Uttarakhand

संतान पैदा करना मेरा अधिकार, तो सरकार क्यो और कैसे जिम्मेदार

कुछ लोग जनसंख्या नियंत्रण पर एक ही जवाब देते है कि यह उनका निजी अधिकार और ऊपर वाले की इच्छा है। किसी को इसे रोकने का अधिकार नही। यह बात केवल अंधविश्वासी और गैर समझदार या कम पढ़े लिखे लोग ही कर सकते हैं फिर भी एक बार उनकी बात मान भी ली जाय तो एक साधारण सी बात है कि संतान के पालन पोषण की जिम्मेदारी भी उसे पैदा करने वाले कि होनी चाहिए। सरकार इस प्रकार बढ़ती जनसंख्या के लिए दूसरे नागरिकों का दिया हुआ टैक्स क्यों खर्च करे। क्यो सरकार को जिम्मेदार ठहराया जाय? क्या कोई व्यक्ति जिसके पास अपना गुजारा करने के लिए संसाधन नही है और चार पांच बच्चों का उन्ही सीमित संसाधनों में गुजारा चला सकता है? उनके विकास के लिए सभी सुविधाये जैसे भोजन कपड़ा शिक्षा और रोजगार अपने स्तर पर जुटा सकता है? सोचिये यदि सरकार ऐसे लोगो को छूट दे दे( जो दे भी रखी है ) और सिर्फ अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ते हुए उन्हें उनके हाल पर छोड़ दे और उसी ऊपर वाले के भरोसे छोड़ दे, उनकी संतान भूखी मरेंगी और जो बचेंगी वो भीख मांगेगी या अपराध की दुनिया का रुख करेंगी। उनके रहने के लिये न पर्याप्त स्थान होगा और न ही मकान। मैं किसी भी सम्प्रदाय विशेष की बात नही करता लेकिन बिना सुविधा के विकास संभव नही है और बिना विकास संसाधनों में बढ़ोतरी संभव नही है नतीजा संसाधनों का बंटवारा होते होते संतानो के पास संसाधन कम होते जाते है। इसे एक उदाहरण से समझते है। यदि एक किसान अथवा मजदूर जिसके पास आज के दिन बमुश्किल अपने परिवार का गुजारा करने लिए संसाधन है और वह चार बच्चे पैदा करता है लेकिन संसाधनों की कमी के कारण उनका सही ढंग से पालन न कर पाने के साथ उनके लिये अच्छी शिक्षा और स्वास्थ्य का प्रबंध नही कर पाता तो क्या उस परिवार का जीवन सुधर सकता है? मैंने अच्छे अच्छे किसानों ,जमींदारों के हालात बिगड़ते देखे है सिर्फ अधिक बच्चे, शिक्षा की कमी और निरंतर ज़मीन का विभाजन और केवल ऊपर वाले का भरोसा। मैंने अपने गांव के बड़े व्यापारी के पुत्र को भीख मांगते देखा है ।आपने हजारों लोगों को आत्महत्या करते सुना होगा।कारण फिर वही ज्यादा बच्चे ,आर्थिक परेशानी।
कहने का तात्पर्य यह है कि हमारे पास पृथ्वी का जो हिस्सा है वह सीमित और न बढ़ने वाला है। उसके दोहन की एक सीमा है। यदि इसी प्रकार जनसंख्या बढ़ती रही तो आने वाले समय में कृषि भूमि कम पड जाएगी। रहने के लिए स्थान की मारामारी शुरू हो जाएगी और खाना एक दूसरे से छीन कर खाने की नॉबत भी आ जायेगी। ईश्वर ने मानव जाति को उत्तम दिमाग सिर्फ इसलिये दिया है कि वह अपनी योजना ठीक से बना सके, आने वाली परेशानियों का हल ढूंढ सके और अपने लिये एक सुखी जीवन का प्रबंध कर सके। ऐसा न होता तो हम भी इस सांसारिक जंगल में पशुओं की भांति विचरण कर रहे होते। इसलिये निवेदन कर रहा हूँ विशेष रूप से उन पिछड़े लोगो से जिनके पास संसाधनों की कमी है। जो अपनी होनेवाली संतानो को अच्छा पोषण, अच्छा स्वास्थ्य, अच्छी शिक्षा देने में जरा भी असमर्थ है वे वास्तविकता को पहचाने। संतान भी एक बार आपके बुढ़ापे का सहारा तभी बन सकती है जब अच्छी तरह पढ़ लिखकर कुछ बन जाय। आने वाली संतानो को सक्षम और विकसित बनाने के लिये एक ही उपाय है कि अपना परिवार नियोजन करे  और अपने परिवार को सक्षम और आत्मनिर्भर बनाये। आप आत्मनिर्भर बनेंगे तभी हमारा भारत भी निर्भर बनेगा। याद रखये कोई नेता, कोई मुल्ला मौलवी,पुजारी या समाज का ठेकेदार आपके काम नही आएगा। सरकार योजना बना सकती है हमारा मार्गदर्शन कर सकती है लेकिन संसाधन हमे ही पैदा करने होंगे। हमे ही अपनी मेहनत और लगन से आगे बढ़ना है। हम दुनिया पर भी कब्जा कर ले लेकिन बिना शिक्षा  बिना उचित योजना के सिर्फ पशुओं की तरह आपस मे कट मर सकते है, विकास नही कर सकते।
अब बात करते है सरकार की। सरकार एक प्रबंधन टीम है जिस पर देश रूपी सामाजिक और क्षेत्रीय संगठन को भली भांति चलाने और विकसित करने के साथ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने को सशक्त बनाने की जिम्मेदारी होती है। सरकार को इसका खर्च वहन करने के लिए नागरिकों से विभिन्न प्रकार के टैक्स आदि से आय प्राप्त होती है जिससे सभी नागरिकों की आवश्यकतानुसार उनके विकास के लिये योजना बनाकर कार्य करना होता है। यदि सरकार के पास संसाधनों की कमी पड़ती है तो उसे इसकी भरपाई के लिए कर्ज लेना पड़ता है। हम सभी जानते है कि कर्ज कितनी बुरी चीज है। व्यक्ति हो, परिवार हो या कोई संस्था कर्ज़ सभी को नीचे की और ले जाता है और अनेक अवांछित शर्तो को मानने के लिए बाध्य करता है। यह सर्वमान्य है कि हमारे देश मे एक बड़ी संख्या में लोग कर्ज़ के कारण मरते हैं। तब क्या हल है? हल वास्तव में जनता के पास ही है। परिवार को नियोजित कर अपने खर्च कम कर सकते है। पोषण और शिक्षा का अच्छा प्रबंधन कर आनेवाली पीढ़ी को सक्षम बना सकते है। लेकिन अफसोस आज भी हमारे देश में बहुत बड़ा वर्ग अशिक्षा, रूढ़िवादिता और कट्टर मार्गदर्शियों के कारण किसी भी सुझाव या योजना को मानने के लिये तैयार नही होता यहां तक कि उसे हिंसक होने में भी परहेज नही होता।
अंततः सरकार के पास क्या विकल्प है? वर्तमान में इस स्थिति में यदि सरकार सोचती है कि सब के लिये आवश्यक सुविधाओ का प्रबंध करते हुए विश्व मे अपना उच्च स्थान बना लेगी तो यह एक सुनहरे सपने से अधिक कुछ नही हो सकता। सरकार को चाहिये कि यदि उसकी अपील का कोई असर नही होता तो उसे आवश्यक कानून बनाकर सबसे पहले जनसंख्या को नियंत्रित करना होगा उसके साथ साथ प्रारंभिक स्तर से ही उचित शिक्षा की व्यवस्था करनी होगी। देश स्वस्थ और शिक्षित होगा तो उन्नति करेगा और आत्मनिर्भर हो सकेगा। यह किसी जाति, वर्ग अथवा सम्प्रदाय का नही राष्ट्र की संम्पन्नता का प्रश्न है जिसे उसी परिदृश्य में देखा जाना चाहिए।
लेखकः- ललित मोहन शर्मा

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