पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत इस बार पहाड़ी ककड़ी व गेंठी की दावत देंगे 28 सितंबर को देहरादून में
देहरादून। कांग्रेसी दिग्गज और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत इस बार पहाड़ी ककड़ी व गेंठी की दावत देने जा रहे हैं। वह 28 सितंबर को देहरादून में यह दावत आयोजित कर रहे हैं। राजनीतिक सियासी मोर्चे पर भले ही हरीश रावत पिछले तीन सालों से कोई चमत्कार नहीं दिखा पा रहे हैं, इसके बावजूद उनकी सक्रियता में कोई कमी नहीं आई है। प्रदेश कांग्रेस में इस दौरान मतभेदों की तमाम चर्चाओं के बावजूद पिछले दिनों स्टिंग प्रकरण में नैनीताल हाईकोर्ट में मामले की सुनवाई से पहले पार्टी पूरी तरह उनके पीछे खड़ी नजर आई। हरीश रावत अपनी तरह-तरह की दावतों के लिए भी अकसर चर्चा में रहते हैं। वह कभी आम की दावत, कभी काफल और कभी पहाड़ी व्यंजनों की दावत आयोजित कर अपने समर्थकों के बीच अपनी मौजूदगी दर्ज कराते रहे हैं। इस तरह की दावतों को पर्वतीय क्षेत्रों के मुद्दों को लेकर हरदा की अलहदा सियासत के रूप में भी देखा जाता रहा है। आगामी शनिवार को हरीश रावत पहाड़ी ककड़ी (खीरा) की दावत आयोजित कर रहे हैं। इसका जिक्र उन्होंने सोशल मीडिया में पोस्ट कर भी किया है। रावत के मुताबिक पहाड़ी ककड़ी और रायता के अलावा इसमें मेहमानों का परिचय उच्च हिमालयी क्षेत्र में पाई जाने वाली गेठी (एक तरह का कंद) से भी कराया जाएगा। इन्हें उबाल कर खाया जाता है। गेठी औषधीय गुणों से भरपूर होती है और इससे मधुमेह को नियंत्रण में रखने में मदद मिलती है।
आइए जानते हैं क्या है पहाड़ी ककड़ी और गेंठी पहाड़ी ककड़ी: पहाड़ी ककड़ी सामान्यतः ककडी या खीरा नाम से जानी जाती है. उच्च पर्वतीय क्षेत्र उगायी जाने वाली ककडी अपने खास स्वाद की वजह से आज अपने आप में एक ब्रांड है जिसको सिर्फ खाने पश्चात ही समझा जा सकता है. अत्यधिक मांग में रहने वाली पहाड़ी ककड़ी उत्तराखण्ड में बहुतायत उगायी जाती है. इसका वैज्ञानिक नाम Cucumis sativus L. जो की Cucurbitaceae कुल के अंतर्गत आती है. विश्वभर में लगभग सभी जगह उगायी जाने वाली ककडी को अनेकों नामों से जाना जाता है जैसे कि खीरा, ककडी- उर्दू, पेपिनो-स्पेनीस, हुआंग गुआ- चाइनीज, क्यूरी- जापानीस, पिपिगंगना-श्रीलंका आदि. इसके अलावा पूरे देश में लगभग 1600 मी0 (समुद्रतल से) तक की ऊंचाई पर उगाई जाने वाली ककडी को हिन्दी में खीरा, ककडी, बंगाली में साउसा, तमिल में वेलारिका, तेलगू में कीरा डोस्लाया, कन्नड में सवातेकाई, मराठी में सितालचीनी, गुजराती में ककडी, असम में तियोह आदि नामों से जाना जाता है। पहाड़ी ककड़ी का उत्पादन पर्वतीय क्षेत्रों में बिना किसी रासायनिक खाद तथा अन्य कीटनाशक की सहायता से किया जाता है जिसके कारण इसकी अत्यधिक मांग रहती है. पहाड़ी ककड़ी की कीमत मैदानी क्षेत्रों में उगायी जाने वाली ककडी से अधिक होने के बाद भी बाजार में ज्यादा पसंद की जाती है. उत्तराखण्ड के कुमाऊं तथा गढवाल क्षेत्रों में पहाड़ी ककड़ी का खूब उत्पादन किया जाता है, जो कि स्थानीय काश्तकारों को आर्थिकी का मजबूत विकल्प है. पहाड़ी ककड़ी में प्राकृतिक मिनरल्स तथा विटामिन्स प्रचूर मात्रा में हाने के कारण स्थानीय लोगों द्वारा कृषि कार्यों के दौरान खेतों में एक ऊर्जा के विकल्प में खूब पंसद किया जाता है. पहाड़ी ककड़ी का प्रदेशभर में अच्छा उत्पादन किया जाना चाहिए ताकि इसे प्रदेश की आर्थिकी का ओर मजबूत विकल्प बनाया जा सकें. उत्तराखण्ड में पारम्परिक रूप से पहाडी ककडी को कीचन गार्डन तथा पारम्परिक फसलों के बीच में उगाई जाती है.
गेंठी (गींठी): इसे कंद की सब्जी भी कहा जाता है। अपने आप में ये कई कुदरती खूबियों को समेटे हुए है। इस सब्जी को दक्षिण पूर्व एशिया और अफ्रीका में भी उगाया जाता है। खास बात ये भी है कि चरक संहिता और सुश्रुवा संहिता में गेंठी (गींठी) का स्थान दिव्य अट्ठारह पौधों में दिया गया है।