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सृष्टि के प्रथम पत्रकार के रूप में भी जाने जाते हैं – देवर्षि नारद
देहरादून। ऋषि नारद मुनि भगवान विष्णु के अनन्य भक्त थे. हिन्दू शास्त्रों के अनुसार नारद जी ब्रह्मा जी के मानस पुत्र हैं. धार्मिक मान्यता है कि इस दिन नारद जी की पूजा आराधना करने से भक्तों को बल, बुद्धि और सात्विक शक्ति की प्राप्ति होती है. पौराणिक मान्यता है कि नारद मुनि न सिर्फ देवताओं, बल्कि असुरों के लिए भी आदरणीय हैं. माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने से पुण्य की प्राप्ति होती है और साथ ही भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं ।नारद मुनि भगवान विष्णु के भक्त और पहले पत्रकार कहे जाते हैं।
देवर्षि नारद, एक ब्रह्मचारी (तपस्वी) हैं जिन्हें नारद मुनि कहा जाता है, वह भगवान ब्रह्मा (ब्रह्मांड के निर्माता) और ज्ञान की देवी देवी सरस्वती के पुत्र हैं। कहा जाता है कि उनका जन्म ज्येष्ठ, कृष्ण पक्ष (पूर्णिमंत कैलेंडर के अनुसार) के हिंदू महीने में प्रतिपदा तिथि (पहले दिन) में हुआ था। हालांकि, अमावसंत कैलेंडर का पालन करने वाले भक्त उनकी जयंती प्रतिपदा तिथि, कृष्ण पक्ष वैशाख को मनाते हैं।
इस बीच त्योहार का दिन वही रहता है, और केवल महीनों के नाम अलग-अलग होते हैं। ज्येष्ठ माह पूर्णिमांत कैलेंडर के अनुसार शुरू होता है, और इसलिए कई भक्त आज नारद जयंती मना रहे हैं।
*श्रीमद्भगवद्गीता के दशम अध्याय के २६वें श्लोक में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने इनकी महत्ता को स्वीकार करते हुए कहा है – देवर्षीणाम् च नारद:। देवर्षियों में मैं नारद हूं। श्रीमद्भागवत महापुराणका कथन है, सृष्टि में भगवान ने देवर्षि नारद के रूप में तीसरा अवतार ग्रहण किया और सात्वततंत्र (जिसे नारद-पांचरात्र भी कहते हैं) का उपदेश दिया जिसमें सत्कर्मो के द्वारा भव-बंधन से मुक्ति का मार्ग दिखाया गया है। नारद जी मुनियों के देवता थे और इस प्रकार, उन्हें ऋषिराज के नाम से भी जाना जाता था।*
*नारद जी के जन्म कथा*
चिरकाल में एक बार गंधर्व और अप्सराएं भगवान ब्रह्मा जी की उपासना कर रहे थे। उस समय गंधर्व ‘उपबर्हण’ (नारद जी जो पूर्व जन्म में गंधर्व थे) अप्सराओं के साथ श्रृंगार भाव में उपस्थित हुए। यह देखकर भगवान ब्रह्मा जी क्रोधित हो उठे और ‘उपबर्हण’ को शूद्र योनि में जन्म लेने का शाप दिया। ब्रह्मा जी के शाप फलस्वरूप नारद का जन्म ‘शूद्रा दासी’ के घर पर हुआ।इसके बाद उन्होंने प्रभु की भक्ति आराधना की तो उन्हें ईश्वर के एक दिन दर्शन हुए। इससे उनके मन में ईश्वर और सत्य को जानने की लालसा और भी बढ़ गई। इसी समय आकाशवाणी हुई कि- ‘हे बालक, इस जन्म में अब तुम मेरे दर्शन नहीं कर पाओगे। अगले जन्म में तुम मेरे पार्षद होंगे।’ इसके बाद नारद ने भगवान श्रीहरि विष्णु की कठिन तपस्या की, जिसके फलस्वरूप वह कालांतर में ब्रम्हा जी के मानस पुत्र के रूप में फिर अवतरित हुए।
*वायुपुराण में देवर्षि के पद और लक्षण का वर्णन है- देवलोक में प्रतिष्ठा प्राप्त करने वाले ऋषिगण देवर्षि नाम से जाने जाते हैं। भूत, वर्तमान एवं भविष्य-तीनों कालों के ज्ञाता, सत्यभाषी, स्वयं का साक्षात्कार करके स्वयं में सम्बद्ध, कठोर तपस्या से लोकविख्यात, गर्भावस्था में ही अज्ञान रूपी अंधकार के नष्ट हो जाने से जिनमें ज्ञान का प्रकाश हो चुका है, ऐसे मंत्रवेत्ता तथा अपने ऐश्वर्य (सिद्धियों) के बल से सब लोकों में सर्वत्र पहुँचने में सक्षम, मंत्रणा हेतु मनीषियों से घिरे हुए देवता, द्विज और नृपदेवर्षि कहे जाते हैं।*
*नारद जयंती पूजा विधि*
नारद जयंती के दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठकर स्नान कर लें और फिर वस्त्र धारण करके पूजा घर की भी साफ-सफाई कर लें। साथ ही अपने व्रत का संकल्प लें और इसके बाद ऋषि नारद का ध्यान करते हुए पूजा-अर्चना करें।नारद मुनि को चंदन, तुलसी के पत्ते, कुमकुम, अगरबत्ती, पुष्प, धूप आदि समर्पित करें। साथ ही अपनी सामर्थ्य के अनुसार जरूरतमंदों को दान भी करें।
*नारद जयंती का महत्व*
हिन्दू शास्त्रों के अनुसार ऋषि नारद मुनि भगवान विष्णु के अनन्य भक्त और ब्रह्मा जी के मानस पुत्र हैं। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन नारद जी की पूजा आराधना करने से भक्तों को बल, बुद्धि और सात्विक शक्ति प्राप्ति होती है।
इसके अतिरिक्त पौराणिक मान्यता यह भी है कि नारद मुनि ना केवल देवताओं, बल्कि असुरों के बीच भी आदरणीय माने गए। वह दुनिया के पहले पत्रकार माने गए हैं और सबके बीच सम्मानित हैं। नारद जयंती के व्रत से भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
*डाॅ.रवि नंदन मिश्र*
*असी.प्रोफेसर (वाणिज्य विभाग)एवं कार्यक्रम अधिकारी*
*राष्ट्रीय सेवा योजना*
( *पं.रा.प्र.चौ.पी.जी.काॅलेज,वा राणसी*) *सदस्य- 1.अखिल भारतीय ब्राम्हण एकता परिषद, वाराणसी,*
*2. भास्कर समिति,भोजपुर ,आरा*
*3.अखंड शाकद्वीपीय एवं*
*4. उत्तरप्रदेशअध्यक्ष – वीर ब्राह्मण महासंगठन,हरियाणा*