अन्तरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में भारत अग्रणी भूमिका मेंः प्रो. अनिल भारद्वाज
देहरादून। आकाश तत्व पर उत्तरांचल विश्वविद्यालय में चल रही दो दिवसीय संगोष्ठी के दूसरे सत्र में आधुनिक तकनीकि और जीवन शैली का आकाश पर प्रभाव, आकाश को समझने की तकनीकि, प्रदूषण का अल्पीकरण, आकाश तत्व का संरक्षण कर विकास को दीर्घकालिक व अनुकूलन बनाकर विकास के लिये कार्य करने की आवश्यकता पर विशेषज्ञों के व्याख्यान हुए। व्याख्यानों का प्रारम्भ करते हुए जॉर्ज मेसन विश्वविद्यालय अमेरिका के प्रोफेसर जे0 शुक्ला ने जलवायु परिवर्तन व मौसम का अनुमान लगाने की वर्तमान स्थिति पर विस्तार से अवगत कराया। दिन के प्रथम सत्र में डी0आर0डी.ओ0 के वैज्ञानिक अंकुश कोहली द्वारा वातावरण में उपांतरण और भूस्थित अनेक तकनीकियों का भारत पर दूरगामी प्रभाव से सतर्क रहने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि आकाश ब्रह्माण्ड का इतना सुन्दर चित्र है कि इसको जितना समझो वह भी कम है। उन्होंने दुनिया भर में बादल फटने, आकाशीय बिजली के लिये बादलों में आयोनाईजेशन, क्लाउड सीड व ऊपरी परत में आयोनाईजेशन कोे ताप वृद्धि को जिम्मेदार माना। आई0आई0जी0 मुम्बई की प्रो0 गीता विचारे ने सूर्य के अन्दर चल रही गतिविधियों के कारण बड़ी मात्रा मे मिलने वाले विकरणों तथा प्लाज्मा के रूप में मिलने वाली आवेशित कणों की सोलर विन्ड के कारण पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र पर पड़ने वाले प्रभाव पर विचार रखे और कहा कि इसमें इतनी ऊर्जा होती है कि वह हमारे संचार तंत्र, जी0पी0एस0, तेल संयत्रों, इलेक्ट्रिक ग्रिड जैसे तंत्र को नष्ट कर सकते हैं। इसी क्रम में नासा के वैज्ञानिक डा0 एन गोपाल स्वामी ने सूर्य पर दुनिया भर में हो रहे शोध एवं सूर्य की घटनाओं का पृथ्वी पर प्रभाव का विस्तृत रूप से वर्णन किया। पी0आर0एल0 उदयपुर की प्रो0 डा0 नंदिता श्रीवास्तव ने सूर्य को धरती से विभिन्न टेलीस्कोपों की सहायता से देखने तथा उसमें विभिन्न प्रकार के डेटा लेकर उनके विश्लेषण की विधि बताई।
आई0आई0टी0 कानपुर के प्रो0 मुकेश शर्मा ने पूरे देश, विशेषकर राजधानी दिल्ली में वायु प्रदूषण सम्बन्धी शोध के आधार पर बताया कि वर्तमान में वायु की गुणवत्ता अत्यन्त खराब व चिन्ताजनक है। हमारी चिन्ता इस गुणवत्ता में सुधार करने की है। हमें कार्बन उत्सर्जन को सीमित करने की विभिन्न विधियों पर काम करना होगा। इसके लिये सड़कों की धूल, वाहनों, घरों, फैक्ट्रियों से होने वाले प्रदूषण को आकाश में जाने से बचाना होगा। आई0आई0टी0 दिल्ली के प्रो0 मुकेश खरे ने स्वच्छ हवा और साफ आकाश की अवधारणा को सब तक पहुंचाने की आवश्यकता एवं इस पर चल रहे कार्यांे का विवरण दिया। दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो0 एस0 के0 ढाका ने दिल्ली में ऐरोसोल की अधिकता व पर्यावरर्णीय डेटा को प्रस्तुत किया तथा इसमें सुधार हेतु सुझाव दिये। आई0आई0ए0 के प्रो0 सुविनॉय दास ने विभिन्न प्रकार के आकाशांे, विशेषकर चिताकाश पर वैज्ञानिक व भारतीय दर्शन को जोड़ते हुए आकाश तत्व का महत्व समझाया। एम0आई0एम0 कुट्टीकनन क निदेशक डा0 टी0 बी0 मुराली वल्लवम ने आकाश के विभिन्न आयामों पर प्रतिभागियों को जानकारी दी। एन0पी0एल0 अहमदाबाद के निदेशक डा0 अनिल भारद्वाज ने विक्रम साराभाई के कार्यों पर प्रकाश डालते हुए बताया कि आकाश में चल रही हलचल पर भारत नजर बनाये हुए है। 1975 में पहला उपग्रह आर्यभट्ट छोड़ने के बाद भारत ने अंतरिक्ष विज्ञान को तेजी से आगे बढाया तथा अपने स्वयं के प्रक्षेपण केन्द्र बनाये। आज हम इसमें अग्रणी भूमिका में है। हमारा चन्द्रयान मिशन व मंगल मिशन सफलतम रहे हैं। भविष्य मे ंहम शुक्र ग्रह तथा सूर्य के अध्ययन हेतु अपनी खुद की तकनीकि विकसित करने जा रहे हैं। संगोष्ठी के अन्तिम तकनीकि सत्र सतत्, अनुकूल और अल्पीकरण मापन में ए0आई0आई0एम0 एस0 नई दिल्ली की प्रो0 डा0 रमा जयसुन्दर, आई0आई0एम0 अहमदाबाद के प्रो0 अमित गर्ग तथा डा0 मधुलिका ने अपने विचार प्रस्तुत किये। पैनल डिस्कशन सत्र में सभी विषय विशेषज्ञों ने उक्त विषय पर परिचर्चा की।
संगोष्ठी के समापन सत्र के अवसर पर बोलते हुए भईया जी जोशी ने कहा कि हमने इस संगोष्ठी के दौरान कई नई बातें सीखी व अनुभव की हैं। बादल फटने की घटना हो, भूकम्प हो, बीमारियां हों या जंगलों में आग लगना हो जैसे कई शोध के विषय हैं। इनके कारणों में जबतक नहीं जायंेगे तबतक हल कैसे करेंगे? कुछ चीजें हमारे हाथ में नहीं हैं परन्तु हमारे हाथ में हो सकती हैं। प्रकृति में चल रही हलचल को प्रथामिकता के आधार पर सोचने की आवश्यकता है। क्या हम प्रकृति को अपने अधिकार में लाना चाहते हैं? क्या हम किसी विषय के बारे में अतिक्रमण कर रहे हैं? क्या हमारी कल्पनाओं व चिन्तन में कोई गलती हो रही है? जब आवश्यकतायें बढ जाती हैं तो हम कई चीजों को भूल जाते हैं। हम यहां पर आकाश तत्व पर चर्चा करने के लिये आये हैं। कुछ लोग आकाश के मालिक बनना चाहते हैं। विकास की कल्पनाओं को लेकर हम कौन सी बातों पर समझौता कर रहे हैं? इस पर गंभीरता से विचार करना होगा।
आज भिन्न-भिन्न प्रकार के शोध के लिये सैटेलाईट छोड़े जा रहे हैं। आकाश में छोड़ा गया कचरा भविष्य में क्या आपदा लाने वाला है, यह सोचा जाना चाहिये। भारतीय वैज्ञानिकों ने सैटेलाईट का प्रयोग आक्रमण के लिये नहीं बल्कि शिक्षा देने के लिये किया है। रोहणी व आर्यभट्ट की स्मृति में सैटेलाईट छोड़े गये हैं। जो मानवता है, संस्कृति है उस पर वैज्ञानिकों को काम करना होगा। नीति बनाने वाली सरकार को भी इसमें प्रोत्साहन देना होगा। जबतक हर एक व्यक्ति इस पर नहीं सोचेगा तब तक विकास सम्भव नहीं है। भारत व विश्व के उत्थान के लिये मार्ग प्रशस्त करने का कार्य प्रारम्भ हो चुका है। प्रो0 अजय कुमार सूद प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार, भारत सरकार ने इस संगोष्ठी को सफल बनाने के लिये सभी के द्वारा किये गये सहयोग हेतु धन्यवाद ज्ञापित किया। इस सत्र में प्रो0 राजेश एस0 गोखले, सचिव, जैव प्रोद्योगिकी विभाग, भारत सरकार, विज्ञान भारती के सुमित मिश्रा, डा0 एम0 रविचन्द्रन, सचिव, पृथ्वी विज्ञान विभाग व डा0 शांतनु भटवाडेकर, निदेशक इसरो उपस्थित रहे। इस अवसर पर जितेन्द्र जोशी, कुलाधिपति, उत्तरांचल विश्वविद्यालय, डा0 सतबीर सहगल, वाइस प्रेसीडेन्ट, उत्तरांचल विश्वविद्यालय, प्रो0 धर्मबुद्धि, कुलपति, उत्तरांचल विश्वविद्यालय, अभिषेक जोशी, एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर, उत्तरांचल विश्वविद्यालय, प्रो0 श्रवण कुमार, डीन, एस-एल-ए, वी0 सतीश, प्रवीण रामदास, डा0 समीर सरन, प्रो० दुर्गेश पंत, डा० आर0 पी0 सिंह, प्रो० के डी पुरोहित, प्रो० हेमवती नंदन, डा० देवी प्रसाद उनियाल, पुष्कर काला, प्रो० अनीता रावत, प्रो0 एच0 सी0 पुरोहित, प्रो0 वाई0 पी0 सुन्दरियाल, प्रो० रचना नौटियाल, डा० नरेन्द्र रावत, आर0 पी0 नौटियाल, जयमल नेगी जी, रामप्रकाश पैन्यूली, प्रो० कुलदीप रावत, डा० शिशिर प्रसाद, डा० विजेन्द्र, अमित पोखरियाल, डा० लोकेश जोशी, डा० दीपेन्द्र त्रिपाठी आदि उपस्थित रहे। इस प्रदर्शनी व संगोष्ठी में सम्पूर्ण भारत वर्ष से विश्वविद्यालयों, कालेजों एवं संस्थानों से लगभग 1500 से अधिक विद्यार्थियों व जनमानस ने प्रतिभाग किया।