श्री गुरु नानक देव जी के 550वें प्रकाश पर्व पर सुल्तानपुर लोधी में संगत का हुजूम उमड़ा रहा, 13 दिन में करीब 80 हजार लंगर सेवा में जुटे रहे
सुल्तानपुर लोधी। श्री गुरु नानक देव जी ने दुनिया को नाम जपो, किरत करो और वंड छको का फलसफा दिया था। बाबा नानक के 550वें प्रकाश पर्व के उपलक्ष्य में सुल्तानपुर लोधी में संगत के लिए 72 लंगर लगाए गए। इन लंगरों में करीब 80 हजार लोग संगत की सेवा में दिन-रात जुटे रहे। सेवा का सिलसिला शिफ्टों में लगातार चलता रहा। देश-विदेश से हर रोज औसतन पांच से छह लाख लोग सुल्तानपुर लोधी में गुरुद्वारा श्री बेर साहिब के दर्शन करने पहुंचते रहे। इन लंगरों में संगत के लिए लंगर तैयार किया जाता था। इतनी बड़ी संख्या में लंगर तैयार करने पर प्रतिदिन अनुमानित खर्च करीब तीन करोड़ रुपये तक पहुंच जाता था।
श्री गुरु नानक देव जी के 550वें प्रकाश पर्व पर सुल्तानपुर लोधी में लगाए गए 72 लंगर सबसे बड़ा लंगर गुरुद्वारा बाबा निधान सिंह हजूर साहिब वालों का था। 17 एकड़ में लगाए इस लंगर में रोजाना डेढ़ से दो लाख लोगों के लिए लंगर तैयार किया जाता था। रोज करीब डेढ़ लाख पीजा और एक लाख बर्गर तैयार किए जाते थे। 17 एकड़ में विशाल लंगर की व्यवस्था हजूर साहिब वालों की तरफ से गई थी।
रोज पांच से छह लाख लोगों के लिए तैयार होता था लंगर, एक दिन का अनुमानित खर्च करीब तीन करोड़ बाबा मेजर सिंह एवं बाबा मनप्रीत सिंह ने बताया कि अंदाजन रोजाना 6 से 8 क्विंटल जलेबी और इतने ही शकर पारे तैयार होती थी। 7 से 8 क्विंटल मशरुम और 15 क्विंटल प्रति दिन पनीर लगता था। इस लंगर में 15 से 20 हजार संगत एक साथ लंगर छकती थी। 60 तंदूर एवं 250 भटि्ठयां रोजाना चलती थीं। दही भल्ला तैयार करने के लिए खास तौर पर गंगा नगर से कारीगर लाए गए थे। 300 टीन देसी घी एवं 1000 टीन सब्जियों पर लगता रहा है। बाबा मनप्रीत सिंह का कहना है कि पीजा बनाने के लिए जर्मनी की चार बड़ी मशीनें लगाई गई थीं। इन मशीनों में आठ मिनट में 1200 पीजा तैयार हो जाता था। हर रोज चार गाडिय़ां कोल्ड ड्रिंक और पांच गाडिय़ों में ब्रेड मंगवाया जाता था। लंगर के लिए उन्होंने 800 हलवाई लगाए हैं और करीब सात हजार सेवादार दिन-रात संगत की सेवा में जुटे हैं। बाबा नरिंदर सिंह व बाबा बलविंदर सिंह का कहना है कि यह सब संगत की तरफ से संगत के लिए परमात्मा की कृपा से बाबा नानक खुद करवाते रहे हैं।
अलग-अलग लंगरों में सरसों का साग से लेकर पीजा बर्गर सहित 40 तरह व्यंजन किए जाते थे तैयार बाबा कश्मीर सिंह भूरीवालों की ओर से भी विशाल लंगर लगाया गया था। इस लंगर में एक साथ 16 पंगत लगती थीं और हर पंगत में 300 लोग बैठते थे। एक साथ पांच हजार लोगों को लंगर परोसा जाता था। इस लंगर में जलेबी, शकरपारे देसी घी में तैयार किए जाते थे। 13 दिन में करीब 1000 टीन देसी घी और 3000 टीन रिफाइंड लग चुका है। 400 हलवाई दो शिफ्टों में लगातार काम करते हैं। रोज 15 क्विंटल आटा और 15 क्विंटल बेसन लगता था।पांच हजार से अधिक सेवादार लंगर तैयार करने, परोसने, बर्तन साफ करने में छह-छह घंटे की शिफ्टों में सेवा करते थे। इसी तरह विधिचंद संप्रदाय, बाबा भोला सिंह कार सेवा सरहाली वालों, गुरु नानक सेवक जत्था सहित कई संस्थाओं ने 72 लंगर लगाए गए थे। हर लंगर में 800 से एक हजार लोग सेवा में जुटे थे।
इस संंबध में बाबा भूरीवालों के सेवादार सुक्खा सिंह गवालीयर ने बताया कि जलेबी, शकर पारे व बेसन देसी घी में तैयार किया जाता है और अभी तक करीब 1000 टीन देसी घी लग चुका है और 3000 टीन रिफाइड का इस्तेमाल हुआ है। उन्होंने बताया कि लंगर में हर चीज ब्रेंडेड व बेहतर क्वालटी की इस्तेमाल गई। उन्होंने बताया कि 400 हलवाई डबल शिफ्ट में काम करते रहे। पांच से सात हजार सेवादार लंगर तैयार करने, परोसने एवं बर्तन साफ करने की सेवा में छह-छह घंटे की शिफ्टों में जुटे रहे। बाबा सुक्खा सिंह गवालीयर ने बताया कि एक वक्त में छह से सात संगत लंगर छकती थी। उन्होंने बताया कि एक दिन में 15 क्विंटल रोजाना आटा लगता था और बेसन, कड़ही व पकोड़ों पर रोज करीब 15 क्विंटल बेसन का उपयोग होता था। इसके अलावा बिधीचंद संप्रदाय की तरफ से निहंगों के गुरुद्वारा के पास लंगर लगाया गया जबकि बाबा भोला सिंह कार सेवा सरहाली वालों की ओर से लोहिया चुंगी के पास लंगर चलाए गए। इन लंगरों में भी रोजाना सैकड़ों सेवादार हजारों संगत को लंगर छकाने में रात दिन जुटे रहे। गुरु नानक सेवक जत्था ठट्ठा की तरफ से अकाल एकेडमी के सामने बाबा गुरचरन सिंह की अगुवाई में लंगर चलाया गया।