Uttarakhand
किसान आंदोलन,किसानों की समस्याओं पर ध्यान कम, राजनीति ज्यादा
देश का अनोखा आंदोलन समस्या के निदान के पास जाकर राजनीतिक दलों का खेल बनता जा रहा है। किसानो के अमूल्य कृषि समय नष्ट हो रहा है। गन्ने की कटाई और रबी की बुआई का उच्च समय चल र्षस है। यदि किसान आंदोलित रहेंगें तो देश का बहुत बड़ा नुकसा न होगा। इसलिये जो लोग भी इस आंदोलन को अनावश्यक भड़का रहे हैं वे किसानों का हित नही , देश के हितों के विरुद्ध कार्य कर रहे हैं। यह सोचना ही गलत है कि मोदी जैसे प्रधान मंत्री के रहते किसान विरोधी कानून बन सकता है। आवश्यकता है कि राजनीतिक नेताओ का कान पकड़कर आंदोलन की सीमा से दूर निकालकर वास्तविक समस्या पर किसान भाई सीधे बात करें। अपने पक्ष को बिंदुवार रखें और सरकार का बिंदुवार स्पष्टीकरण सुने। ऐसी कोई समस्या नही है जो बातचीत से हल नही हो सकती। बड़े बड़े युद्धों के कारण बहुत बड़े नुकसान के बाद भी हल बातचीत से ही निकलता है।
मैं स्वयं किसान पुत्र हूँ और किसानी से पिछले पचास साल से जुड़ा हूँ। मैंने किसानों की छोटी से छोटी और बड़ी समस्या को नजदीक से देखा है।महाजन से लेकर सहकारी और उतपादन मंडी समितियों ने आज तक केवल किसानों का शोषण किया है।
अधिकतर किसानों को आज तक भी निर्धारित मूल्य नही मिलता। केवल रसूखदार चंद बड़े किसान ही उसका लाभ ले पाते हैं। फिर भी किसानों ने कभी आंदोलन नही किया और अपनी नियति समझकर अपनी रोजी में लगे रहे। जो टूट गए उन्होंने आत्म हत्या कर संसार से विदा ले ली। फिर परिस्थितियों वश यदि सरकार सुधार हेतु कोई कानून लाती है तो किसान इतने बड़े आंदोलन पर क्यों उतर आते है तो अवश्य चिंता का विषय है। चले समस्या के निदान को लेकिन समस्या पीछे रह गई और मोर्चा किसान और देश विरोधी ताकतों ने हासिल कर लिया और अपनी कुंठा को पूरा करना ही लक्ष्य राह गया
अब बात करते है समस्या की तो मेरे कु छ प्रश्न है
1 क्या किसान भाई वही पहले जैसा शोषण चाहते हैं। जहां आज तक किसानों को निर्धारित मूल्य नही मिला?
2 कम से कम निरधारित मूल्य का अभी तक कितना लाभ मिल रहा था जो कृषि कानून के बाद बंद या कम हो जाएगा।
3 अभीतक किसानों को अपने जिले अथवा प्रदेश से बाहर अपनी फसल बेचने पर प्रितिबन्ध था भले ही उसकी फसल घर पर या खेत मे सड़ जाए। मैंने अपने आस पास किसानों को गन्ना खेत में ही जलाते देखा है। कई बार गन्ने को काटने और विक्रय स्थान पर ले जाने का खर्च ही प्राप्त कीमत से कम देखा है वो भी चौधरी चरण सिंह जैसे किसान नेता के शासन में।
4 क्या किसान की स्थिति आज उस से भी बदतर है?
हमे क्या चाहिए
1 न्यूनतम समर्थन मूल्य? जिसमे कोई परिवर्तन नही किया गया है।
2 एक से अधिक स्थान पर अपनी फ़सल अपनी शर्तों पर बेचने की सुविधा जो कृषि कानून द्वारा प्रदत्त किया गया है। क्या इससे किसान भाइयों को हानि होगी?
3 सहकारिता का योगदान कृषि और ग्रामीण उद्योग की उन्नति में नकारा नही जा सकता। जो काम अकेला किसान नही कर संत वही किसानी अगर सामूहिक स्तर पर की जाय तो इसके अच्छे ही परिणाम होंगे। यदि कॉन्ट्रैक्ट खेती के माध्यम से किसान अपनी फसल की कीमत निश्चित कर लेता है तो समर क्या बुराई है? किसान उसी मंडी के दलालों के शोषण से मुक्त हो जाएगा और अपनी शर्तों पर अधिक उपज पैदा कर सकेगा।
इससे यह तो स्पष्ट है कि कृषि कानून किसी भी तरह से किसानों के हितों के विपरीत नही है। कमी कहाँ है? हमारे किसान भाई निष्पक्ष रुप से भोले होते है , कानून की जटिल भाषा और दूरगामी परिणाम को देर से समझ पेस्ट हैं। सरकार को कानून बनाते समय या तत्काल बाद उसके प्रसविधानो और किसानों को मिलने वाले लाभ को अपने साधनों द्वारा किसानों तक उचित तरीके से प्रचारित करनस चाहिए था जिससे देश विरोधी ताकतों को किसानों के बीच भ्रम पैदा करने का मौका नही मिलता और वर्तमान स्थिति नही बनती
मेरा अपने किसान भाइयों से निवेदन है कि वो इस बात को समझे और अड़मुड़ रवैये को छोड़ दे।हमने सरकार को अपने विश्वास कस मत देकर चुना है उस पर विश्वाश करे और संवैधानिक समस्या उत्पन्न न करे और बातचीत से समस्या के हल निकाल ले।
जरा सोचिए यदि हमारी फ़ौज, पुलिस, वयापारी, मजदूर सब इसी प्रकार कानून बदलने की ज़िद्द के साथ आंदोलन करने लगे तो किसी भी सरकार के लिए कोई भी कानून बनाना व उसे लागू करना असंभव हो जाएगा। देश के अंदर अराजकता फैल जाएगी।और कानून का राज खत्म हो जाएगा। फिर किसी आंदोलन का भी अर्थ नही रह जायेगा। देश ने आपको ददन के वीरों के समान सम्मान दिया है।देशविरोधी ताकतों के बहकावे में मत आये ।आजकल आप सभी के बच्चे भी शिक्षित है और देश के उच्च पदों पर आसीन है। आपको किसी राजनीतिक सलाह की आवश्यकता नही है।अपने लाभ हानि को स्वयं समझे और शालीनता से हल निकाल कर देश हित मे निर्णय लेते हुए अपने राष्ट्रीय सम्मान को बरकरार रखे।हम हसेंगे, हसाएंगे लेकिन हँसी का पात्र नही बनेंगे।आपके पास बहुत अवसर मिलेंगे हमे केवल देश हित मे आगे बढ़ना है। कोई कानून स्थायी नही होता आवश्यकता पड़ी तो सरकार अवश्य संशोधित करेगी। चूंकि हमारा देश, हमारी संस्कृति और हमारी एकता ही हमारी पहचान है इससे खेलने वाले का हमारे बीच कोई स्थान नही है। जो कभी हमारा नही रहा जिसका हमने तिरस्कार किया उस पर भरोसा क्यो?
मोदी जी पर विश्वाश किया है हमे उस विश्वास पर अडिग रहना चाहिए।
लेखकः- ललित मोहन शर्मा