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बेटियाँँ ही है प्रदेश, देश और राष्ट्र का सम्मानः डाॅ0 सुजाता संजय

देहरादून।   सोसाइटी फाॅर हैल्थ, एजुकेशन एण्ड वूमैन इम्पावरमेंट एवेरनेस (सेवा) एन.जी.ओ. जाखन देहरादून ने अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष में वेविनार का आयोजन किया।
      सोसाइटी की उपाध्यक्ष डाॅ. सुजाता संजय ने वेविनार के दौरान कहा कि महिलाओं को अपने आदर्श जिम्मेदारियों को कभी नहीं भूलना चाहिए। मेरे अपने अनुभव एवं अपने क्षमता के आधार पर यह मानना है कि किसी भी तरह का प्रोत्साहन व्यक्ति के काम करने की क्षमता को बढ़ाने में कैटालिस्ट की तरह काम करता है। पुरूषों की तरह ही महिलाऐं भी सम्मान पाने की हकदार हैं, क्योंकि अपने अद्भूत साहस, अथक परिश्रम तथा दूरदर्शी बुद्विमत्ता के आधार पर अपने देश की महिलाऐं विश्वपटल पर अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो रही हैं। मानवीय साहस, संवेदना, करूणा, वात्सल्य जैसे भावों से परिपूर्ण अनेक नारियों ने युग निर्माण में अपना योगदान दिया
      डाॅ. सुजाता ने कहा कि हमारी संस्था का उद्देश्य यह भी है कि अच्छे स्वास्थ्य के प्रति महिलाओं तथा लड़कियों को जागरूक किया जाए, खासतौर से मलिन बस्तियों के निवासियों में। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए समय-समय पर हमारी संस्था मलिन बस्तियों में निःशुल्क स्वास्थ्य शिविर एवं जन जागरूकता सममेलन करती रहती है। सेवा संस्था गरीब बच्चों को निःशुल्क किताबें एवं स्टेशनरी भी बाँटती रहती है जिससे गरीब जरूरतमंद बच्चे भविष्य में अपनी शिक्षा को जारी रख सकें। डाॅ0 सुजाता संजय के समाजिक सेवा के उत्कृष्ट कार्यो को भारत सरकार द्वारा सराहा गया तथा वर्ष 2016 में उनको भारत की सौ सशक्त महिलाओं में से एक चयन कर राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित किया गया।
       वहीं देवभूमि उत्तराखण्ड में समर्पित कार्यरत एक महिला होने के नाते आपके संज्ञान में लाना चाहती हूँ कि आपने देश में संचालित परम्पराओं के अनुसार जब एक बेटी, बहू बन के किसी अन्य प्रदेश में जाती हैं तो उसे क्षेत्रवाद की संज्ञा में लिया जाना अन्याय है।
      मेरा मानना है कि एक लङकी जो कि अपना पूरा घर परिवार छोङकर शादी के बाद अपने पति के घर ‘सुसराल में अन्य राज्य व परिवार में जाती है तो उसे परिवार व उस प्रदेश के लोगों को पूरी तरह से ही स्वीकार करना चाहिए, इतना ही नहीं विवाह के बाद उस महिला को उस राज्य का निवास प्रमाण भी प्रदान किया जाना चाहिए। इस सम्बन्ध मंें अत्यन्त कष्ट होता है कि जब कोई यह पूछता है कि आप दूसरे  प्रदेश से ब्याह कर यहा आयी है, इसीलिये आप यहां भूखण्ड नही खरीद सकती। यह एक बहुत चिंतनीय विषय है।
       शादी के पश्चात एक महिला अपने ससुराल व उस राज्य को अपने घर के रूप में स्वीकार करती है, तो यह उस राज्य का भी दायित्व है कि वो उस महिला को उस राज्य के शिक्षा, रोजगार लेने व अचल सम्पति खरीदने की स्वीकृति मिलनी ही चाहिए।
    भले ही आज हम यह कहकर अपनी पीठ थपथपा लें कि आजादी के 75 सालों में हमारी महिलाएँ चाँद पर पहुँच गई हैं, फाइटर प्लेन उड़ा रही हैं, ओलंपिक में पदक जीत रही हैं, या राष्ट्रपति बनकर देश की बागडोर संभाल रही हैं, लेकिन व्यावहारिक तौर पर देखें तो यह संख्या महिलाओं की आबादी का अंश मात्र ही है। हमारे समाज की महिलाओं का एक बड़ा तबका आज भी सामाजिक बंधनों की बेड़ियों को पूरी तरह से तोड़ नहीं पाया है, उनका अपना स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है ।

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