीमत प्रति लॉक्स 10 हजार रुपये से भी आगे जा रही थीतो मैंने उसी फ़्रांस कंपनी के टॉप बॉस से बात की। मुझे पता चला की ऑनपेपर तो कोई समझौता है ही नहीं और पुराने सेक्रेटरी जो ताले 5000 रूपये में खरीदने का दावा कर रहे थे, वो तो मैंने 4000 में ही खरीद लिए और फिर मैंने इस पूरी डील के लिए री- निगोशिएट किया l साथ में यह शर्त भी रख दी कि लॉक्स के कुछ पार्ट्स हमारे अपने भारत में बनेंगे ताकि आगे चल कर कुछ परेशानी हो जाए तो हमें बार-बार विदेश न भागना न पड़े। यह सारी डील मैंने 7000 में पक्की की। अब कहाँ उनके 10000 और कहाँ मेरे 7000 रूपये”। पल्लवी आगे कहती हैं “राफेल डील भी यही है। अब एक तो हमें फाइटर प्लेन सस्ते में मिल गए। साथ ही हमें मिसाइल मिल गए जो हम भारत से ही दुश्मन देशों तक दूर दूर तक चला सकते हैं। इसके साथ साथ प्लेन के कई पार्ट्स हमारे अपने देश में बनेंगे और सबसे अहम बात इस पूरी डील ने भारत ने 12,500 करोड़ रुपयों की बचत की है। पुराने सेक्रेटरी कल ही विदेश से लौटे और आते साथ ही झूठ-मूठ के सवाल करने लगे। तो मैंने उनसे कहा भाई साहब आप अपनी आलू की फैक्ट्री संभालिये और सोसायटी की सुरक्षा हम पर छोड़ दीजिये। इजी है न।’ पल्लवी का ये पोस्ट सोशल मीडिया पर काफ़ी ट्रेंड हो रहा है।

आइये जानते हैं क्‍या है राफेल समझौता  वायु सेना को अपनी क्षमता बढ़ाने के लिए कम से कम 42 लडा़कू स्क्वाड्रंस की जरूरत थी, लेकिन उसकी वास्तविक क्षमता घटकर महज 34 स्क्वाड्रंस रह गई। इसलिए वायुसेना की मांग पर 126 लड़ाकू विमान खरीदने का सबसे पहले प्रस्ताव अटल बिहारी वाजपेयी की एनडीए सरकार ने रखा था, लेकिन इस प्रस्ताव को कांग्रेस सरकार ने आगे बढ़ाया। रक्षा खरीद परिषद, जिसके मुखिया तत्कालीन रक्षा मंत्री एके एंटोनी थे, ने 126 एयरक्राफ्ट की खरीद को अगस्‍त 2007 में मंजूरी दी थी। यहां से ही बोली लगने की प्रक्रिया शुरू हुई। इसके बाद आखिरकार 126 विमानों की खरीद का आरएफपी जारी किया गया। राफेल की सबसे बड़ी खासियत ये है कि ये 3 हजार 800 किलोमीटर तक उड़ान भर सकता है।

छह फाइटर विमानों में से चुना गया था राफेल  यह डील उस मीडियम मल्‍टी-रोल कॉम्‍बेट एयरक्राफ्ट (एमएमआरसीए) कार्यक्रम का हिस्सा है, जिसे रक्षा मंत्रालय की ओर से इंडियन एयरफोर्स (आईएएफ) लाइट कॉम्‍बेट एयरक्राफ्ट और सुखोई के बीच मौजूद अंतर को खत्‍म करने के इरादे से शुरू किया गया था। खबरों के अनुसार एमएमआरसीए की प्रतियोगिता में अमेरिका के बोइंग एफ/ए-18ई/एफ सुपर हॉरनेट, फ्रांस का डसॉल्‍ट राफेल, ब्रिटेन का यूरोफाइटर, अमेरिका का लॉकहीड मार्टिन एफ-16 फाल्‍कन, रूस का मिखोयान मिग-35 और स्वीडन के साब जैस 39 ग्रिपेन जैसे एयरक्राफ्ट शामिल थे। छह फाइटर जेट्स के बीच राफेल को इसलिए चुना गया क्योंकि राफेल की कीमत बाकी जेट्स की तुलना में कम थी। इसका रख-रखाव भी सस्‍ता था।

कई सालों तक लटकी डील   वायुसेना ने कई विमानों के तकनीकी परीक्षण और मूल्यांकन किए और साल 2011 में यह घोषणा की कि राफेल और यूरोफाइटर टाइफून उसके मानदंड पर खरे उतरे हैं। साल 2012 में राफेल को एल-1 बिडर घोषित किया गया और इसके मैन्युफैक्चरर दसाल्ट ए‍विएशन के साथ कॉन्ट्रैक्ट पर बातचीत शुरू हुई. लेकिन आरएफपी अनुपालन और लागत संबंधी कई मसलों की वजह से साल 2014 तक यह बातचीत अधूरी ही रही।

यूपीए सरकार में नहीं हो पाया समझौता  यूपीए सरकार के दौरान इस पर समझौता नहीं हो पाया क्योंकि खासकर टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के मामले में दोनों पक्षों में गतिरोध बन गया था। दसाल्ट एविएशन भारत में बनने वाले 108 विमानों की गुणवत्ता की जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं थी। दसाल्ट का कहना था कि भारत में विमानों के उत्पादन के लिए 3 करोड़ मानव घंटों की जरूरत होगी, लेकिन एचएएल ने इसके तीन गुना ज्यादा मानव घंटों की जरूरत बताई, जिसके कारण लागत कई गुना बढ़ जानी थी।

मोदी सरकार ने किया समझौता  साल 2014 में जब नरेंद्र मोदी सरकार बनी तो उसने इस दिशा में फिर से प्रयास शुरू किया। पीएम की फ्रांस यात्रा के दौरान साल 2015 में भारत और फ्रांस के बीच इस विमान की खरीद को लेकर समझौता किया। इस समझौते में भारत ने जल्द से जल्द 36 राफेल विमान फ्लाइ-अवे यानी उड़ान के लिए तैयार विमान हासिल करने की बात कही। समझौते के अनुसार दोनों देश विमानों की आपूर्ति की शर्तों के लिए एक अंतर-सरकारी समझौता करने को सहमत हुए। समझौते के अनुसार विमानों की आपूर्ति वायु सेना की जरूरतों के मुताबिक उसके द्वारा तय समय सीमा के भीतर होनी थी और विमान के साथ जुड़े तमाम सिस्टम और हथियारों की आपूर्ति भी वायुसेना द्वारा तय मानकों के अनुरूप होनी है। इसमें कहा गया कि लंबे समय तक विमानों के रखरखाव की जिम्मेदारी फ्रांस की होगी। सुरक्षा मामलों की कैबिनेट से मंजूरी मिलने के बाद दोनों देशों के बीच 2016 में आईजीए हुआ। समझौते पर दस्तखत होने के करीब 18 महीने के भीतर विमानों की आपूर्ति शुरू करने की बात है यानी 18 महीने के बाद भारत में फ्रांस की तरफ से पहला राफेल लड़ाकू विमान दिया जाएगा।

सरकार ने कहा, 12,600 करोड़ रुपये बचाए  एनडीए सरकार ने दावा किया कि यह सौदा उसने यूपीए से ज्यादा बेहतर कीमत में किया है और करीब 12,600 करोड़ रुपये बचाए हैं । सरकार का दावा है कि पहले भी टेक्नोलॉजी स्‍थानांतरण की कोई बात नहीं थी, सिर्फ मैन्युफैक्चरिंग टेक्नोलॉजी की लाइसेंस देने की बात थी लेकिन मौजूदा समझौते में ‘मेक इन इंडिया’ पहल किया गया है। फ्रांसीसी कंपनी भारत में मेक इन इंडिया को बढ़ावा देगी।

कांग्रेस ने उठाए सवाल  विपक्ष सवाल उठा रहा है कि अगर सरकार को आंकड़े सार्वजनिक करने में क्या दिक्कत है। कांग्रेस नेताओं का कहना है कि यूपीए 126 विमानों के लिए 54,000 करोड़ रुपये दे रही थी, जबकि मोदी सरकार सिर्फ 36 विमानों के लिए 58,000 करोड़ दे रही है। कांग्रेस का आरोप है कि एक प्लेन की कीमत 1555 करोड़ रुपये हैं, जबकि कांग्रेस 428 करोड़ में रुपये में खरीद रही थी।

एचएएल का मामला  सौदे के आलोचकों का कहना है कि यूपीए के सौदे में विमानों के भारत में एसेंबलिंग में सार्वजनिक कंपनी हिंदुस्तान एयरक्राफ्ट लिमिटेड को शामिल करने की बात थी। भारत में यही एक कंपनी है जो सैन्य विमान बनाती है. लेकिन एनडीए के सौदे में एचएएल को बाहर कर इस काम को एक निजी कंपनी को सौंपने की बात कही गई है।

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