Uttarakhand

किसान परेशान दुनिया हैरान, मांग और समाधान का चल रहा खेल

लगभग ढाई महीने से किसान सड़को पर है। मांग और समाधान का खेल चल रहा है।दुख की बात यह है कि किसान को खुद नही पता कि उसे क्या  चाहिए। दरसल न्यूनतम समर्थन मूल्य और कानून की वापसी तो बहाना है उन्हें तो दिल्ली जाना है। किसान परेशान क्यों है मैं अपने अनुभव से आज इसका खुलासा करता हूँ।
देश के 80℅ किसानों के पास एक हेक्टेयर जमीन है।जिसे पाकर वह अपने को न जाने कितनी संम्पत्ति का मालिक समझ बैठता है। एक पुरानी कहावत है कि चूहे को नीली कतरन क्या मिल गयी वो अपने को पंसारी समझ बैठा। अधिकतर किसानों के पास उतनी जमीन नही है कि बदले में शहर में एक अच्छा मकान ख़रीद सके। लेकिन इस सामाजिक धरती पर जन्म लिया है तो वह भी संसार के तमाम सुख पाने का अधिकारी है जिसे पाने के लिये वह बिना किसी ठोस योजना के प्रयास करता है और यही से उसके दुर्भाग्य का आरंभ होता है।
हम किसान की एक संभावित प्राप्ति और खर्च के विवरण से समझने का प्रयास करते हैं।
प्राप्तियां:
1 फसल से नेट आय 140000/-
२ सरकार से सब्सिडी
4000/-
कुल प्राप्ति 144000/-
इसमें सभी खर्च निकाल दिए गए हैं।
अब खर्च की जिम्मेदारी देखते है।
1 खाने का खर्च चार सदस्यों के लिये
15000/- महीना यानी 180000/-
2 बच्चों की पढ़ाई
72000/-
3 बीमारी पर खर्च
12000/-
4 ब्याज का भुगतान
12000/-
5विविध खर्चे,कपड़े
36000/-
कुल योग 312000/-
यह एक गांव में रहने वाले साधारण परिवार का कम से कम खर्च है।इसमें शादी,मकान की मरम्मत और कृषि उपकरणों की खरीद के ख़र्च शामिल नही हैं।
अब आप अंदाजा लगा सकते है कि छोटे किसान की हालत क्या हो सकती है। इसमें दस प्रतिशत उन किसानों को छोड़ दे जिनके पास नोकरी या अन्य आमदनी के साधन है। इसके साथ पचास प्रतिशत ऐसे भी किसान है जिनकी जोत एक हेक्टेयर से भी कम है।
कुल मिलाकर यह समझा जा सकता है कि छोटे किसान की स्थिति एक मामूली सरकारी कर्मचारी से भी बदतर है।
अब इस वर्तमान स्थिति के कारणों पर ध्यान देते है।
आज से 70 साल पहले यदि एक किसान के पास पांच एकड़ जमीन थी और यदि उसके दो पुत्र थे तो प्रत्येक पुत्र के पास बीस साल बाद ढाई एकड़ जमीन और उसके बीस साल बाद चार पोत्रो में सवा सवा एकर जमीन बची। कहने का तात्पर्य यह है कि किसान की प्रत्येक व्यक्ति जोत घटती चली गयी और उस पर ऋण का बोझ बढ़ता गया। दूसरी और बड़े संम्पन्न किसान छोटे किसानों की जमीनें खरीद कर संम्पन्न होते चले गए।
परेशानी का कारण यह भी है कि किसानों ने अपनी अन्य आय बढ़ाने के स्रोत नही ढूंढ़े
इसके ऊपर सामान्य जाति से होने के कारण किसान सरकारी योजनाओं का लाभ भी नहीं ले सके।
अब जब सरकार को आभास हुआ और सरकार जगी। सरकार ने किसानों की स्थिति संवारने के लिये कदम उठाये तो सबसे पहले बिचोलिये और उनके साथ वो बड़े किसान जो शनै शनै छोटे किसानों को जोत हड़पने में लगें रहते है, साथ मे सरकार विरोधी ताकते, सब मिलकर आंदोलन जीवी हो गए। पहली बात तो सरकार ने सोच समझकर कदम उठाए है उसे पीछे नही हटना चाहिए लेकिन यदि सरकार 10-20% किसानों के हित मे कानून वापस ले ले तो क्या छोटे किसानों के प्रति न्याय होगा।क्या कीमत की गारंटी देने के बाद भी छोटा किसान खुशहाल हो पायेगा? कदापि नही बल्कि कर्ज़ के बोझ तले दबा किसान अपनी जमीन बड़े किसानों को बेचने पर मजबूर होता रहेगा। जरा जानने की कोशिश कीजिये कि राकेश टिकैत ने जो लगभग ढाई सौ बीघा जमीन खरीदी वो किन किसानों की थी। जमीन कही पैदा तो होती नही। किसानों की जमीन बिकने का सिलसिला तो बहुत पहले से बादस्तूर जारी है।
आखिर हल क्या है? किसानों को अपनी वास्तविक स्थिति का आंकलन स्वयं ही करना होगा। मैं स्वयं बडे जमींदार परिवार से संबंध रखता हूँ औऱ  जानता हूं कि बडे किसान और छोटे किसान में कितना अंतर होता है। बांटते  बांटते मैं भी लघु किसान हो गया हूँ। इसलिये अपने किसान भाइयों को बताना चाहता हूं कि संशोधित कानून हम सबके हित मे है उसे मानकर अपना आंदोलन समाप्त करें। और निम्न विशेष प्रयासो पर अपनी चर्चा करें।
1 सरकार किसानो को दिये जाने वाले लाभ छोटे किसानों तक सीमित करे।
2 किसान की आर्थिक स्थिति के अनुरूप एक निश्चित राशि छोटे किसानों को उप्लब्ध कराए।
3 छोटे किसानों को स्वयं सहायता ग्रुप के माध्यम से खेती करने ओर उन्हें तकनीकी ज्ञान उपलब्ध कराए।
4 आरक्षण का लाभ जाति गत आधार पर नही , आर्थिक आधार पर करते हुए हर परिबार मे एक नॉकरी सुनिश्चित करे।
5 बड़े किसानों को आय कर के दायरे में लाये।
6 नकद सब्सिडी बंदकर बिजली और बीज खाद आदि की कीमतें काम करे।
7 दहेज निषेध का पालन सुनिस्चित करे।
8 किसान भाई खाली समय का उपयोग अन्य कृषि आधारित उद्योगों को लगाने में करे जैसे खाद्य प्रसंस्करण और कुटीर उद्योग आदि जिससे उनकी कुल आय बढ़ सके।
9 किसानो को अपनी उपज निर्यात करने के अवसर प्रदान किये जाय।
10 जनता को खाद्यान की सुगम आपूर्ति के लिये स्टॉक की सीमा जारी रखनी चाहिए।
जी हां मेरे किसान भाइयों आप ठीक कह रहे है। आप तिल तिल कर मर रहे है लेकिन सिर्फ छोटे किसान। आप इसी प्रकार बहकावे में आते रहेंगे तो मरते भी रहेंगे। कोई आपको संभालने नही आएगा क्योंकि जो आपका हित चिंतक है उसे आप नकार रहे है। चौधरी चरण सिंह ने गन्ना चार रुपये क्विंटल बिकवाया था अब क्या होगा यदि सरकार ने कानून वापस लेकर किसानों से पल्ला झाड़ लिया।जरा सोचिये आप किससे उम्मीद लगाय बइठे है। कोई आपका सगा नही जिसने तुम्हे ठगा नही।।
आपका हितेषी आपका अपना
लेखकः-ललित मोहन शर्मा

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