देश में आतंकवाद और साइबर अपराध के बढ़ते खतरे को देखते हुए निगरानी तंत्र को सुचारू रूप देना जरूरी: गृह मंत्रालय
नई दिल्ली। कंप्यूटर और डेटा की निगरानी पर जारी नए अध्यादेश को लेकर लेकर मचे हाय तौबा के बीच सरकार ने स्पष्ट किया है कि यह कानून 2000 और 2009 के आइटी कानून में पहले से था और ताजा नोटिफिकेशन में केवल उन एजेंसियों को सुनिश्चित किया गया है जिनके पास निगरानी का अधिकार होगा। वह भी गृह सचिव की अनुमति के बाद। सरकार का कहना है कि देश में आतंकवाद और साइबर अपराध के बढ़ते खतरे को देखते हुए निगरानी के तंत्र को सुचारू रूप देना जरूरी है। गृहमंत्रालय की ओर जारी बयान के मुताबिक आइटी कानून 2000 और 2009 में विशेष परिस्थितियों में जांच व सुरक्षा एजेंसियों को लोगों के निजी कंप्यूटर नेटवर्क की निगरानी का अधिकार दिया गया है। लेकिन यह निगरानी केवल गृह सचिव की अनुमति से ही की जा सकती है। यानी गृह सचिव की अनुमति के बिना किसी के कंप्यूटर की निगरानी नहीं की जा सकती है। वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि यह आशंका निराधार है कि एजेंसियों को किसी भी व्यक्ति के कंप्यूटर की निगरानी का असीमित अधिकार दे दिया गया है। इसी तरह राज्यों में एजेंसियों को मुख्य सचिव की अनुमति से निगरानी का अधिकार पहले से है। गृह मंत्रालय के अनुसार समस्या यह थी कि कोई भी एजेंसी गृह सचिव से किसी व्यक्ति के निजी कंप्यूटर की जांच के लिए अनुमति की मांग कर देता था। इस स्थिति से बचने के लिए निगरानी करने वाली एजेंसियों को सुनिश्चित कर दिया गया है। अब केवल खुफिया ब्यूरो, नार्कोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो, प्रवर्तन निदेशालय, केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड, राजस्व आसूचना निदेशालय, सीबीआइ, एनआइए, रॉ जम्मू-कश्मीर, असम व पूर्वोत्तर में कार्यरत डायरेक्टोरेट आफ सिंगल इंटेलीजेंस और दिल्ली पुलिस को ही किसी की कंप्यूटर की निगरानी का अधिकार होगा। दूसरी कोई भी एजेंसी निगरानी नहीं कर सकेगी। दस एजेंसियों को निगरानी के अधिकार का नोटिफिकेशन गृह मंत्रालय में ताजा बने साइबर सुरक्षा विभाग की ओर जारी किया गया है। वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि साइबर सुरक्षा विभाग ने देश में आतंकवाद और साइबर अपराध के विश्लेषण के बाद निगरानी तंत्र को सुचारू करने की जरूरत महसूस की और इसके बाद ही दस एजेंसियों को इसके लिए चिह्नित किया गया। उनके अनुसार आइएसआइएस से लेकर पाक प्रायोजित आतंकवादी गतिविधियों सभी सोशल मीडिया व इंटरनेट आधारित दूसरे प्लेटफार्म पर चलाई जा रही है। जांच एजेंसियों ने इसके कई माड्यूल का पर्दाफाश भी किया है। यही नहीं, हाल में यह भी पता चला कि आइएसआइ सोशल मीडिया की मदद से विभिन्न एजेंसियों को अधिकारियों को फंसाकर जासूसी भी करवा रही है। ऐसे में देश की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए संदिग्ध लोगों के कंप्यूटर की निगरानी जरूरी हो गया है। गृह मंत्रालय के साइबर सुरक्षा विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि देश की सुरक्षा के साथ ही साइबर अपराधों पर नियंत्रण के लिए भी निगरानी की जरूरत है। जिस तरह से साइबर आर्थिक अपराध बढ़ रहे हैं और सोशल मीडिया पर सांप्रदायिक और भड़काऊ बातें फैलाई जा रही हैं। उसे रोकने के लिए भी संदिग्ध व्यक्तियों की गतिविधियों की निगरानी जरूरी है। यह उनके कंप्यूटर के मार्फत आसानी और पुख्ता तरीके से हो सकती है।