Uttarakhand
किसान आन्दोलन जारी लेकिन भ्रम बरकरार।

सबसे बड़ा आंदोलन अभी तक भी अपने वास्तविक विरोध को जनमानस में प्रस्तुत करने में विफल रहा है। पंजाब से शुरू हुआ आंदोलन गणतंत्र तक अन्य संगठनों की मदद से चलता रहा। सरकार और पत्रकार आरम्भ से ही आंदोलन के वास्तविक कारणों और बाह्य ताकतों द्वारा हरण कर लिए जाने पर आगाह कर रहे थे। गणतंत्र दिवस पर एक समूह विशेष द्वारा किये गए देश द्रोही कृत्य से यह साफ भी हो गया था
उस दिन के बाद से आंदोलन में तिरेंगे के अलावा तथा कथित खालिस्तानी झंडा गायब है। बाह्य मदद से चल रही उच्च स्तरीय सेवा गायब हो गयी है क्योंकि उनका मकसद पूर्ण हो चुका है। राकेश टिकैत इस लिये नही रो रहे थे कि एक स्थानीय नेता ने उन्हें स्थान खाली करने की धमकी दी थी या आंदोलन विफल हो गया था बल्कि इसलिये कि उन्हें यह एहसास हो चुका था कि एक विशेष वर्ग के तथा कथित किसानों द्वारा उन्हें इस्तेमाल कर देश विरोधी कार्य किया गया था तथा आंदोलन छोड़कर उन्हें अकेले मैदान में विवश छोड़ ,मैदान छोड़कर भाग गए थे। यह सत्य है कि लाल किले की घटना में राकेश टिकैत का कोई हाथ नही था बल्कि सत्य यह है कि उन्हें अंधेरे में रखा गया था। आज जो तथा कथित किसान आंदोलन से भाग खड़े हुए , उनकी मांगे पूरी हो गयी? नही बल्कि उनका उद्देश्य पूरा हो गया।
वास्तव में गन्ना मूल्य भुगतान और न्यूनतम खरीद मूल्य की गारंटी के अलावा उत्तर प्रदेश के किसानों की कोई अन्य समस्या थी भी नही। केवल किसान एकता के नाम पर उन्हें फुसला लिया गया। आज भी जो किसान आंदोलन स्थल पर पहुंच रहे है वे वास्तविकता से परिचित है। केवल जाट एकता के नाम पर राकेश टिकैत के आंसू पोंछे जा रहे हैं ताकि बची खुची इज्जत बचाकर आंदोलन समाप्त करने का मार्ग प्रशस्त किया जा सके।
देश का हर बुद्धि जीवी सरकार द्वारा कानून वापस लेने का पक्षधर नही है।वह इसके भयंकर दुष्परिणामो से भलीभांति परिचित है इसलिये बातचीत से हल निकालने की अपील की जा रही है।
जो हुआ नही होना चाहिये था अब हो चुका है तो प्रयास होना चाहिये कि ऐसी परिस्थिति के प्रयासों पर तत्काल लगाम लग सके। आदरणीय दिवंगत किसान नेता ने जो मान सम्मान की विरासत राकेश टिकैत और उनके बड़े भाई श्री नरेश टिकैत को सौपी थी, उसका सम्मान करते हुए राकेश टिकैत को अपना बड़बोलापन और नफरत का रास्ता छोड़ राष्ट्र हित मे आंदोलन समाप्त कर वार्ता की मेज पर वास्तविक एजेंडे पर सरकार से बात करनी चाहिये। सरकार पर विश्वास किया जाना चाहिये। आज की सरकार अगर समर्थ भारत की कल्पना कर रही है तो निश्चित मानिए की सरकार किसान विरोधी कोई कार्य नही करेगी। ऐसा ही उत्तर प्रदेश सरकार और अन्य सरकारों से भी अपेक्षा रखनी चाहिये। और फिर भविष्य में आपके पास असीमित अवसर है सरकार की नाइंसाफी पर अपनी आवाज उठाने के लिये।
इस देश के किसान कभी सरकार विरोधी नही रहे तब भी जब उनका पूरी तरह शोषण किया जाता था। आज किसानों की उपेक्षा संभव ही नही है वो भी मोदी राज में। विश्वास और अवसर बड़ी चीज है।यकीन कीजिये और देश हित की सोचिये। तोड़फोड़ की राजनीति करने वाले दलों, पत्रकारों और बाह्य ताकतों का तिरस्कार कीजिये आखिर आप देश के अभिन्न अंग है।आपमे यह देश बसता है।इसकी आत्मा को उचित सम्मान मिलना ही चाहिये जिसके लिये कोई भी कीमत कम है।
लेखकः- ललित मोहन शर्मा