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आर्थिक संबंधों का पुल बने कारवां-ए-तिजारत का काफिला 19 जून को फिर अपनी मंजिल के लिए होगा रवाना

श्रीनगर। जम्मू कश्मीर और गुलाम कश्मीर के बीच आर्थिक संबंधों का पुल बने कारवां-ए-तिजारत का काफिला 10 दिन बाद 19 जून को फिर अपनी मंजिल के लिए रवाना होगा। इस बीच कारवां-ए-अमन बस सेवा सोमवार को ठप रही। न इधर से कोई गुलाम कश्मीर गया न ही एलओसी पार से कोई मेहमान इस तरफ आया।

भारत-पाकिस्तान के बीच समझौते के तहत अक्तूबर 2008 में जम्मू कश्मीर व गुलाम कश्मीर के बीच क्रॉस एलओसी ट्रेड शुरू किया गया था। यह व्यापार जो ड्यूटी फ्री है, पूरी तरह बार्टर (नकद लेन-देन के बजाय सामान के बदले सामान की अदायगी) है। इसमें सिर्फ जम्मू कश्मीर और गुलाम कश्मीर के व्यापारी स्थानीय उत्पादों का आयात-निर्यात कर सकते हैं। इस व्यापार को कारवां-ए-तिजारत कहते हैं। यह सप्ताह में चार दिन मंगल से शुक्रवार तक होता है। कई बार आवश्यकता अनुरूप शनिवार को भी ट्रकों की आवाजाही की अनुमति दी जाती है। उड़ी स्थित सलामबाद क्रॉस एलओसी ट्रेड फेसिलटेशन सेंटर के एक अधिकारी ने बताया कि इस बार आठ जून को अंतिम बार व्यापारिक ट्रकों का आदान-प्रदान हुआ था। अब ईद संपन्न हो चुकी है। मंगलवार को परिस्थितियां अनुकूल रहीं तो कारवां-ए-तिजारत बहाल हो जाएगा।कश्मीर के विभिन्न हिस्सों से कुछ ट्रक गुलाम कश्मीर माल पहुंचाने के लिए सलामाबाद पहुंच भी गए हैं। कारवां-ए-अमन बस सेवा के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि यह सेवा ईद के मद्देनजर आज बंद रही है। इसे बंद रखने का फैसला गत सुबह गुलाम कश्मीर से आए आग्रह के बाद ही लिया गया था। अब बस सेवा 25 जून को बहाल होगी।

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