बांग्लादेश के आम चुनाव में शेख हसीना की वापसी से भारत की खुशी बेवजह नहीं

ढाका । बांग्लादेश के आम चुनाव में प्रधानमंत्री शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग ने लगातार तीसरी बार बड़ी जीत दर्ज की है। अवामी लीग ने 350 सीटों में से 281 सीटों पर कब्जा जमाया है। इस बीच विपक्ष ने एक बार फिर सत्ता पक्ष पर चुनावाें में धांधली का आरोप लगाया है। बहरहाल, भारत की इस चुनाव में पैनी नजर थी। हालांकि, इस बार यहां के चुनाव में भारत की सक्रियता नहीं थी। बांग्लादेश के इस चुनाव से भारत ने अपने आपको अलग कर रखा था, लेकिन यहां एक बड़ा सवाल यह है कि बांग्लादेश में शेख हसीना की जीत से भारत के संबंधों पर क्या असर पड़ेगा। यह तो तय है कि बांग्लादेश में एक स्थाई और स्थिर सरकार के साथ एक उदारवादी दृष्टिकोण वाली सरकार की जरूरत थी। ऐसे में यह सवाल और लाजमी हो जाता है कि क्या अवामी लीग की सरकार इन चुनौतियाें से निपटने में सक्षम होगी।
1- डेवलपमेंट एंड डेमोक्रेसी फर्स्ट बना कट्टर इस्लाम यह चुनाव भारत के लिए ही नहीं बल्कि बांग्लादेश के भविष्य के लिए काफी अहम था। दरअसल, इस चुनाव में सत्ता पक्ष ने ‘डेवलपमेंट एंड डेमोक्रेसी फर्स्ट’ के साथ-साथ स्थाई विकास का नारा दिया था। शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग ने देश के लोगों को विकास का सपना दिखाया। हालांकि, शेख हसीना के लिए इनकमबेंसी एक बड़ा फैैक्टर था। अवामी लीग को इनकमबेंसी का खतरे से भयभीत थी। देश में कानून व्यवस्था, भ्रच्टाचार और आरक्षण का मामला सत्ता पक्ष के विरोध में थे। उधर, यहां के प्रमुख विपक्षी दल बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) ने सरकार में व्याप्त भ्रष्टाचार के साथ सरकार की दस वर्षों की कमियों को गिनाकर महासंग्राम में जीत के लिए संघर्ष कर रही थी। इस चुनाव में सरकार के खिलाफ विपक्ष का महागठबंधन था। लेकिन जनता ने विपक्ष के अपील को खारिज कर दिया और विकास के साथ जुड़कर अावामी लीग को भारी जीत दिलाई।
यहां एक अहम सवाल यह है कि अवामी लीग की सरकार भारत के लिए कितनी अनुकूल है। एेसे में यह कहा जा सकता है कि वैचारिक धरातल पर अवामी लीग की विचारधारा भारत के हितों वाली रही है। बीएनपी की छवि देश में एक कट्टरवादी इस्मालिक पार्टी की रही है। बीएनपी का कट्टरवाद भारत को कभी रास नहीं आया। अवामी लीग की विचारधारा इस्लामिक कट्टरवाद के खिलाफ रही है। दूसरे, अवामी लीग देश के आर्थिक विकास को तरजीह देती है। उसके शासन काल में बांग्लादेश से अन्य मुल्कों से व्यापार बढ़ा है। भारत अवामी लीग के इस द्ष्टिकोण की पक्षपोषक रही है।
चुनावी महासंग्राम में नहीं दिखा था भारत विरोधी रुख बांग्लादेश का यह चुनाव इस लिहाज से भी अहम था, क्योंकि इस सियासी महासमर में भारत विरोध का कोई मुद्दा नहीं था। भारत के लिहाज से यह एक बेहद सकारात्मक बदलाव था। दोनों देशों के बीच रिश्तों के लिए यह एक सुखद संकेत के रूप में देखा गया। वरना यहां कई बार चुनाव में इस्लामिक कट्टरता के पक्षपोषक भारत विरोधी हवा को तूल देते रहे हैं। यह बांग्लोदश की सियासत में बड़े बदलाव या संकेत के रूप में देखा जा रहा है। ऐसी सूरत में भारत ने यहां की सियासत से किनारा कर लिया था। लेकिन आज यह कहा जा सकता है कि भारत का यह स्टैंड सही साबित हुआ।