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नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने हरियाणा सरकार को लगाई फटकार, कहा कि लोगों की कब्र पर औद्योगिक विकास नहीं किया जा सकता

नई दिल्ली। हरियाणा सरकार को प्रदूषण फैलाने वाले कारखानों की निरीक्षण अवधि घटाने का निर्देश देते हुए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने गुरुवार को कहा कि लोगों की कब्र पर औद्योगिक विकास नहीं किया जा सकता। लिहाजा, हवा और पानी की गुणवत्ता की कीमत पर औद्योगिक विकास नहीं किया जाना चाहिए। पिछले कुछ समय से दिल्‍ली में वायु प्रदूषण का स्‍तर खतरनाक स्‍तर पर पहुंच गया है। एनजीटी चेयरमैन जस्टिस आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि बहुत ज्यादा प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों के मामलों में निरीक्षणों की अवधि घटाने और और निरीक्षणों की संख्या बढ़ाने की जरूरत है। पीठ ने कहा, ‘प्रशासनिक प्रक्रियाओं पर कोई आपत्ति नहीं हो सकती। बाधाओं में कमी की जा रही है, उनका सरलीकरण किया जा रहा है और उन्हें छोटा किया जा रहा है। औद्योगिक वृद्धि और रोजगार सृजन कार्यक्रमों को बढ़ावा दिया जा रहा है, लेकिन साथ ही ऐसे कदमों को हवा और पानी की खराब हो रही गुणवत्ता के खिलाफ संतुलित करने की जरूरत है।’

‘ग्रीन कैटेगरी’ पर भी निगरानी जरूरी  एनजीटी ने कहा कि कम प्रदूषण फैलाने वाली ‘ग्रीन कैटेगरी’ पर भी निगरानी रखने की जरूरत है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ‘ग्रीन’ दर्जे का सही अर्थो में इस्तेमाल किया जा रहा है।

तय की निरीक्षण अवधि  ट्रिब्यूनल ने कहा कि हवा और पानी की गुणवत्ता के संबंध में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) सुनिश्चित करे कि सभी राज्यों में नीतियों में संशोधन किया जाए। नीति में जल प्रदूषण रोकथाम एवं नियंत्रण अधिनियम, 1974 और वायु प्रदूषण रोकथाम एवं नियंत्रण अधिनियम, 1981 के तहत निरीक्षण का प्रावधान हो। इस संबंध में कार्रवाई रिपोर्ट अगली तारीख से पहले ईमेल के जरिये दाखिल की जा सकती है। एनजीटी ने हरियाणा सरकार को निर्देश दिया कि सर्वाधिक प्रदूषण फैलाने वाले 17 कैटेगरी के उद्योगों में निरीक्षण की अवधि तीन महीने, रेड कैटेगरी के उद्योगों में छह महीने, ओरेंज कैटेगरी के उद्योगों में एक साल और ग्रीन कैटेगरी के उद्योगों में दो साल होगी।

पेयजल उपलब्ध कराने के निर्देश  ट्रिब्यूनल ने हरियाणा के मुख्य सचिव को निर्देश दिया कि सीपीसीबी की रिपोर्ट में इंगित की गई खामियों के खिलाफ सुधारात्मक उपाय सुनिश्चित किए जाने चाहिए खासकर भूजल में फ्लोराइड के संबंध में, जहां प्रभावित आबादी को समयबद्ध तरीके से पेयजल उपलब्ध कराने की जरूरत है।

हरियाणा में 11 जिलों के भूजल में फ्लोराइड

एनजीटी ने यह निर्देश शैलेष सिंह की याचिका पर सुनवाई के दौरान जारी किए। याचिका में मांग की गई है कि जल प्रदूषण रोकथाम एवं नियंत्रण अधिनियम, 1974 और वायु प्रदूषण रोकथाम एवं नियंत्रण अधिनियम, 1981 के तहत जरूरी अनुमति के बिना चल रही औद्योगिक इकाइयों को बंद किया जाए। याचिका में उस खबर का हवाला दिया है जिसके मुताबिक दक्षिण और पश्चिम हरियाणा में 11 जिलों के अधिकांश इलाकों में नाइट्रेट या फ्लोराइड की अधिकता से खारेपन के कारण भूजल पीने योग्य नहीं है।

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