कांग्रेस नेता आनंद शर्मा ने बीजेपी पे उठाये सवाल
दिल्ली/देहरादून। दिल्ली में पत्रकार वार्ता के दौरान आनंद शर्मा ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि कुछ साल पहले कोविड महामारी के दौरान भारत सरकार का एक बड़ा फैसला था और लॉकडाउन के दौरान जब देश में त्राहि-त्राहि हो रही थी तो एक भव्य इमारत भारत की संसद की बनाने का निर्णय किया गया, जो संपन्न हो गया। 962 करोड़, तकरीबन 900 करोड़ रुपए के आसपास जो पैसा है उसमें लगा है, 900 करोड़ उसमें रुपया लगा है भारत का, हिडन कॉस्ट होती है जिसको तो सरकार ही जानती है।
क्या ये न्यायोचित था, जो भव्य इमारत, जिसमें भारत की संसद, उससे पहले संविधान सभा बैठी थी, वो केवल 93 साल पुरानी है, दुनिया के किसी प्रजातंत्र ने इतिहास में सैकड़ों वर्षों में अपनी संसद को नहीं बदला, संसद की इमारतें उसको जहां जरूरत पड़ी उसको उन्होंने उसकी मरम्मत की, उसको बढ़ाया, उसको एक्सपैंड किया, चाहे इंग्लैंड ने किया, चाहे अमेरिका ने किया, चाहे फ्रांस ने किया, चाहे जर्मनी ने किया, पर प्रजातंत्र में जब से संसदीय प्रणाली आई है और जिन देशों में राष्ट्रपति प्रणाली भी है, वो अमेरिका और फ्रांस हैं, ऐसा काम नहीं हुआ। क्या सरकार जवाब दे सकती है?
आपमें से बहुत लोगों को जानकारी है; यूके की पार्लियामेंट वेस्टमिन्स्टर; उसी जगह पर है, जहां 1016 में बनी थी, एक हजार साल पहले और सन 1834 में आग लगने से ध्वस्त हुई थी, उसको 1840 में दोबारा बनाया, जो मौजूदा इमारत है, पहले लकड़ी की थी, 1876 में संपन्न हुई और तब से, वहीं पर यूके की संसद है, अमेरिका में सिविल वॉर के बाद यूएस कांग्रेस की स्थापना कैपिटल हिल में की गई थी, वो 1792 में हुई थी, सैंकड़ों वर्ष हो गए, उन देशों के पास भी पैसा है, तकनीक है, उनकी भी ख्वाहिश है, पर वो महत्व समझते हैं स्थान का।
फ्रांस, मुझे नहीं मालूम आपमें से कितने लोगों ने ये सब स्थान देखे हैं, वहां की जो संसद है, वो पालिस बर्बन में है, 1728 से, सैकड़ों वर्षों से, बहुत मिसालें मेरे पास और हैं, जर्मनी की है हिटलर के समय में राइकस्टैग जो बुंडेस्टैग है, जला दिया गया था, उसके बाद जर्मनी का बंटवारा हुआ था द्वितीय विश्व युद्ध के बाद उनकी राजधानी बॉन चली गई थी, बर्लिन भी बंटवारे में गई थी, जब जर्मन रियूनिफिकेशन हुआ उसके बाद दोबारा बॉन से राजधानी वापस बर्लिन में आई और पुरानी जो जगह थी उसी पर दोबारा, उसी स्थान पर, उन्हीं नक्शों पर उन्होंने दोबारा बनाई ये इमारत और ये दुनिया के दूसरे जो महाद्वीप हैं, जहां प्रजातंत्र का सम्मान होता है वहां भी यही है।
मैं ये भी यहां पर कहना चाहता हूं कि पहले भी जो बनी थीं, हमारी तो इनकी तुलना में बहुत कम आयु की है, वो बड़ी मजबूत इमारत है, जिसको आप सबने देखा, देश का एक संविधान ही नहीं है वहां बनाया गया, इतिहास जुड़ा है भारत की आजादी का, वो केवल एक इमारत नहीं है, भारत के लिए, भारत की जनता के लिए, अब ये कहना आसान है कि अंग्रेजों के वक्त की बनी थी, किसका पैसा था – भारत का, कहां के कारीगर थे – हिन्दुस्तान के, कहां के मजदूर थे – हिन्दुस्तान के, ये पत्थर जो रेड सैंड स्टोन है, कहां का था – हिन्दुस्तान का, दिल्ली से 40 किलोमीटर दूर पर जो अरावली के जो पहाड़ हैं वहां से ये पत्थर आया था, तो सरकार को ये बातें, जो उठाई जा रही हैं आज उसका जवाब तो देना पड़ेगा।
दूसरा संवैधानिक प्रश्न है। क्या है भारत की संसद – भारत के संविधान के आर्टिकल 79 में स्पष्ट रूप से उल्लेखित है, मैंने कल इस पर टिप्पणी की थी, आप में से कुछ ने देखा होगा। संसद, भारत की पार्लियामेंट, वो कौन बनाते हैं – राष्ट्रपति, काउंसिल ऑफ स्टेट्स राज्यसभा और लोकसभा, बस तीन – भारत के महामहिम राष्ट्रपति, क्योंकि हमारा एक जो संविधान है और जो उसका स्वरूप है तो उसमें राज्यों का अपना एक अधिकार है तो पहला सदन संसद का राज्यसभा है, इसमें राज्यों के चुने हुए प्रतिनिधि बैठते हैं, भारतीय गणतंत्र के और दूसरा लोकसभा, केवल भारत के राष्ट्रपति को ये अधिकार है कि संसद के सत्र को बुलाया जाए, आर्टिकल 85 में स्पष्ट रूप से उल्लेखित है और आपको मालूम भी होगा पर मैं कहना चाहता हूं। केवल महामहिम राष्ट्रपति भारत के सदन बुलाने का संवैधानिक अधिकार रखते हैं और हर सदस्य को, चाहे वो लोकसभा का सदस्य है, चाहे राज्यसभा का उसको लाल रंग का सम्मन मिलता है, सम्मन उदघोषणा नहीं होती, नोटिफिकेशन नहीं होती, हर मेंबर को, हर सदस्य को निजी रूप से राष्ट्रपति का सम्मन आता है कि इस तारीख से इस तारीख तक सत्र बुलाया गया और केवल राष्ट्रपति को अधिकार है, सत्र खत्म होने पर उसको प्रोरोग करने का, किसी और को नहीं, न वो लोकसभा के अध्यक्ष करते हैं, वो एडजर्न करते हैं, राज्यसभा के चेयरमेन एडजर्न करते हैं, प्रोरोग करना, उसकी नोटिफिकेशन होती है, गजट की, राष्ट्रपति की, लोकसभा को भंग करना, चुनाव बुलाना, वो अधिकार केवल राष्ट्रपति का है।
तो ये संवैधानिक रूप में उचित नहीं है कि राष्ट्रपति को इतने बड़े फैसले से बाहर रखा जाए, दुर्भाग्य की बात है कि पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद जी को वो सब अवसर नहीं मिला, जो सम्मान मिलना चाहिए, जब वो नींव पत्थर रखा गया उसमें नहीं बुलाए, हालांकि उनको रखना चाहिए था, अब उद्घाटन हो रहा है, उसमें भी नहीं हैं।
एक सैद्धांतिक बात है, हमारा मत है कि संविधान का सम्मान नहीं हो रहा और ये न्यायोचित नहीं है। माननीय प्रधानमंत्री जी को राष्ट्रपति जी को आग्रह करके सम्मान से बुलाना चाहिए, ये बात भी अच्छी नहीं, संदेश अच्छा नहीं कि पहली बार कोविंद जी थे। कांग्रेस अध्यक्ष ने इस पर अपना कुछ बयान दिया है और अब एक हमारी अनुसूचित जनजाति की, ट्राइबल राष्ट्रपति है महामहिम, उनको भी दूर रखा जाए। ये क्या संदेश है इसमें।
एक प्रश्न पर कि क्या कांग्रेस पार्टी महामहिम राष्ट्रपति जी को आमंत्रित करने की मांग कर रही है तथा क्या कांग्रेस के नेता इस कार्यक्रम में जाएंगे? आनंद शर्मा ने कहा कि देखिए, बुनियादी रूप से मांग की बात नहीं है, हम सरकार को सलाह दे रहे हैं कि संविधान क्या कहता है। अब सरकार से सुनना चाहते हैं कि वो संविधान को मानते हैं या नहीं। जहाँ तक आपने बात की सरकार की और पक्ष की, संसद जो है सरकार की नहीं है, भारत की है। संसद के दो कक्ष हैं, जो संविधान में उल्लेखित हैं, एक काउंसिल ऑफ स्टेट कही जाती है, जो राज्यों का है, उसे राज्यसभा कहते हैं और दूसरा लोकसभा। दोनों सदनों के अलग-अलग अध्यक्ष हैं, विशेष दर्जा क्योंकि राज्यसभा का है, वो परमानेंट सदन है और उसके कारण भारत के उपराष्ट्रपति उसके अध्यक्ष हैं। लोकसभा के अध्यक्ष माननीय स्पीकर साहब हैं। लोकसभा के जो नेता हैं, जिस दल का बहुमत है, वो देश के माननीय प्रधानमंत्री होते हैं, जैसे आज हमारे, जो भी प्रधानमंत्री हैं, उनके दल को या गठबंधन को लोकसभा का बहुमत, जिसका होगा, वो भारत के माननीय प्रधानमंत्री होते हैं। पर वो संसद नहीं होते हैं। संसद जैसा मैंने बताया राष्ट्रपति और दो कक्ष, यो दो हाउस बनाते हैं। तो उससे स्पष्ट है, पहले तो सरकार की अपनी जो मर्जी इमारत सरकार बनाए, उस पर कोई आपत्ति नहीं, पर भारत की संसद, भारत की संसद है और भारत की संप्रभुता जो हैं, लोगों में है और वो कहाँ निवास करती है– भारत की संसद के अंदर।
एक अन्य प्रश्न पर कि क्या इसके पीछे ऊंच-नीच का कारण है जिससे कि पहले राष्ट्रपति को बुलाया नहीं गया? आनंद शर्मा ने कहा कि मैं ये नहीं कहता। मैंने कहा कि ये भी एक दुर्भाग्यपूर्ण बात की है कि ऐसे समय में जब खुशी है इस बात की कि कौन हमारे राष्ट्रपति थे, इन्हीं के कार्यकाल में बने इसी सरकार के, पहले भी और आज भी। पर कोई कारण नहीं है कि उनको नहीं बुलाया जाए। आज देश की राष्ट्रपति को, महामहिम को ये सम्मान ना दिया जाना, संवैधानिक रुप में उचित नहीं है।
एक अन्य प्रश्न पर कि दिल्ली के अधिकारियों की सेवाओं को लेकर सुप्रीम कोर्ट का जो जजमेंट था, उसको लेकर सरकार ऑर्डिनेंस लाई है, कांग्रेस इस मुद्दे को आगे कैसे देखती है? आनंद शर्मा ने कहा कि देखिए, इसमें भी एक अजीब विरोधाभास सामने आया है, जब भारत के उच्चतम न्यायालय का निर्णय आया था, कांग्रेस पार्टी ने उसका स्वागत किया था। आज भी हमारा वही मत है कि माननीय उच्चतम न्यायालय का निर्णय सही था और जो संविधान के प्रावधान हैं, जो राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से संबंधित हैं, जिस पर बड़े विस्तार से सुप्रीम कोर्ट ने अपना मत व्यक्त किया है, वो भी संवैधानिक पीठ ने, उसको माना जाना चाहिए, सरकार को सम्मान करना चाहिए। अब सरकार एक तरफ से ऑर्डिनेंस लाई है, दूसरी तरफ से सरकार ने एक रिव्यू के लिए, पुनर्विचार के लिए भी कागज सुप्रीम कोर्ट में, पिटीशन डाल रहे हैं। वो भी शायद पहली बार हो रहा है कि ऑर्डिनेंस भी आ रहा है और उसके साथ-साथ रिव्यू पिटीशन भी हो रही है, क्योंकि अब ये विषय संवैधानिक पीठ उच्चतम न्यायालय, सुप्रीम कोर्ट के पास है। सुप्रीम कोर्ट, जो अपना उनका फैसला है, उसको अगर चुनौती सरकार की है, उस पर सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ उस पर अपना मत देगी।
एक अन्य प्रश्न पर कि प्रधानमंत्री दो-तीन देशों के दौरे पर हैं, जहाँ उनको मिल रहे आदर-सत्कार का बीजेपी काफी प्रचार कर रही है, क्या कहेंगे, आनंद शर्मा ने कहा कि भारत के प्रधानमंत्री को, जब जो भी भारत के प्रधानमंत्री हैं, विदेशी धरती पर गए हैं, उनका स्वागत हुआ है। माननीय प्रधानमंत्री विदेश के दौरे पर हैं, हिंदुस्तान के प्रधानमंत्री हैं, उनका स्वागत होना चाहिए।